14 जुलाई, 2012

जब जब अन्याय होता है कोई सामने नहीं आता !



मैं तुम्हें नहीं जानती
नहीं देखा है तुम्हें
नहीं मिली हूँ कभी
फिर क्यूँ तुम मेरे अन्दर सिसक रही हो
चीख रही हो !
कैसे कैसे दरिन्दे घूम रहे हैं
मुझे तो बहुत डर लगता है
रास्ते भी मेरे देखे हुए नहीं
पर ... उस एक जगह निश्चेष्ट हो गई हैं आँखें
जहाँ तुम्हारे सपनों की सनसनाहट बदल गई है
और मेरी रक्त धमनियां ऐंठ गई हैं ...
क्या कहूँ
क्या करूँ
तुम तो मेरे अन्दर काँप रही हो
मेरी आँखों से बरस रही हो
मेरी जिह्वा पलट गई है
और तुम्हारी सारी चीखें चक्रवात की तरह
मेरी शिराओं में मंथित हो रही हैं !
नाम से परे
पहचान से परे
रिश्तों से परे
तुमने मुझे पकड़ रखा है
और मैं जी जान से इस कोशिश में हूँ
कि तुम्हारा सर सहला सकूँ
अपनी आँखों से एक कतरा नींद दे सकूँ
अपनी गोद का सिरहाना दे दूँ
और कहूँ किसी थके हुए मुसाफिर की तरह
इसे अपनी हार मत समझना
दहशत के समंदर से संभव हो तो बाहर आना
जो सपने आज से पहले तुमने देखे थे
उनको फिर से देखने का प्रयास करना !!
मुझे मालूम है -
कई आँखें तुम्हें अजीब ढंग से देखेंगी
कई उंगलियाँ तुम्हारी तरफ उठेंगी
सवालों की विभीषिका तुम्हें चीरती रहेंगी
......
एक बात गाँठ बाँध लो -
जब जब अन्याय होता है
कोई सामने नहीं आता
मरहम खुद लगाओ
या अंगारों पर दौड़ जाओ
पर चलना अपने पैरों से होता है ...
और यह इतना आसान नहीं ,
जितना कह जाने में है !
खुद तुम्हें अपनी चीखों से
सिसकियों से मुक्ति नहीं मिलेगी
अनसुना करके मुस्कुराने पर भी लोग तिरस्कृत करेंगे
तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होगा
एक यकीन देती हूँ ----
तुम मेरे अन्दर चाहो तो ताउम्र चीख सकती हो
मैं इस आग को जब्त कर लूँगी
दुआ करुँगी .......
और शून्य में तुम्हें देखती रहूंगी !!!

45 टिप्‍पणियां:

  1. जब कहीं अन्याय अत्याचार होता है तब लोगों की भावनाएं/संवेदनाएं मर जाती हैं इसीलिए वे सामने नहीं आते हैं ... आपकी रचना सचमुच प्रभावित करने वाली है ... आभार

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  2. सशक्त लेखन दी ...बहुत सुंदर लिखा है ...!!

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  3. तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होगा
    एक यकीन देती हूँ ----
    तुम मेरे अन्दर चाहो तो ताउम्र चीख सकती हो
    मैं इस आग को जब्त कर लूँगी
    दुआ करुँगी .......
    और शून्य में तुम्हें देखती रहूंगी !!!
    bahut jabardast prastuti, bahut umda...........

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  4. अगर इस तरह की संवेदनाएं हर इन्सान के अन्दर हों, तो इस तरह की घटनाएं ही न हों... ये संवेदनाएं ही इन घटनाओं का इलाज हैं, जिनकी खुशबू हमारे संस्कारों में बसती है...

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  5. अगर इस तरह की संवेदनाएं हर इन्सान के अन्दर हों, तो इस तरह की घटनाएं ही न हों... ये संवेदनाएं ही इन घटनाओं का इलाज हैं, जिनकी खुशबू हमारे संस्कारों में बसती है...

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  6. कोई सामने नहीं आता मतलब साफ़ है ..वह भी साथ देता है..

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  7. बहुत -३ सुन्दर रचना रश्मि दी... अन्दर तक हिला दिया...

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  8. अक्सर क्यूँ ऐसा होता है?
    सत्य छुपा के मुह रोता है?
    हम संवेदनहीन हुए है,
    दिल जाने कैसे सोता है?

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  9. खुद तुम्हें अपनी चीखों से
    सिसकियों से मुक्ति नहीं मिलेगी
    अनसुना करके मुस्कुराने पर भी लोग तिरस्कृत करेंगे
    तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होगा
    एक यकीन देती हूँ ----

    खुद को ही तपाना है और निखारना है ....गहन अभिव्यक्ति ...

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  10. अक्सर क्यूँ ऐसा होता है?
    सत्य छुपा के मुह रोता है?
    हम संवेदनहीन हुए है,
    दिल जाने कैसे सोता है?

    ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी संवेदनाएं मर चुकी हें. सिर्फ हमारे चीखने और त्रसित आत्माओं को सहलाने से ये अनाचार ख़त्म नहीं होगा क्योंकि इस अनाचार के पीछे कुछ सफेद पोश बैठे हें और वे शह देने के वायस बनते हें. उनकी कालर तक हाथ पहुँच नहीं सकते और फिर ये ऐसे ही चलेगा. बस संकल्प लेने की जरूरत है कि तब तक इसके खिलाफ चिल्लाते रहेंगे जब तक कि ऐसे लोगों के कान सुनते सुनते बहरे नहीं हो जाते . आँखें जो बंद हें खुल नहीं जाती , एक आग जो ऐसे लोगों को जब तक जला नहीं देती लड़ना होगा.

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  11. एक यकीन देती हूँ ----
    तुम मेरे अन्दर चाहो तो ताउम्र चीख सकती हो
    मैं इस आग को जब्त कर लूँगी
    दुआ करुँगी .......
    और शून्य में तुम्हें देखती रहूंगी !!!
    आपकी लेखनी नि:शब्द कराती है .... !

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  12. पूरे देश को उद्वेलित करने वाली घटना पर इतनी त्वरित काव्यात्मक प्रतिक्रिया.....कमाल है..

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  13. बहुत मार्मिक और संवेदना भरी रचना ...

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  14. कई सवालों के जवाब कभी नहीं मिल पाते...बस हादसे होते जाते हैं...टीसते जाते हैं.....उम्रें अंधेरों में बीत जाती हैं .......कुछ शोर...कुछ फिकरे ...उछलते हैं ....रक्त में उबाल आता है ...खीज होती है व्यवस्था पर ..समाज पर .... लेकिन फिर कुछ दिनों में ...घाव भर जाते हैं औरों के ........और भूल जाते हैं हम ......की कोई अब भी जी रहा है मर मर के हर रोज़ ......क्योंकि उसकी रात की कोई सुबह नहीं ........

    रश्मिजी ..यह त्रासदी बहुत दुखदायी है .....और दुःख तो इस बात का है ...कि यह हादसे फिर भी होते हैं ...और अधिक विभत्सता ओढ़े ...और अधिक घिनोने...और लोग ऑंखें फाड़ फाड़कर देखते रहते हैं ...

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  15. ना जाने कब अंत होगा इस वीभत्स मानसिकता का... कब तक सुनाई देती रहेगी ये चीख और सिसकियाँ... क्यों झुलसती है वह खुद आग बनकर फूंक क्यों नहीं देती इस दरिंदगी को...

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  16. लोंगो का रक्त उबाल क्यों नहीं लेता है भला..

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  17. जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता
    मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    पर चलना अपने पैरों से होता है ...
    और यह इतना आसान नहीं ,
    जितना कह जाने में है !
    खुद तुम्हें अपनी चीखों से
    सिसकियों से मुक्ति नहीं मिलेगी
    अनसुना करके मुस्कुराने पर भी लोग तिरस्कृत करेंगे
    तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होगा

    कितना कटु सत्य कहा है ………कुछ भी कहने मे असमर्थ महसूस कर रही हूँ।

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  18. जब अन्याय होता है तो कोई सामने नही आता
    और मन अंदर ही अंदर घुटता है
    गहरी वेदना लिये मार्मिक प्रस्तुती...

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  19. पता नहीं क्या हो गया है ...लोगों की शिराओं में रक्त की जगह शयब अब कुछ और बहता है..जो उबालना ही नहीं जानता.
    बेहद त्रासद है यह स्थिति.

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  20. बहुत प्रभावशाली रचना है दी...
    मन भर आया ....दर्द भी हुआ...चुभन भी हुई...गुस्सा भी आया..

    सादर.

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  21. निःशब्द हूँ...दूसरों के एहसास समझने और प्रेरणा देने की गजब की शक्ति... !!!

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  22. होता जाता है घाव, मरहम खुदै लगावो
    जब होता अन्याय, कोई न सामने पावो,,,,,

    उत्कृष्ट प्रस्तुति ,,,,,

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  23. होता जाता है घाव, मरहम खुदै लगावो
    जब होता अन्याय, कोई न सामने पावो,,,,,

    उत्कृष्ट प्रस्तुति ,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  24. खुद तुम्हें अपनी चीखों से
    सिसकियों से मुक्ति नहीं मिलेगी
    अनसुना करके मुस्कुराने पर भी लोग तिरस्कृत करेंगे
    तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होगा

    सच है....इसे स्वीकारना ही होगा ....

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  25. एक बात गाँठ बाँध लो -
    जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता
    मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    bahut sach didi!!

    जवाब देंहटाएं
  26. जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता
    मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    पर चलना अपने पैरों से होता है ...

    यही सच्चाई है. बहुत सुंदर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  27. एक यकीन देती हूँ ----
    तुम मेरे अन्दर चाहो तो ताउम्र चीख सकती हो
    मैं इस आग को जब्त कर लूँगी
    दुआ करुँगी .......
    और शून्य में तुम्हें देखती रहूंगी !!!


    संवेदना अंदर की तभी जागती है जब कुछ घटित होता है
    बड़े दुःख की बात है
    मन को अंदर तक उद्वेलित करती हुई रचना ....
    साभार ... !!

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  28. अनाचार को देखकर, लोग हो रहे मौन।
    नौका लहरों में फँसी, पार लगाये कौन।।

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  29. मन भर आया..बहुत प्रभावशाली रचना..आभार

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  30. मैं इस आग को जब्त कर लूँगी
    दुआ करुँगी .......
    और शून्य में तुम्हें देखती रहूंगी !!!
    बेहद सशक्‍त लेखन ... आपका नि:शब्‍द हूँ या कहूँ तो बस ..
    शुरू से लेकर अंत तक इस घटना पर एक क्षोभ, दर्द, एक घुटी चीख के साथ होते हुए भी मन में बेबसी का लम्‍हा जीवित है ...

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  31. भुक्तभोगी की व्यथा अपने शब्दों में

    जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता

    बस बाते बनाता है
    टी वी में दिखाता है
    अखबार के कागज में
    लाकर फोटो लगाता है।

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  32. एक बात गाँठ बाँध लो -
    जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता
    मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    पर चलना अपने पैरों से होता है ..

    बहुत ही गहन मार्मिकता में लिप्त सत्य।

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  33. एक बात गाँठ बाँध लो -
    जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता
    मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    पर चलना अपने पैरों से होता है ...
    और यह इतना आसान नहीं ,
    जितना कह जाने में है !

    .सच तो यही है विपरीत हालातों में अपने पैरों पर और अपने हौसले पर ही यकीं करना चाहिए ..यदि यह हो जाय तो फिर सभी बाद में साथ हो लेंगें //
    बहुत अच्छी सीख देती रचना ...आभार

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  34. सच को खूबसूरती के साथ लोगों के समक्ष रखना तो कोई आप से सीखे....

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  35. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  36. काम गंदे सोंच घटिया
    कृत्य सब शैतान के ,
    क्या बनाया ,सोंच के
    इंसान को भगवान् ने
    फिर भी चेहरे पर कोई, आती नहीं शर्मिंदगी !
    क्योंकि अपने आपको, हम मानते इंसान हैं !

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  37. तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होग… yahi koshish hai…:-) sandesh ke liye dhanyawaad… saadar

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  38. मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    पर चलना अपने पैरों से होता है ...
    और यह इतना आसान नहीं ,
    जितना कह जाने में है !
    खुद तुम्हें अपनी चीखों से
    सिसकियों से मुक्ति नहीं मिलेगी
    अनसुना करके मुस्कुराने पर भी लोग तिरस्कृत करेंगे
    तुम्हें इस सच के दहकते अंगारों में झुलसते हुए निखरना होगा


    bahut khoob!

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  39. एक बात गाँठ बाँध लो -
    जब जब अन्याय होता है
    कोई सामने नहीं आता
    मरहम खुद लगाओ
    या अंगारों पर दौड़ जाओ
    पर चलना अपने पैरों से होता है ..sach hai

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...