22 जुलाई, 2012

बुरा सुनो , बुरा देखो, बुरा कहो



बुरा सुनो , बुरा देखो, बुरा कहो
तभी सत्य की लड़ाई लड़ सकोगे
अन्यथा संस्कारों के पीछे
दांतों तले जीभ रख सोचते रह जाओगे
क्या कहें , कैसे कहें !
सुनने में ही जिस बात से मन खराब होता है
देखने से वितृष्णा होती है
उसके विरोध में उठने के लिए
कान खुले रखो
आँखें खुली रखो
मीठी बातों की चाशनी में लिपटे रहने से
कुछ हाथ नहीं आता
.....
सत्य को उजागर करने के लिए
भगत बनो
एक बम विरोध का
तबीयत से उछालो
क्या होगा अगर गिरफ्तार हो जाओगे तो ?
सुखदेव, आजाद , राजगुरु ,
बटुकेश्वर दत्त तो मिलेंगे ...
मिट्टी तो जाने कब से नम है
बीज डालो तो सही ...
आपसी प्रतिस्पर्धा से क्या पाओगे -
यही न - कि फिर ईस्ट इंडिया कम्पनी आएगी
और टुकड़ों में बंटे तुम्हारे स्व के अहम् को
अपनी जीत बना जाएगी !

अपने पुरुषत्व को जानो
नारी का सम्मान करो
बच्चों की मासूम किलकारियों को
रक्तरंजित मत करो ...
घर बैठे आज़ादी नहीं मिलती
ना सुरक्षा
सुरक्षित आजादी के लिए
तुम सबको बाहर आना होगा
झांसी की मनु बहन को
राजतिलक लगाना होगा !

एक ' आह ' भर लेने से क्या होगा !
सत्यमेव जयते कार्यक्रम की तारीफ कर
आगे बढ़ जाने से क्या होगा !
एक गुवाहाटी नहीं
कई सड़कें , इमारतें , गलियाँ चीख रही हैं
कान बन्द कर लोगे , आँखें बन्द कर लोगे
ज़ुबान नहीं खोलोगे
तो फिर .....

कसो फब्तियां
पैसे कमाओ
इज्ज़त का खुला व्यापार करो
अपनी अपनी आत्मा को कुचल डालो ...
बन्द दरवाज़ों के भीतर
वीभत्स ठहाके लगाओ
और साबित करो
कि अंग्रेजों ने तो भगतसिंह को
समय से पहले फांसी दी
तुमने तो उसके टुकड़े कर डाले
और मनु बहन को नीलाम कर दिया !!!

38 टिप्‍पणियां:

  1. अपने पुरुषत्व को जानो
    नारी का सम्मान करो
    बच्चों की मासूम किलकारियों को
    रक्तरंजित मत करो ...
    घर बैठे आज़ादी नहीं मिलती
    ना सुरक्षा
    सुरक्षित आजादी के लिए
    तुम सबको बाहर आना होगा
    झांसी की मनु बहन को
    राजतिलक लगाना होगा !..bahut achchha likha hai

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  2. रश्मि जी आप की इस रचना ने निश्चय ही सोती हुई आत्मा को झक्झोर दिया है..सिर्फ पढ़ने सुनने देखने और सहानुभूति से क्या होगा .. कूद पडो़ कुछ करो ...ये बिगुल सच में बहुत प्रेरणादायक है...आभार

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  3. बुरा देखने और सुनने से ही बुराई के खिलाफ़ बोलने की शक्ति आएगी...वरना बुत बन के रहना है... बहुत सही लिखा|

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  4. आत्मा को झकझोर देने वाली रचना और इसके सत्य को स्वीकार लेने में ही मानव हित है. अपने मानव धर्म को निभाने के लिए अन्याय के प्रति मुँह न खोला तो फिर यही कह सकते हें कि हम उस अन्याय के भागीदार हें. इसलिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनो और खुल कर बोलो और विरोध करो.

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  5. आत्मा को झकझोर देने वाली रचना और इसके सत्य को स्वीकार लेने में ही मानव हित है. अपने मानव धर्म को निभाने के लिए अन्याय के प्रति मुँह न खोला तो फिर यही कह सकते हें कि हम उस अन्याय के भागीदार हें. इसलिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनो और खुल कर बोलो और विरोध करो.

    जवाब देंहटाएं
  6. दांतों तले जीभ रख सोचते रह जाओगे
    क्या कहें , कैसे कहें !
    सुनने में ही जिस बात से मन खराब होता है
    देखने से वितृष्णा होती है
    उसके विरोध में उठने के लिए
    कान खुले रखो
    आँखें खुली रखो...

    प्रेरक आह्वान

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  7. सही कहा आपने, हम मिलकर बहुत कुछ कर सकते हैं और केवल घर में बैठकर बोलने से कुछ नहीं होने वाला ....
    प्रेरक उत्कृष्ट रचना ..
    सादर !!

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  8. बहुत सुन्दर ! आपकी रचना किसी भगत सिंह, किसी राजगुरु, किसी सुखदेव की सोयी हुई चेतना को जगा दे और वह तटस्थता का मुखौटा उतार अपनी आत्मा की आवाज़ को सुन ले तो समाज का चेहरा बदल जाये ! तथास्तु !

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  9. समय कुछ करने का है ..सिर्फ कहने का नहीं...सच्ची रचना.

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  10. अन्याय के प्रति विद्रोह और ललकार... सशक्त आह्वान

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  11. कोई सोता हुआ पढ़े तो सही.....
    बेशक जाग जाएगा...
    मगर जो सोया है वो पढ़े कैसे????
    बहुत सशक्त रचना रश्मि दी......
    सादर
    अनु

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  12. आग उगल रही है ये कविता । हमें जागना ही होगा बुरा देखना ही होगा तभी तो मिटा सकेंगे इसको । काश ये हम में सेहरेक को झकझोर सके ।

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  13. बुरा देखेंगे ही नहीं ,आँखें बंद कर लेंगे तो बुराई दूर कैसे होगी ...
    बुरे को मिटाने के लिए बुरा कहना भी होगा !
    भगत सिंह फंसी चढ़ कर एक बार मारे ,यहाँ कितने kitni बार mar rahe !
    marmik !

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  14. एक इंकलाबी आवाज़ सोई चेतना को जगाती ...
    काश!कि अब भी जाग जाएँ .....
    शुभकामनाएँ!

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  15. अन्यथा संस्कारों के पीछे
    दांतों तले जीभ रख सोचते रह जाओगे
    क्या कहें , कैसे कहें !
    लेखन की सशक्‍तता ... भावनाओं को झंझोड़ कर जगाती हुई प्रेरक पंक्तियों के साथ उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ...आभार

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  16. अपने पुरुषत्व को जानो
    नारी का सम्मान करो
    बच्चों की मासूम किलकारियों को
    रक्तरंजित मत करो ...
    घर बैठे आज़ादी नहीं मिलती
    ना सुरक्षा
    सुरक्षित आजादी के लिए
    तुम सबको बाहर आना होगा
    झांसी की मनु बहन को
    राजतिलक लगाना होगा

    आपकी आवाज़ में hmari भी आवाज़ शामिल है रश्मि जी ....!!

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  17. एक ' आह ' भर लेने से क्या होगा !
    सत्यमेव जयते कार्यक्रम की तारीफ कर
    आगे बढ़ जाने से क्या होगा !

    .....विचारों को उद्वेलित करती बहुत सशक्त ललकार...

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  18. बहुत ही सुन्दर और शानदार लगी ये पोस्ट।

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  19. झूठ को झूठ कहने के लिए सच की गंगा में डुबकी लगाने की हिम्मत चाहिए...

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  20. कसो फब्तियां
    पैसे कमाओ
    इज्ज़त का खुला व्यापार करो
    अपनी अपनी आत्मा को कुचल डालो ...
    बन्द दरवाज़ों के भीतर
    वीभत्स ठहाके लगाओ
    और साबित करो
    कि अंग्रेजों ने तो भगतसिंह को
    समय से पहले फांसी दी
    तुमने तो उसके टुकड़े कर डाले
    और मनु बहन को नीलाम कर दिया !!!

    ek dam sateek.....magar kisi ko chubhe to.....

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  21. सोचने को मजबूर करती रचना...

    शुभकामनाएं.

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  22. प्रेरित करती, कुछ करने का
    भाव जगाती यह रचना
    बहुत ही बेहतरीन व सार्थक लेखन...
    :-) :-) :-)

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  23. Rashmi,very well written.. heart felt thanks for writing such wonderful lines.. I look forward to your feedback on my poetry..

    regards
    sniel

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  24. एक ' आह ' भर लेने से क्या होगा !
    सत्यमेव जयते कार्यक्रम की तारीफ कर
    आगे बढ़ जाने से क्या होगा !
    एक गुवाहाटी नहीं
    कई सड़कें , इमारतें , गलियाँ चीख रही हैं
    कान बन्द कर लोगे , आँखें बन्द कर लोगे
    ज़ुबान नहीं खोलोगे
    तो फिर .....

    ekdum hatke lagi ye rachna....utna hi prabhavit bhi kiya......bahut saarthak aur upyukt sandesh!!!

    जवाब देंहटाएं
  25. कसो फब्तियां
    पैसे कमाओ
    इज्ज़त का खुला व्यापार करो
    अपनी अपनी आत्मा को कुचल डालो ...
    बन्द दरवाज़ों के भीतर
    वीभत्स ठहाके लगाओ
    और साबित करो
    कि अंग्रेजों ने तो भगतसिंह को
    समय से पहले फांसी दी
    तुमने तो उसके टुकड़े कर डाले
    और मनु बहन को नीलाम कर दिया !!!...............झंझोर दिया आपकी कविता ने

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...