सच क्या था , क्या है , क्या होगा
वह -
जो तुमने
उसने
मैंने -
कल कहा
या आज सोच रहे
या फिर कल जो निष्कर्ष निकला
या निकाला जायेगा !
सच का दृश्य
सच का कथन
...... पूरा का पूरा लिबास ही बदल जाता है !
सच भी समय के साथ चलता है
और समय .... कभी इस ठौर
कभी उस ठौर
जाने कितने नाज नखरे दिखाता है ...
आँखें दिखाने पर
शैतान बच्चा भी कुछ देर मुंह फुलाए
चुपचाप बैठ जाता है
हवा थम जाती है
पर यह समय .....
सच के पन्ने फाड़ता रहता है
हर बार नाव नहीं बनाता
यूँ हीं चिंदियों की शक्ल में उन्हें उड़ा देता है !
क्या समय मुक्ति का पाठ पढ़ाता है
या सच में सच बदल जाता है
हमारे चेहरों की तरह ...
कितना मासूम था यह चेहरा
फिर नजाकत , शोखी ... अब गंभीर
कल खो जायेगा चेहरा
और फिर कभी याद नहीं आएगा !!!
ओह -
ईश्वर को इस भुलभुलैये के खेल में
क्या मज़ा मिलता है
..........
शायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
और खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है ?
शायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
जवाब देंहटाएंऔर खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
परीक्षा देते देते या सच साबित करते करते थक जाने के बाद खुद आउट होने की ख्वाहिश रख भी दें तो हर्ज क्या है,यह जानते हुए कि यह सही नहीं !!
bahut umda prastuti hai, behad gambheer rachna ****
जवाब देंहटाएंक्या यही उसका न्याय है ?
जवाब देंहटाएंसांयकाल का समय
गाँव के कौने में बनी
फूस की झोंपड़ी
गोबर से लिपा फर्श
दो चार बर्तन
वो भी सब खाली
खाने को कुछ भी नहीं
भूख से व्याकुल बूढ़ी माँ
उदिग्नता से पुत्र की
प्रतीक्षा कर रही थी
उसका एकमात्र सहारा
काम से लौटेगा
खाने के लिए कुछ लाएगा
उसने सुबह से कुछ नहीं
खाया था
केवल पानी पी कर
काम चलाया था
आँखों में आशा के भाव
स्पष्ट झलक रहे थे
दूर धूल उड़ने लगी
कुछ आवाजें सुनायी
पड़ने लगी
उदिग्नता कम होने लगी
लोगों के
पास आने पर देखा
पुत्र अकेला नहीं आया था
उसके मृत शरीर के साथ
कुछ लोग भी थे
जिन्होंने बताया
दुर्घटना का शिकार हो
काल कवलित हो गया था
बूढ़ी माँ
चुपचाप देखती,सुनती रही
आँखों से अश्रुओं की धारा
बह निकली
निढाल हो कर लुडक पडी
पुत्र के पास परलोक
पहुँच गयी
आँखें आकाश को देखती हुयी
खुली की खुली ही रह गयी
मानों परमात्मा से
पूंछ रहीं हो
क्या यही उसका
न्याय है ?
17-02-2012
181-92-02-12
बहुत सुन्दर दी....
जवाब देंहटाएंबार बार पढ़ रही हूँ....
सादर
अनु
सच भी समय के साथ चलता है...
जवाब देंहटाएं.....और व्यक्ति के साथ भी.......!!
:))
कितना मासूम था यह चेहरा
जवाब देंहटाएंफिर नजाकत , शोखी ... अब गंभीर
कल खो जायेगा चेहरा
और फिर कभी याद नहीं आएगा !!!
ओह -
ईश्वर को इस भुलभुलैये के खेल में
क्या मज़ा मिलता है
बहुत ही गहन भाव लिए यह पंक्तियां जिन्दगी का सच उतार दिया आपने ...आभार
सच को जानना जैसे पानी को मुट्ठी में पकड़ना .... परिस्थितिनुसार सच भी सच में बादल जाता है ... खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचेहरा खो जायेगा ही... इसलिए तो जो भी करना है इस पल में ही कर लें..एक पल में जीना जिसे आ जाये वह जानता है कि वह इतना सूक्ष्म है कि उसे कोई छू भी नहीं सकता.. कि वह सदा से है सदा रहेगा...
जवाब देंहटाएंsahi bat hai kabhi-kabhi aise khyal bhi dil me aa hi jate hain..bahut acchi abhiwyakti .....
जवाब देंहटाएंSACH PAR NAI SOCH... BADHIYA KAVITA
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..इस रचना के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंBahut sundar...antim panktiyon ka koi uttar nahi hai...sach mein
जवाब देंहटाएंशायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
जवाब देंहटाएंऔर खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है ?
कभी -कभी ऐसा लगता है ये वाक्य बिलकुल सच हैं, परिस्थितियां खुद आउट होने की ख्वाहिश रखने को कहती दिखती हैं, शायद यह भी उसीकी मर्ज़ी हो वो अपने ऊपर इल्जाम नहीं लेना चाहता हो. गहन अभिव्यक्ति
शायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
जवाब देंहटाएंऔर खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है,,,,,
बेहतरीन गहन अभिव्यक्ति,,,,,,
सच भी समय के साथ चलता है
जवाब देंहटाएंऔर समय .... कभी इस ठौर
कभी उस ठौर...
सच्ची कहा दी.... सुन्दर रचना...
सादर
:(:(
जवाब देंहटाएंbahot achcha likhi hain.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंईश्वर को इस भुलभुलैये के खेल में
जवाब देंहटाएंक्या मज़ा मिलता है...यह प्रश्न कितनी ही बार मेरे मन में आता है .
शायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
और खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है ?....बहुत खूब!!
पर यह समय .....
जवाब देंहटाएंसच के पन्ने फाड़ता रहता है
हर बार नाव नहीं बनाता
यूँ हीं चिंदियों की शक्ल में उन्हें उड़ा देता है !
बहुत सही कहा आपने
कभी कभी लगता है कि सच भी हमेशा एक सा नहीं होता , समय के साथ सच और उसके मायने बदलते रहते हैं , समझ नहीं आता सच क्या है , सच ही या समय !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
समय है सच
या सच समय है
सच सच है
समय समय है
इस से पहले
समय हो जाये
चलो आउट हो जायें !
बहुत सुंदर प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंसच.....बड़ा ही अरिबो गरीब होता है ये सच।
जवाब देंहटाएंशायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
जवाब देंहटाएंऔर खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है ?
गहन भाव ...
साभार !!
रश्मि जी,आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
जवाब देंहटाएंसच भी समय के साथ चलता है
और समय .... कभी इस ठौर
कभी उस ठौर
जाने कितने नाज नखरे दिखाता है ..
आपको पढना हमेशा प्रीतिकर लगता है...हमेशा की तरह अद्भुत रचना है ये आपकी...सतत उच्च स्तरीय लेखन के लिए मेरी ...बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत ठीक कहा है आपने सच भी ससमय के आठ चलता है |बहुत प्यारी कविता |सादर
जवाब देंहटाएंआशा
थक जाना और रुक जाना ....ये तो जिंदगी नहीं हैं ...
जवाब देंहटाएंजिसको सच मान बैठते हैं, वह टिकता नहीं है, समय के साथ उसका स्वरूप बदलता रहता है।
जवाब देंहटाएंkashmokash ko sunder shabdo me dhaala hai.
जवाब देंहटाएंसच बताएं
जवाब देंहटाएंहम सच जानते ही नही
सच की तलाश भी नहीं करते
फिर सच तक पहुंचना भला कैसे संभव है
शायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
जवाब देंहटाएंऔर खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है,,,,,bhaut hi gahri aur prabhaavshali prstuti....
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसच है आखिर में हम खुद ही थक कर आउट होना चाहते हैं. गंभीर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंदो दिन से बार-बार पढ़ रही हूँ
जवाब देंहटाएंसच क्या होता है जानने की कोशिश भी
शायद वह चाहता है कि हम थक जाएँ
और खुद आउट होने की ख्वाहिश रख दें
क्या यह ख्वाहिश सच है ? ?
बहुत ही सुंदर समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई !!