जब हम मान लेते है
कि हमारी बुद्धि श्रेष्ठ है
जब हम ठान लेते हैं कि किसी की नहीं सुनेंगे
तो अनहोनी बेफिक्र तांडव करती है
....
कल्पना से परे
अजीबोगरीब - हमारे विचार , हमारी शक्ल
अधर में आधार की तलाश में
अलग होते जाते हैं उनसे
जिनकी हथेली में हमारी नन्हीं सी ऊँगली
सुरक्षित होती है !
....
एक नन्हीं सी ऊँगली की सुरक्षा
हाथों की कोमलता में ही नहीं होती
कई बार हथेलियों का
मुट्ठी की शक्ल में कस जाना समय के आगे ज़रूरी होता है !
निःसंदेह तकलीफ होती है ...
पर यदि इस तकलीफ की सुरक्षा ना हो
बुद्धि छोड़ दे हाथ -
फिर जो चोट लगती है
वह तब तक लाइलाज होती है
जब तक उन हथेलियों के बीच हम खुद को रख नहीं देते !
......
अनहोनी को तो हर घड़ी इंतज़ार होता है उस पल का
कि हो द्वन्द विचारों का
कटु शब्दों के शर मन को बेधते जाएँ
रिश्ते पानी की तरह बह जाएँ
वाष्पित हो खो जाएँ .......!
इस खोने को
मोह से मुक्ति नहीं कहते
ना ही मुक्ति मिलती है मोह से
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ...
अनहोनी को तो हर घड़ी इंतज़ार होता है उस पल का
जवाब देंहटाएंकि हो द्वन्द विचारों का
कटु शब्दों के शर मन को बेधते जाएँ
रिश्ते पानी की तरह बह जाएँ
वाष्पित हो खो जाएँ .......!
बहुत सुंदर रचना
बहुत बढिया
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
जवाब देंहटाएंफूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ...
सुन्दर...! :))
एक नन्हीं सी ऊँगली की सुरक्षा
जवाब देंहटाएंहाथों की कोमलता में ही नहीं होती
कई बार हथेलियों का
मुट्ठी की शक्ल में कस जाना समय के आगे ज़रूरी होता है !
अक्षरश: सच कहा है आपने ... गहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...आभार
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
जवाब देंहटाएंतब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ...
बहुत सुन्दर दी....
सादर.
महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
जवाब देंहटाएंअनहोनी को तो हर घड़ी इंतज़ार होता है उस पल का
कि हो द्वन्द विचारों का
कटु शब्दों के शर मन को बेधते जाएँ
रिश्ते पानी की तरह बह जाएँ
वाष्पित हो खो जाएँ .......!
संवेदनशील रचना मन को छूती है।
इस खोने को
जवाब देंहटाएंमोह से मुक्ति नहीं कहते
ना ही मुक्ति मिलती है मोह से
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ..
वाह..वाह.
बहुत सुन्दर, शब्द कम पड़ते हैं आपकी रचना की तारीफ़ में.
शुभकामनाएं.
हमेशा उन हथेलियो की तलाश होती है जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित सा महसूस होता है.....वाह: कितना निश्छल कितना पवित्र अहसास .. बहुत सुन्दर गहन भाव लिए एक खुबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंवाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
जवाब देंहटाएंतब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ..
क्या बात है..जबर्दास्त्त..
पर बहुत दिनों बाद दिखीं आप. कहाँ हैं?
sidhi nd sacchi bat ....
जवाब देंहटाएंरिश्तों पर गहन विश्लेषण .... मैं अपनी कसी हुई मुट्ठी देख रही हूँ .....न जाने उँगलियाँ कब फिसल गईं
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत ही खुबसूरत।
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत ही खुबसूरत।
जवाब देंहटाएंbadhiya kavita... bahut sundar
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंइस खोने को
जवाब देंहटाएंमोह से मुक्ति नहीं कहते
ना ही मुक्ति मिलती है मोह से
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ...
जबरदस्त गहन भाव अभिव्यक्ति...बहुत ही जानदार पंक्तियाँ है।
एक नन्हीं सी ऊँगली की सुरक्षा
जवाब देंहटाएंहाथों की कोमलता में ही नहीं होती
कई बार हथेलियों का
मुट्ठी की शक्ल में कस जाना समय के आगे ज़रूरी होता है !
सही लिखा है आपने इस मोह से मुक्ति नहीं मिलती ये तो आधार हैं रिश्तों के... मर्स्पर्शी रचना... आभार
बहुत सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंसही हक है कई बार संगठित होना पड़ता है मुट्ठी में हालांकि कुछ कष्ट होता है ऐसे में पर जरूरी है ये भी ...
जवाब देंहटाएंविचारों का द्वंद कल्पना के परे साथ नहीं छोड़ता है..सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंवाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
जवाब देंहटाएंतब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी
वाह..बहुत सुन्दर
अपने दिमाग को खुला रखकर दुसरे के विचारों से अच्छी बातें ग्रहण करना किसी भी कार्य के सही तरीके से क्रिआन्वयन के लिये आवश्यक होता होता.
जवाब देंहटाएंविचारशील सुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर फूटते उदगार !
जवाब देंहटाएंवाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
जवाब देंहटाएंतब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
रिश्ते के सच को उकेर दिया
इस खोने को
जवाब देंहटाएंमोह से मुक्ति नहीं कहते
ना ही मुक्ति मिलती है मोह से
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ...
....बहुत गहन और मर्मस्पर्शी अहसास....अंतस को छूते भाव...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
jeevan kii kasak kahatii ...sundar rachna ...dii...
जवाब देंहटाएंविनाश काले विपरीत बुद्धि...
जवाब देंहटाएंजब तक अनहोनी समझ में आती है बहुत देर हो चुकी होती है|
जब हम मान लेते है
जवाब देंहटाएंकि हमारी बुद्धि श्रेष्ठ है
जब हम ठान लेते हैं
कि किसी की नहीं सुनेंगे
तो अनहोनी बेफिक्र तांडव करती है
Bikul Yahi hota hai....
बहुत उम्दा विचारों की अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...:चाय....
अहंकार नाश का कारण है और स्वाभिमान संबल!
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी अभिव्यक्ति रही यह ..
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
सच कहा आपने, इसे मुक्ति नहीं कह सकते हैं, बार बार वाष्पित हो बरसना तो चक्र है।
जवाब देंहटाएंअनहोनी को तो हर घड़ी इंतज़ार होता है उस पल का
जवाब देंहटाएंकि हो द्वन्द विचारों का
कटु शब्दों के शर मन को बेधते जाएँ
रिश्ते पानी की तरह बह जाएँ
वाष्पित हो खो जाएँ
शायद इसीलिए कहा गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि !
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
जवाब देंहटाएंफूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ....
कितनो की आखें तब भी नहीं खुलती ....
बहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आदरणिया, श्रेष्ठ लेखन है आपका...आपकी रचना मे जीवन की सहजता वास्तविकता सरल शब्दों मे दीखती है...।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सीधी सच्ची बात आपने कह दी ....
जवाब देंहटाएंइस खोने को
मोह से मुक्ति नहीं कहते
ना ही मुक्ति मिलती है मोह से
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ..
अनहोनी को तो हर घड़ी इंतज़ार होता है उस पल का
जवाब देंहटाएंकि हो द्वन्द विचारों का
कटु शब्दों के शर मन को बेधते जाएँ
रिश्ते पानी की तरह बह जाएँ
वाष्पित हो खो जाएँ .......!
जीवन का कटु सत्य है.
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....सुरक्षा की भावना जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होती हैं ...
जवाब देंहटाएंकई बार हथेलियों का
जवाब देंहटाएंमुट्ठी की शक्ल में कस जाना समय के आगे ज़रूरी होता है !.... अद्भुत.... सुन्दर...
सादर.
सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं ।
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
इस खोने को
जवाब देंहटाएंमोह से मुक्ति नहीं कहते
ना ही मुक्ति मिलती है मोह से
वाष्पित रिश्ते जब बरसते हैं
तब उमस सा खालीपन अपनी बुद्धि पर
फूट फूटकर रोता है बुद्धू की तरह
उन हथेलियों के लिए
जिनमे कसी ऊँगली दबके भी सुरक्षित थी ...waah bahut khub ..