खींचता है मुझे अपनी तरफ
वो ब्लैक एंड व्हाइट का ज़माना
गीत, तस्वीरें
वो अल्हड़पन ...
जाने कब तक सुनती जाती हूँ कोई खोया खोया
अधजगा सा गीत
प्यास,उदासी,मिट्टी, इंतज़ार के !
रंगीन तस्वीरों को
ब्लैक एंड व्हाइट करती जाती हूँ
और ... बात ही बदल जाती है !
कविता सुनते हुए
शायद कविता से भी अधिक खूबसूरत, मोहक
मुझे ब्लैक एंड व्हाइट में उभरते पात्र लगते हैं
उनकी घूमती नज़रें
उनका बेफ़िक्र सा अंदाज़
लगता है,
कुछ यूँ महसूस होता है,
जैसे किसी ने मुझे बाँधकर बैठा दिया है !
सपनों के ब्लैक एंड व्हाइट बादल उमड़ते हैं
और,
एक प्याली चाय के संग मैं गुनगुनाने लगती हूँ
"ऐसे में कहीं कोई मिल जाए"
एक तितली मेरे कंधों पर आकर बैठ जाती है
काले मेघ रिमझिम बरसने लगते हैं,
चेहरे पर समेटने लगती हूँ मैं
-बारिश की बूँदों को,
वक़्त प्यानो बजाने लगता है
मैं धीरे से कहती हूँ,
"मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं"(अमृता प्रीतम)
सुनाई देती है उसकी चिर परिचित आवाज़
....
"बाँध दिए क्यों प्राण प्राणों से!
तुमने चिर अनजान प्राणों से!
यह विदेह प्राणों का बंधन,
अंतर्ज्वाला में तपता तन,
मुग्ध हृदय सौन्दर्य ज्योति को,
दग्ध कामना करता अर्पण,
नहीं चाहता जो कुछ भी आदान प्राणों से! "
( सुमित्रानंदन पंत)