29 अगस्त, 2008

जहेनसीब.....


शायराना - सी कोई दस्तक
रूह तक हुई है
ख्यालों की कलम
मन के कैनवास पर
एक खुशनुमा शायरी लिख गई है.............
तुमने दिए थे सफ़ेद कबूतर
उन्हीं का पैगाम तुम्हे खींच लाया है !
मेरे दिल के ख्वाबगाह में
गुनगुनाता है एक ग़ज़ल कोई
जो तुम्हारी शक्ल लेता है !
मेरी तूलिका ने बाँधा है इन लम्हों को
आज तुमने मुझे
शायराना ख्यालों की वसीयत दी है....
मेरी आंखों में नज्मों की
एक नदी भर दी है
मेरे हाथों में
कलम की पतवार दे दी है
जहेनसीब -
अब कोई ख्वाहिश नहीं है !!!

25 अगस्त, 2008

आह ! - कृष्ण


जन्म लेते -
काली रात,मूसलाधार बारिश...
एक टोकरी में
बेतरतीबी से कपड़े में लिपटे
बालक कृष्ण,
पिता वसुदेव संग
यमुना को पार करके गोकुल पहुंचे....
यमुना का बढ़ता जल,
-कुछ भी हो सकता था,
पर विधि ने साथ दिया
यमुना का जल शांत हुआ!
कभी पूतना,कभी शेषनाग के हाथ पड़े,
पर होनी ने उनको अद्भुत बना दिया!
कंस का निर्धारित काल बनकर
कृष्ण ने हर मुसीबतों का सामना किया!
लक्ष्य ने -
गोकुल से मथुरा भेजा
बचपन को तज कर
सर झुकाकर
काल के निर्णय को स्वीकार किया !
....
इतनी कठिनाइयों से
भगवान् ही जूझ सकते हैं
इंसानों ने कृष्ण को भगवान् बना दिया....
शक्तिशाली हाथों मे
सुदर्शन चक्र दिया
माथे पर मोर मुकुट
हाथों में बांसुरी -
कृष्ण की पसंद को स्थापित किया....
पर किसी ने नहीं सोचा,
कृष्ण को माँ यशोदा की याद आती है !
यमुना तीरे बैठकर उनकी दृष्टि
दूर-दूर तक जाती है....
मक्खन , गाय , माँ की झिडकियां,
पूरे गोकुल में उधम मचाना
......सब याद आते हैं !
एक कंस के बाद,
कई कंस आए...
इन रास्तों को पार करते-करते
कृष्ण थक चले
परमार्थ में भगवान् तो बने
पर आलोचना के शिकार हुए !
..........
कृष्णपक्ष  की घनघोर बारिश में
जब सारी दुनिया
कृष्ण को पूजती है,
उनका जन्मोत्सव मनाती है.........
कृष्ण गोकुल लौट जाना चाहते हैं !

23 अगस्त, 2008

कौन भूलेगा???????


इक्कट -दुक्कट खेलने में
घुटने दुखते हैं !
हाँ भाई ,
उम्र हुई,
पर इतनी भी नहीं
कि,रुमाल चोर नहीं खेल सकते !
अरे टीम बन जाए
तो क्रिकेट का बल्ला
आज भी घुमा सकते हैं !
पर एक पल के लिए भी
बचपन को नहीं भूलेंगे.............
बचपन का मैदान बहुत बड़ा होता है,
एक चौकलेट की जीत भी
आखों में चमक भर जाती है !
ऐसे बचपन को,
ऐसी मासूमियत को,
ऐसी छोटी-छोटी जीत को
भला कौन भूलना चाहेगा !

21 अगस्त, 2008

मुझे लगता है.....


मुझे अक्सर लगता है,
एक तितली सोयी है-
एक लंबे सपने के साथ.....
सपने में,
वह मुझे जी रही है,
यानि मैं - तितली का एक सपना हूँ!
जहाँ उसकी नींद खुली,
सपना ख़त्म....
मैं?
क्या पता,
तितली फिर मुझे कौन सा जन्म देगी
- सपने में !!!!!!

19 अगस्त, 2008

एक कप कॉफी............


बादलों की गर्जना,
कड़कती बिजली,
बारिश की तेज बौछारें,
मंद-मंद हवाएं !
हल्की ठण्ड का आलम है............
एक गर्मागर्म कॉफी हो जाए!
.........
कॉफी और मौसम तो बस बहाना है-
साथ बैठने का,
रिश्तों की खोई गर्मी को लौटाने का.........
बादल तो फिर चले जायेंगे,
बिजलियों की कड़क,
बारिश की फुहारें थम जाएँगी,
मुमकिन है कॉफी ठंडी हो जाए!
पर अगर हाथ थाम लो
तो जीवन की राहें आसान हो जाएँ
और कॉफी की खुशबू साथ हो जाए............

17 अगस्त, 2008

एक सपना,एक मुस्कान.......


मेरे पास सपने हैं,
खरीदोगे?
आसमानी , रूमानी , ख्याली.....
कीमत तो है कुछ अधिक ,
पर कोई सपने बेमानी नहीं.......
जो भी लो-हकीकत बनेंगे,
शक की गुंजाइश नहीं!
.....कीमत है - एक मुस्कान,
सच्ची मुस्कान,
झरने-सी खिलखिलाती,
हवाओं - सी गुनगुनाती,
बादलों- सी इठलाती.......
आज की भागमभाग में
इसी की ज़रूरत है !
तुम एक सपना लो-
और मेरे पास एक मुस्कान दे जाओ,
.......
इनसे ही मेरे घर का चूल्हा जलता है!

14 अगस्त, 2008

बीती कहानी बंद करो........


इति यानि बीती........हास यानि कहानी...
बीती कहानी बंद करो!
नहीं जानना -
वंदे मातरम् की लहर के बारे में,
नहीं सुनना -
'साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल....'
नहीं सुनना-
'फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल....'
नहीं जानना-
ईस्ट इंडिया कंपनी कब आई!
कब अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया!
कहना है तो कहो-
आज कौन आतंक बनकर आया है!
और अब कौन गाँधी है?
कौन नेहरू?कौन भगत सिंह ?
वंदे मातरम् की गूंज
किनकी रगों में आज है?
अरे यहाँ तो अपने घर से
कोई किसी को देश की खातिर नहीं भेजता
( गिने-चुनों को छोड़कर )
जो भेजते हैं
उनसे कहते हैं,
'एक बेटा-क्यूँ भेज दिया?'
क्या सोच है!
........
ऐसे में किसकी राह देख रहे हैं देश के लिए?
देश?
जहाँ से विदेश जाने की होड़ है..........
एक सर शर्म से झुका है,
'हम अब तक विदेश नहीं जा पाए,'
दूसरी तरफ़ गर्वीला स्वर,
'विदेश में नौकरी लग गई है'
........
भारत - यानि अपनी माँ को
प्रायः सब भूल गए हैं
तो -
बीती कहानी बंद करो!!!!!!!!1

09 अगस्त, 2008

लहरें.........




( १ )


मैं कोई लहर नहीं
जो आकर लौट जाऊँ....
बालू का घरौंदा भी नहीं
जिसे तोड़ दिया जाए.......
मैं मन हूँ,
मैं आंगन हूँ,
जो बचपन की आंखों में पनाह लेता है
और कभी नहीं खोता .......
तुम जब तक समझ पाओ-
ये पास आ जाता है,
फिर लम्बी बातें करता है
लंबे-लंबे रास्तों की
लम्बी-लम्बी यादों की.........

( २ )
लहरें मेरे अन्दर भी उठती हैं
घरौंदे कभी उसकी गिरफ्त में आते हैं
कभी रह जाते हैं !
कभी मोती
तो कभी दर्द के नक्शे कदम मिल जाते हैं!
डुबोया तो जाने कितना कुछ
पर लहरों के संग
वापस चले आते हैं.......
रात के सन्नाटे में
लहरों का शोर!!!
थपकियाँ देती हूँ खुद को ,
पर नींद-लहरें बहा ले जाती हैं !
...........
क्या करूँ इन लहरों का ?!

04 अगस्त, 2008

एक अदद आया.......


वह दिन दूर नहीं,
जब पढ़ी-लिखी लडकियां
'आया' की जगह के लिए अप्लाई करेंगी !
बहुत सारी कंपनियों की तुलना में
एक आया
अधिक कमाने लगी है,
क्योंकि -
उसकी मांग और ज़रूरत बढ़ गई है........
बोनस पॉइंट -
paid leave ,
रहने की सुविधा ,
मेडिकल सुविधा ,
फ्री प्रसाधन सामग्री ,
कपड़ा हर त्यौहार पर !
..........
अचानक गायब होने पर
ज़ोर की डांट भी नहीं,

कभी भी खतरे की घंटी बजा सकती है ,

पैरों तले ज़मीन हटा सकती है !

.......

इतनी सारी सुविधाओं के साथ ,

..... आकर्षक आय ,

कभी भी बढ़वाने का मौका ,

एक्स्ट्रा वर्क - एक्स्ट्रा मनी

और...........

खुशामद की चाशनी !


02 अगस्त, 2008

अपने.....!


अपमान की आग जब लगी

तो,

हाथ सेंकनेवाले अपने ही थे !

मासूमियत का मुखौटा पहन

सिहरते हुए,

घी डालते गए !

बढती लपटों ने

कितनी भावनाओं को अपनी चपेट में लिया-

इससे बेखबर ,

हाथ सेंकते गए............

कुछ रहा ही नहीं कहने को,

और न कुछ अपना लगता है,

सिवाय उन बातों के -

जिसका पाठ

इन्होंने ही पढाया..............!!!!!!

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...