06 अप्रैल, 2011

शब्दों का रिश्ता शुरू करें



परिचय का सूत्र तुमने उठाया
बेशक कलम की नोक पर
अच्छा लगा था
तुम्हारे शब्दों की हरियाली पर
कुर्सी लगा - चाय पीना
तुमने शब्दों से भरे अपने सारे कमरे खोल दिए
कहीं नन्हें नन्हें कपड़े थे
कहीं तुम्हारी उतरी चूड़ियाँ
कहीं तुम्हारे अकेलेपन के औंधे ख्याल
कहीं झूठमूठ का इंतज़ार
कहीं सीलन
कहीं चीखते एहसास
कहीं सिकुड़े जज़्बात
कहीं स्वाभिमान की आहटें ...

जाने तुमने जाना या नहीं
मैंने तुम्हें दी थीं थपकियाँ
तुम्हारी चूड़ियों को पोछ
करीने से रख दिया था
नन्हें कपड़ों के मीठे ख्याल
तुम्हारे सिरहाने रख दिए थे
तुम्हारे ख्यालों को अलगनी पे टांग
खिड़कियाँ खोल सीलन दूर किया
तुम्हारी चीख को जेहन में भर लिया
....
तुम्हारे स्वाभिमान की कीमत
तुमसे अधिक
या मुझसे अधिक कौन समझ सकता है
अपने स्वाभिमान की रक्षा में
मैंने शब्दों को जिया है
और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है
तभी - मेरे घर में किसी के आने की
सीमित आहटें हैं
... बढ़ाओ दोस्ती का हाथ
भरोसा करो मुझ पे
कॉल बेल लगा लो शब्दों का
आहटों को सीमित कर लो
फिर देखना
शब्दों के मंजर खूब खिलेंगे
और उनकी खुशबू
तुम्हें नई पहचान देगी
आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें !!!

42 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों का रिश्ता ...यही तो नहीं बना पाते लोग या फिर बना बनाया तोड़ देते हैं और वहीँ से शुरू होती हैं गलत फहमियां.
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.

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  2. रश्मिजी,
    प्रत्येक शब्द की असीम संभावनाएं पंख पसारे हुए उड़ान करने लगी | पूरी रचना ने झंकृत कर दिया |

    तुम्हारे स्वाभिमान की कीमत
    तुमसे अधिक
    या मुझसे अधिक कौन समझ सकता है
    अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है
    तभी - मेरे घर में किसी के आने की सीमित आहटें हैं
    ... बढ़ाओ दोस्ती का हाथ
    भरोसा करो मुझ पे

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  3. तुमने शब्दों से भरे अपने सारे कमरे खोल दिए
    कहीं नन्हें नन्हें कपड़े थे
    कहीं तुम्हारी उतरी चूड़ियाँ
    कहीं तुम्हारे अकेलेपन के औंधे ख्याल komal ehsas....bahut sunder...

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  4. तुम्हारे स्वाभिमान की कीमत
    तुमसे अधिक
    या मुझसे अधिक कौन समझ सकता है

    जी हाँ कौन पहचान सकता है आखिर संबंधों का मामला है .....आपने बहुत गंभीरता से विचार किया है आपका आभार

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  5. अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है
    तभी - मेरे घर में किसी के आने की
    सीमित आहटें हैं....
    आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें !!!

    आज के व्यक्तिपरक समाज में यह शब्दों का रिश्ता कायम करना ही सबसे मुश्किल हो गया है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण और विचारणीय प्रस्तुति...आभार

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  6. रश्मि जी आपकी कलम ने अपना लोहा एक बार मनवा लिया है...शब्द नहीं हैं मेरे पास प्रशंशा के, इस अद्भुत रचना के लिए...आपके शब्द कौशल को मेरा नमन है...भावनाओं को जिस तरह आपने अपनी रचना में पिरोया है वो लाजवाब है...मेरी बधाई स्वीकार करें...
    नीरज

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  7. आदरणीय रश्मि जी
    नमस्कार !
    दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  8. अच्छा लगा था
    तुम्हारे शब्दों की हरियाली पर
    कुर्सी लगा - चाय पीना

    दीदी, बिलकुल गजब है ये कविता ... बिलकुल गजब !

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  9. तुम्हारे स्वाभिमान की कीमत
    तुमसे अधिक
    या मुझसे अधिक कौन समझ सकता है
    अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है
    तभी - मेरे घर में किसी के आने की सीमित आहटें हैं
    ... बढ़ाओ दोस्ती का हाथ
    भरोसा करो मुझ पे.........................

    रिश्तो को एहसास और स्वाभिमान से जीने की कला
    हर कोई नहीं जानता ....तभी तो आज के वक़्त में
    गरिमामय रिश्ता धुंधला सा दिखता है .........सच्चे हृदय की सच्ची अभिव्यक्ति

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  10. अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    bahut khoob
    agazal

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  11. आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें....बहुत खूब।

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  12. फिर देखना
    शब्दों के मंजर खूब खिलेंगे
    और उनकी खुशबू
    तुम्हें नई पहचान देगी
    आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें !!!
    शब्दों का रिश्ता बनाना बहुत जुरुरी है एकदम सही बात , सुन्दर रचना , बधाई

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  13. ekdam nayapan liye abhivykti ka ye andaaz bahut bhavpoorn raha.......

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  14. ekdam nayapan liye abhivykti ka ye andaaz bahut bhavpoorn raha.......

    जवाब देंहटाएं
  15. अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है
    तभी - मेरे घर में किसी के आने की
    सीमित आहटें हैं

    आहटें भले ही सीमित हों ...स्वाभिमान के बिना क्या ज़िंदगी ...प्रेरक रचना ...

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  16. शब्दों का रिश्ता, अर्थों में छिपी अभिलाषा।

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  17. pata nahi kaise mere shabd bikhar rahe..
    bikhre shabdo ke tinke samet, phir ek aashiya banana chahti hu...ILu..!

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  18. क्या शब्द चुने आपने.....शब्दों का रिश्ता .... सुंदर

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  19. कॉल बेल लगा लो शब्दों का
    आहटों को सीमित कर लो
    फिर देखना
    शब्दों के मंजर खूब खिलेंगे
    और उनकी खुशबू
    तुम्हें नई पहचान देगी
    आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें !!!......निराला ने जिस लयात्मकता के लिए छंद को तोडा था वह आपकी कविता में परिलक्षित हो रही है. मुबारक हो!
    ----देवेंद्र गौतम

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  20. तुम्हारे शब्दों की हरियाली पर कुर्सी लगा चाय पीना ...
    तुमसे अधिक या मुझसे अधिक तुम्हारे स्वाभिमान को कौन समझता है ...
    शब्दों की कॉल -बेल
    शब्दों का रिश्ता ...

    शब्दों को कैसे अपनी लेखनी से नचाना है , बखूबी जानती हैं आप ..
    शानदार !

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  21. आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें....बहुत खूब।

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  22. हर शब्द मुखर है . शब्दों में छुपे भाव प्रखर है . आभार .

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  23. तुम्हारे स्वाभिमान की कीमत
    तुमसे अधिक
    या मुझसे अधिक कौन समझ सकता है
    अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है
    तभी - मेरे घर में किसी के आने की
    सीमित आहटें हैं
    ... बढ़ाओ दोस्ती का हाथ
    भरोसा करो मुझ पे

    शब्‍दों का रिश्‍ता ...सिखा रहे जिन्‍दगी जीने का सलीका जहां अपने अहसासों को पढ़ना होगा नये शब्‍दों की रचना के लिए ...शब्‍दों के माध्‍यम से एक अनमोल कृति ....।।

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  24. आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें !!!kitna sundar hoga ye rishta......soch rahi hoon.....

    जवाब देंहटाएं
  25. तुम्हारे स्वाभिमान की कीमत
    तुमसे अधिक
    या मुझसे अधिक कौन समझ सकता है
    अपने स्वाभिमान की रक्षा में
    मैंने शब्दों को जिया है
    और शब्दों की कॉल बेल ही लगा रखी है.......


    सारगर्भित भाव .

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  26. क्या कहूँ निशब्द कर दिया……………बेहतरीन्।

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  27. ज़बरदस्त प्रतीकों और बिम्बों का इस्तेमाल देखते बन रहा है इस कविता में. आपकी क़लम का जवाब नहीं.

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  28. "कहीं नन्हें नन्हें कपड़े थे
    कहीं तुम्हारी उतरी चूड़ियाँ
    कहीं तुम्हारे अकेलेपन के औंधे ख्याल
    कहीं झूठमूठ का इंतज़ार..."
    दीदी,शब्दों में ही सारे रिश्ते समाये हैं.आपकी लेखनी ने उसमें प्राण डाल दिए है.सहज एवं सुलभ बिम्बों ने अर्थ को पारदर्शी बना दिया है.

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  29. शब्दों का कालबेल - एक अनूठी उपमा।

    जवाब देंहटाएं
  30. शब्दों के मंजर खूब खिलेंगे
    और उनकी खुशबू
    तुम्हें नई पहचान देगी
    आओ शब्दों का रिश्ता शुरू करें !!!
    ..
    .. दीदी आपकी कविता पर टिप्पड़ी करने में नितांत अक्षम, मगर बात करने का फिर भी कोई ना कोई तरीका ढूंढ ही लूँगा मैं 'बेशक कलम को नोक पर ' ! एक नए प्रकार का रिश्ता बनाने और रास्ता दिखाने के लिए ह्रदय से आभार दी !

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  31. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  32. मेरे घर में किसी के आने की
    सीमित आहटें हैं
    ... बढ़ाओ दोस्ती का हाथ
    भरोसा करो मुझ पे
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    बहुत बहुत आभार .......

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  33. हमने रिश्‍तों को जो नाम दिए हैं वही तो शब्‍द हैं आखिर । अगर शब्‍दों में विश्‍वास न रहे,तो फिर रिश्‍तों में कैसे रहेगा।

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  34. क्यूँ लगा ऐसा कि कहीं न कहीं ये मेरे भाव हैं ... मेरे लिए हैं ... कोई पाठक यदि ऐसा सोचे तो ये रचनाकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाएगी ... अगर कोई ख़ास शब्दों के पुंज ले कर कहूँ कि ये अच्छे हैं तो नाकाफी होगा ... पूरी रचना दिल को छू गयी ...
    ...अनिता

    जवाब देंहटाएं
  35. आदरणीया ,रश्मि प्रभा जी सप्रेम साहित्याभिवादन ..
    आपकी रचनाओं में लहरें हैं जो मन की भवरों में गुम -हो जाती है जहाँ से वापस आना अच्छा नहीं लगता बहुत सुन्दर रचाना
    आपको ढेर सारी शुभकामनाएं ,हार्दिक बधाई ...
    सादर
    लक्ष्मी नारायण लहरे
    --

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