वह ... उसका कोई नाम नहीं
वह बस एक राजा था
जो रात के अँधेरे में निकलता
और प्रजा के दुःख दूर कर देता
मिनटों में किसी का बुझा चूल्हा जला देता ...
वह ... उसका कोई नाम कैसे हो सकता है भला !
नाम देने से वह नाम में बंध जायेगा
और वह नाम नहीं चाहता था
वह तो महल में रख देता था ताज
बेशकीमती लिबास...
साधारण कपड़ों में निकल जाता
बिना किसी पहचान के
कोई प्यार से सूखी रोटी भी देता
तो खाता बड़े चाव से
सर पे रखता हाथ
और .... दुःख के सारे बादल गायब !
सुनी थी उसकी बहुत सारी कहानियाँ
मिलने की थी अदम्य चाह
कब मिलेगा वह साई
धुन लगी रही ....
पौ फटा , सूरज उगा
एक तेज मेरे करीब आता गया
वह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
दुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
या आशीष !
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
जवाब देंहटाएंमुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई॥
हर पंक्तियाँ बहुत सुन्दर है! भावपूर्ण रचना! दिल को छू गयी!
मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतज़ार है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
नाम में मत बांधिए उन्हें ... दुआओं का स्रोत अनवरत बहने दीजिए ...।।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा...
जवाब देंहटाएंपरोपकार ऐसे ही होता है
गुमनाम, बेनाम... नाम दे दिया तो उसकी तासीर बदल जाती है
........... क्या नाम दूँ उसे ?
जवाब देंहटाएंसाई , दुआ , सूरज या अर्घ्य
या आशीष !
naam mat dijiye... wo benaam hi achchha hai... achchhe kaam to kartaa hai... naam dene ke baad kisi jaati vishesh me ulajh kar rah jayegaa
bahut sundar rachnaa hai... bahut badhiyaa
एक तेज मेरे करीब आता गया
जवाब देंहटाएंवह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
दुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज या अर्घ्य
या आशीष !bahut hi sikshaprad rachanaa.bahut hi sunder shabdon ka chayan.dil ko choo gai aapki rachanaa.pahali baar aapke blog main aai hoon .bas kya kahoon aapki rachanaon ki murid ban gai hoon.
plese visit my blog and leave the comments also.aabhaar
bahut sunder abhivyakti hai
जवाब देंहटाएंishwar ko apne andar dhaal lene ki
वह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
जवाब देंहटाएंदुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
नदी में ही सब कुछ समा गया है अलग से नाम की चाह क्यों रहे ? बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
"मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
जवाब देंहटाएंमुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई"
ऐसा ही होता है जब कोई अपना उद्देश्य जान लेता है.जल पाते ही नदी मुक्कमल हो जाती है क्योंकि वह अपना सर्वस्व न्योछावर करने लक्ष्य जान जाती है.
मुकम्मल भाव प्रस्तुति!! बेहद भावप्रधान!!
जवाब देंहटाएंमैं नदी बन गई और वह साई जल बन
जवाब देंहटाएंमुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज या अर्घ्य
या आशीष...
एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती सुंदर कविता !
लाज़वाब प्रस्तुति...बहुत भावपूर्ण..
जवाब देंहटाएंनाम मे क्या रखा है जो पाना था वो तो मिल गया ना…सुन्दर भावमयी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज कल आपकी कविता ... आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रही है। एक विशेष अर्थ और दृष्टि लिए।
जवाब देंहटाएंadbhud kavita... kho saa hee gaya main kavita kee lahron me...
जवाब देंहटाएंएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
जवाब देंहटाएंसुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .
दुःख हो, खुशी हो, या अध्यामित्कता सबकुछ एहसास पर निर्भर है .. बहुत सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंनाम में कुछ भी नहीं रखा है, जो सबको कुछ दे और बिना स्वार्थ के वह इंसान भी हो तो देवता है. और देवता किसी नाम के मुहताज नहीं होते तभी तो वे अपने ताज और बेशकीमती कपड़ों की नुमाइश किये बना ही परमार्थ की ओर चलते हैं.
जवाब देंहटाएंमैं नदी बन गई और वह साई जल बन
जवाब देंहटाएंमुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज या अर्घ्य
या आशीष !
सुंदर शब्द रचना --बचपन मै सुनती थी ..ऐसी मनमोहक रचना ..कहानियों के माध्यम से ..धन्यवाद !
भक्ति में ऐसे लीन , जैसे मेहंदी के पात में रंग छुपा ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना ।
वह जो भी हो, इस जगत में बना रहे।
जवाब देंहटाएंbhavpoorn prastuti.
जवाब देंहटाएंदी,बहुत सुन्दर भाव ......सादर !
जवाब देंहटाएंयह सब नाम हमने दिए है
जवाब देंहटाएंउसका कोई नाम नहीं वह अनाम है !
अच्छी रचना ..........
नाम में बांधना ही क्यों.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर.
गहन विचार से भरी रचना...संवेदनशीलता से अंतस को छूती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..आभार
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सुन्दर और भावप्रणव रचना!
जवाब देंहटाएंAcha likha mam apne.
जवाब देंहटाएंJai hind jai bharat
uske aashish kaa jal kal hi aankhon se chhalkaa tha ... naam mat do ..
जवाब देंहटाएंभावप्रवण कविता पढवाने का आभार....
जवाब देंहटाएंभावप्रवण कविता पढवाने का आभार....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कविता.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कविता.
जवाब देंहटाएंअब भी ऐसे राजा होते हैं क्या...ये कहानियां तो बचपन में ही ख़तम हो गयीं...अब के राजा लग्जरी गाड़ियों पर चलते हैं...और प्रजा को लूट के निकाल लेते हैं...गरीब सड़क के किनारे सोने में भी थर्राते हैं...
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने बहुत मुश्किल है उन दुआओं को एक नाम दिया जाये...
जवाब देंहटाएंवह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
जवाब देंहटाएंदुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
aise hi aashish milata rahe jivan me,bas
जवाब देंहटाएंsundar bhav.
aise hi aashish milata rahe jivan me,bas
जवाब देंहटाएंsundar bhav.
दुआओं का स्रोत था
जवाब देंहटाएंमैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
wah.......
bahur achchi bhaav poorn rachna.dua aasheesh,hi hume aage badhne ki prerna dete hain.umda rachna.
जवाब देंहटाएंbhaavmayee!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है |
जवाब देंहटाएंबधाई
आशा
sab bandan se pare ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna...
मोहतरमा रश्मि जी ! आज जागरण के ज़रिये आपके ब्लॉग पर आना हुआ तो यह रचना पढ़ी और इसमें यह रहस्यमय लगा -
जवाब देंहटाएंवह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
दुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
या आशीष !
ईश्वर से एकाकार होना रहस्य सा लग सकता है
जवाब देंहटाएंवह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
जवाब देंहटाएंदुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
या आशीष !
ये सच है रश्मि जी आप एक मुकम्मल नदी हो गई आपकी रचना में दिखता है, उसका तेज और आशीष...किसी भी नाम से पुकारिए उसे .... बहुत सुंदर रचना .....
aap bhi naam puchne lagi di :)
जवाब देंहटाएंjai jai sai
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
जवाब देंहटाएंया आशीष !
इतना शुभ सुंदर एहसास बेनाम ही अच्छा लग रहा है ...!!
विस्तार ही विस्तार है ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..!!
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
जवाब देंहटाएंउदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
या आशीष !
...sab ek hi to hai.. sab us ishwar mein mein samahit hain...
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
जवाब देंहटाएंमुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई॥.......
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
पौ फटा , सूरज उगा
जवाब देंहटाएंएक तेज मेरे करीब आता गया
वह .... वह राजा जो एक फ़कीर था
दुआओं का स्रोत था
मैं नदी बन गई और वह साई जल बन
मुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
या आशीष !
kya baat hai bhagvan se milan ka sunder chitran .
bahut khoob
saader
rachana
behad khoobsurat... sari mazhabi seemaayen khatm kar ho gayi... ek sachchi aatmik azaadi se bhari rachna!
जवाब देंहटाएंमैं नदी बन गई और वह साई जल बन
जवाब देंहटाएंमुझमें भरता गया
मैं एक मुकम्मल नदी हो गई
उदित सूर्य का अर्घ्य
........... क्या नाम दूँ उसे ?
साई , दुआ , सूरज , अर्घ्य
या आशीष !
ahsaas bana rahe uske hone ka ,naam na bhi ho to chalega ,bahut badhiya likhti hai aap .
नदी विचारों की बहती ही रहती है
जवाब देंहटाएंजितनी गहरे उतरते हैं हम उसमें
उतना ही वह गहरी बात कहती रहती है।
आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं ...।
जवाब देंहटाएंदीदी उसे प्रभु कहो ना आप ....नाम कुछ भी दे दो क्या फर्क पड़ता है दी !
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सी ...शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंnadi ka ek naya roop............bahut acchi prastuti rahi aapki
जवाब देंहटाएं