मुझे लगता था मेरी खाई लम्बी है
पर तुम्हारी खाई
अंधे कुँए सी है .....
मुझे अपनी खाई के
उबड़खाबड़ रास्तों का तत्वज्ञान है
तो गिरकर निकलना सहज होता है ...
!!!!!!!!
सहज कहें या असहज
बार बार चोट लगी जगह की चोट
आंसू के एक उबाल से ठीक हो जाती है
आदत कहूँ या
जीने की एक सतत प्रक्रिया ...
जो भी हो !
खाई के अंधेरों का खौफ ...
निकलने की जद्दोजहद
ऐसे में
किसी और की खाई रास नहीं आती
बमुश्किल स्नेहिल मिट्टी से
मैं उसे भरने का अथक प्रयास करती हूँ
किसी और की सूनी सूखी आँखें
मुझे रास नहीं आती
झूठी हँसी आईने में देखते देखते
इस कदर उब चुकी हूँ
कि सामने उससे रूबरू होना
गवारा नहीं होता ...
पर दोस्ती के कुछ उसूल होते हैं
'बुरे वक़्त में ही दोस्त की अपनों की
पहचान होती है'
मैं अपनी पहचान कैसे खो दूँ
मैंने बुरे वक़्त को लम्हा लम्हा झेला है
उसकी टीस से वाकिफ हूँ
तो निःसंदेह मैं खाई में चलती
तुम्हारी साँसों से भी वाकिफ हूँ
और यकीनन तुम्हारे साथ हूँ !
साथ साथ चलते हुए
जब एक दूसरे की चोट पर
हम मरहम लगाते हैं (जो एक्सपाइरी नहीं)
कि 'कीचड़ में ही कमल की पहचान है'
तो उखड़ी उखड़ी साँसों के बीच भी
खिलखिलाने का सबब मिल ही जाता है
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
है ना ?
झूठी हँसी आईने में देखते देखते
जवाब देंहटाएंइस कदर उब चुकी हूँ
कि सामने उससे रूबरू होना
गवारा नहीं होता ...
मैं अपनी पहचान कैसे खो दूँ
मैंने बुरे वक़्त को लम्हा लम्हा झेला है
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
है ना ?
दुःख में ही पहचान होती है दोस्ती की ...बहुत अच्छी रचना ...
जब सच्चा दोस्त हो साथ तो टीस जाती रहती है ,पता ही नहीं चलता कि कब दर्द पी लिया । बहुत ही भावपूर्ण रचना..शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंbhthtrin mlhm .bhtrin khaai lekin amirir gribi or dhrmon ke bich pehi khaai bhi hme paatnaa hai samaprdaayiktaa or bhrashtaachaar ke zkhmon par bhi mlham lgaana hai . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंअपनी खाई सबको बड़ी लगती है...जिंदगी में समतल जमीन की कल्पना बेमानी लगती है...उतना तू उपकार समझ कोई जितना साथ निभा दे...जनम मरण का मेल है सपना ये सपना बिसरा दे...कोई न संग मरे...मन रे तू कहे न धीर धरे...
जवाब देंहटाएंgahan soch samjh kee upaj hai ye abhivykti
जवाब देंहटाएंबमुश्किल स्नेहिल मिट्टी से
मैं उसे भरने का अथक प्रयास करती हूँ
ati sunder prayas har khaee se ubhar aane ka.....
आँसुओं का अपना अभिमान होता है, बहुत सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंखाई के अंधेरों का खौफ ...
जवाब देंहटाएंनिकलने की जद्दोजहद
रश्मि जी, आपकी सोंच को नमन , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,
"साथ साथ चलते हुए
जवाब देंहटाएंजब एक दूसरे की चोट पर
हम मरहम लगाते हैं (जो एक्सपाइरी नहीं)
कि 'कीचड़ में ही कमल की पहचान है'
तो उखड़ी उखड़ी साँसों के बीच भी
खिलखिलाने का सबब मिल ही जाता है "
एक सच कहा आपने इस कविता में.
सादर
वाह रश्मि जी ! दोस्ती का यह स्वरुप जो बुरे वक़्त की खाई में भी समतल ला देता है.. आपकी रचना बहुत उम्दा है... सादर
जवाब देंहटाएंएक भावपूर्ण रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंHaaa... ILu...!
जवाब देंहटाएंek nayi kalpna , bahut khoob
जवाब देंहटाएंजब एक जैसे दुःख से गुजरने वाली भावनाएं साथ मिल कर चलती हैं तो जीवन के उबड़ खाबड़ रास्ते भी समतल हो जाते हैं ...दुःख साथ बाँट जाता है और हंसी में तब्दील हो जाता है, इससे आंसुओं का स्वाभिमान भी बचा रहता है ...
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति !
साथ साथ चलते हुए
जवाब देंहटाएंजब एक दूसरे की चोट पर
हम मरहम लगाते हैं (जो एक्सपाइरी नहीं)
कि 'कीचड़ में ही कमल की पहचान है'
तो उखड़ी उखड़ी साँसों के बीच भी
खिलखिलाने का सबब मिल ही जाता है
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
है ना ?
आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ाने के लिये भावनाओं का योगदान भी समाहित है .... शब्द - शब्द एक सच कहता हुआ ...जीवंत ।
@ आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
जवाब देंहटाएं*** बहुत सुंदर प्रयोग।
कविता अच्छी लगी।
आदरणीया
जवाब देंहटाएंपूरी कविता ही बड़ी भावुक है......अच्छी है...
मगर इस अंश की तारीफ जितनी की जाये उतनी कम है......
किसी और की सूनी सूखी आँखें
मुझे रास नहीं आती
झूठी हँसी आईने में देखते देखते
इस कदर उब चुकी हूँ
कि सामने उससे रूबरू होना
गवारा नहीं होता ...
बहुत सुन्दर
झूठी हँसी आईने में देखते देखते
जवाब देंहटाएंइस कदर उब चुकी हूँ
कि सामने उससे रूबरू होना
गवारा नहीं होता ...bahut sunder...dard ki abhivaykti bhi sunder saral shbdon me.
उम्दा रचना है............
जवाब देंहटाएंतो उखड़ी उखड़ी साँसों के बीच भी
खिलखिलाने का सबब मिल ही जाता है
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है ...........दोस्त साथ हों तो सच, कुछ यूँ ही हो जाता है कि खराब वक्त में भी मुस्कुराने का सबब मिल जाता है
सहज कहें या असहज
जवाब देंहटाएंबार बार चोट लगी जगह की चोट
आंसू के एक उबाल से ठीक हो जाती है
आदत कहूँ या
जीने की एक सतत प्रक्रिया ...
जो भी हो !
बहुत भावमयी सुन्दर प्रस्तुति...बहुत मर्मस्पर्शी
पर दोस्ती के कुछ उसूल होते है
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा
सुंदर रचना .....
.....आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
जवाब देंहटाएंहै न ?
****************************
गहन भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति
आदरणीया रश्मि जी ,
कृपया मेरे ब्लाग पर दुबारा आने का कष्ट करें | रचना दो बार पोस्ट हो गयी थी ,जिसमे एक अधूरी थी |
अब सुधार कर दिया है |
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
जवाब देंहटाएं..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
है ना ?
शायद यही दोस्ती होती है……………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
di
जवाब देंहटाएंbahut hi gari baat ko bahut hi gahanta ke saath abhivykt kiya hai.
साथ साथ चलते हुए
जब एक दूसरे की चोट पर
हम मरहम लगाते हैं (जो एक्सपाइरी नहीं)
कि 'कीचड़ में ही कमल की पहचान है'
तो उखड़ी उखड़ी साँसों के बीच भी
खिलखिलाने का सबब मिल ही जाता है
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
है ना ?
bilkul saty sambhavtah dosti ki sahi pahchaan bhi yahi hoti hai.
bahut hi behatreen prastuti
bahut abhut badhai
poonam
sabdo ki itne khubsurti se piroti hai aap ki sabd nhi hote hai mere pas kuch kahne ke liye...
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं--
पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!
Rashmi ji...
जवाब देंहटाएंकिसी और की सूनी सूखी आँखें
मुझे रास नहीं आती
झूठी हँसी आईने में देखते देखते
इस कदर उब चुकी हूँ
कि सामने उससे रूबरू होना
गवारा नहीं होता ...
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है,
bahut hi behatreen prastuti..jitni tareef ki jaaye kam hai.choo gayi dil ko aapki ye abhivyakti.
Badhai sweekar karen.
http://neelamkashaas.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
दीदी....आपकी खायी .....पता नही क्यों मुझे भी अपनी खायी से ज्यादा सुगम लग रही है...हो सकता है ये विश्वाश आपकी खायी तक पहुँच जाए...आपके मार्ग के एक दो कंकड़ दूर हो जाएँ
जवाब देंहटाएं..
मैं अपनी पहचान कैसे खो दूँ
मैंने बुरे वक़्त को लम्हा लम्हा झेला है
उसकी टीस से वाकिफ हूँ
तो निःसंदेह मैं खाई में चलती
तुम्हारी साँसों से भी वाकिफ हूँ
और यकीनन तुम्हारे साथ हूँ !
मगर ....दीदी ये भले ही केवल सम्भावना मात्र हो मगर आप हो तो किसी के साथ कोई अहसास है तो आपके साथ
मुझे तो प्रकाशित दिखाई देती है आपकी खायी....
शायद अब मैं उसे आपकी राह कह सकता हूँ !
(दीदी जरूरी नही की मेरे कहने का कोई मतलब हो ही....मुझे कभी कभी...अपने आप से बातें करना भी अच्छा लगता है )
........ और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
जवाब देंहटाएंहै ना ?
गहन अभिव्यक्ति से भरी मर्मस्पर्शी रचना....
aap jaisa dost kismat valo ko milta hai..
जवाब देंहटाएंमैं अपनी पहचान कैसे खो दूँ
जवाब देंहटाएंमैंने बुरे वक़्त को लम्हा लम्हा झेला है
बहुत खूब ... सच है की अपनी पहचान कभी नही खोनी चाहिए .... वैसे दोस्ती की समझ भी तो तभी होती है ...
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
जवाब देंहटाएं..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
शायद आप सही कह रही हैं दीदी ... कविता मन को छुं गई
पता नहीं लोग क्यूँ दोस्ती को बुरा कहते है
जवाब देंहटाएंविश्वास कि अनदेखी डोर से बंधे रिश्ते ही
जीवन में सजीव बन जाते है ...और अपने ही खुद को
जीवन से भटकाते है ...................((अंजु...अनु..))
.बहुत अच्छा लिखा है आपने दीदी
हर दिल के आवाज़ बन जाती है आप की लेखनी
मैं अपनी पहचान कैसे खो दूँ
जवाब देंहटाएंमैंने बुरे वक़्त को लम्हा लम्हा झेला है
उसकी टीस से वाकिफ हूँ
तो निःसंदेह मैं खाई में चलती
तुम्हारी साँसों से भी वाकिफ हूँ
और यकीनन तुम्हारे साथ हूँ !....
आंसुओं का स्वाभिमान. gahri baat.
मनोवस्था का भावपूर्ण चित्रण...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रभावशाली अभिव्यक्ति....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं'बुरे वक़्त में ही दोस्त की अपनों की
जवाब देंहटाएंपहचान होती है'
वाह ! सजीव चित्रण !
तो उखड़ी उखड़ी साँसों के बीच भी
जवाब देंहटाएंखिलखिलाने का सबब मिल ही जाता है
खाई में भी कुछ समतल सा मिल ही जाता है
..... और आंसुओं का स्वाभिमान बढ़ जाता है
है ना ?
behad acchi rachna Rashmi Prabha ji.. ye panktiya khas pasand aayi...
इस सृजन के लिए नमन
जवाब देंहटाएंसहज कहें या असहज
जवाब देंहटाएंबार बार चोट लगी जगह की चोट
आंसू के एक उबाल से ठीक हो जाती है
आदत कहूँ या
जीने की एक सतत प्रक्रिया ...
जो भी हो !
कभी कभी हम अपने दर्द के एहसास में सामने वाले को पहचान नहीं पाते
और यही तो रिश्तों की असली अग्नि परीक्षा होती है