तुम मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या (महादेवी वर्मा)
-- प्रेम मौन कभी
प्रेम मुखर कभी
परिचय सुनना चाहता है
शब्दों की लहरों में बहना चाहता है
आत्मा के समर्पण की भाषा में
खुद को पाना चाहता है .....
(मैं - रश्मि )
बाँध दिए क्यूँ प्राण प्राणों से
तुमने चिर अनजान प्राणों से (सुमित्रानंदन पन्त)
प्रेम का स्वरुप ही है
हरि के विराट स्वरुप सा
अगर विराट में सूक्ष्म बंध न जाए
तो समर्पण अधूरा ....
(मैं - रश्मि )
रात आधी खींचकर मेरी हथेली
एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने (हरिवंश राय बच्चन)
वह रात , वह स्पर्श और कांपती हथेलियों की अनकही जुबां
... आज तलक उस प्यार को पढ़ती रही हूँ मैं
जिसको लिखा था तुमने ... हाँ आधी रात को खींचकर मेरी हथेली ...
(मैं - रश्मि )
कौन झंकृत करके मन के तार मुझसे बोलता है
मैं तुम्हारा हूँ तुम्हारा हूँ तुम्हारा हूँ (सरस्वती प्रसाद)
झंकृत हुए मन के तार
आँखें स्वप्निल हुईं
बन्द आँखों के मध्य जो है कह रहा
मैं तुम्हारा हूँ
वह मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या ....(मैं - रश्मि )
बहुत ही रोचक प्रयोग...महान कवियों की रचनायें...प्रेरित करतीं हैं...कुछ लिखने को...पर इतनी सुन्दर प्रस्तुति...बिलकुल अनूठी है...
जवाब देंहटाएंआदरणीय रशिम प्रभा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत ही उच्च कोटि कि रचना. !
लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
महीयसी महादेवी वर्मा को नमन!
जवाब देंहटाएंरात आधी खींचकर मेरी हथेली
जवाब देंहटाएंएक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने
कमाल है ....
uchch koti ke kaviyon ki khoobsurat lines nikaal kar laai hain aap.ye yesi rachnaayen hain jinko bar bar padhne par aanand aata hai.ek anokhi prastuti.aapko badhaai.
जवाब देंहटाएंअनूठी है रचना....लाजवाब प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमहान कवियों की महान रचनायें...प्रेरित करतीं कुछ अनूठI लिखने को
जवाब देंहटाएंgazab ka sanyojan hai......bemisaal.
जवाब देंहटाएंमहान कवियों की एक ही विषय पर रचनाएँ पढ़कर मन गदगद हो गया । आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ।
जवाब देंहटाएंअदभुत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंगजब का ताल मेल किया आपने.
अद्भुत प्रयोग
जवाब देंहटाएं----देवेंद्र गौतम
आप इतनी भाव भरी पंक्तियाँ कैसे लिख लेती हैं....
जवाब देंहटाएंकितने अर्थ निकल आए..उन जाने -पहचाने शब्दों के
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति
आज तो गागर मे सागर भर दिया…………सब एक जगह एकत्रित करके हमे भी इसमे डुबा दिया………आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत अभिनव प्रयोग ... सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंझंकृत हुए मन के तार
जवाब देंहटाएंआँखें स्वप्निल हुईं
बन्द आँखों के मध्य जो है कह रहा
मैं तुम्हारा हूँ
वह मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या ...
बहुत सुंदर प्रयोग.
ek sam anutha aur suyavasthit pryog hai maa..
जवाब देंहटाएंBHAAVON KEE SUNDAR AUR SAHAJ
जवाब देंहटाएंABHIVYAKTI.BADHAAEE AUR SHUBH
KAMNA .
धन्यवाद् इस मेहनत के लिए
जवाब देंहटाएंतुम मुझमें प्रिय
जवाब देंहटाएंफिर परिचय क्या...
शब्दों की लहरों में बहना चाहता है
आत्मा के समर्पण की भाषा में
खुद को पाना चाहता है .....
अगर विराट में सूक्ष्म बंध न जाए
तो समर्पण अधूरा ....
बन्द आँखों के मध्य जो है कह रहा
मैं तुम्हारा हूँ
वह मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या ....
दीदी, बहुत ही सुन्दर ताना-बना बुना है अपने |
kya baat hai ma ! maza aa gaya ! gaagar mein saagar waali baat !
जवाब देंहटाएंवह रात , वह स्पर्श और कांपती हथेलियों की अनकही जुबां
जवाब देंहटाएं... आज तलक उस प्यार को पढ़ती रही हूँ मैं
जिसको लिखा था तुमने ... हाँ आधी रात को खींचकर मेरी हथेली.... महान कवियों की महान रचनायें बहुत ही रोचक हैं! bahut-bahut dhanyawaad..
कविता में इनदिनों आप नए प्रयोग कर रहे हैं.. बहुत सुन्दर... अप्रतिम...
जवाब देंहटाएंमहाकवियों की रचनाओं को समाहित करती अद्भुत रचना।
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंmahadevi verma ji ko mera shatshat naman.. sath hi apko bhut bhut dhanyawaad jo itni sunder rachna padane ke liye....
जवाब देंहटाएंसुंदर एहसास ..सुंदर संकलन ...सुंदर अभिव्यक्ति ..!!
जवाब देंहटाएंइन महान लेखक लेखिकाओं की रचनाओं के बारे में मैं तुच्छ इंसान क्या कहूँ ... बस पढवाने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रयोग! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंसबके साथ आपको पढ़ा ... लगता है पढ़ती रहूं ... ये शब्द यह भाव और इनकी प्रस्तुति सब अद्भुत ...आभार ।
जवाब देंहटाएं"झंकृत हुए मन के तार
जवाब देंहटाएंआँखें स्वप्निल हुईं
बन्द आँखों के मध्य जो है कह रहा
मैं तुम्हारा हूँ
वह मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या ....(मैं - रश्मि )
दीदी,क्या कहूँ ? रचनाएँ जो स्वतः ही मन-आँगन में सदा-सदा के लिए बस गई और आज भी आनंद का उर्जावान श्रोत बनी हुई,उसके साथ आपका प्रयोग अनूठा तो है ही मनभावन भी है.
महान रचनाकारोंके साथ बढ़िया प्रयोग है
जवाब देंहटाएंजितनी तारीफ करूँ कम है !
झंकृत हुये मन के तार
आँखे स्वप्निल हुई
बंद आँखोके मध्य जो है कह रहा
मै तुम्हारा हूँ
वह मुझमे प्रिय ......(तुम मुझमे प्रिय ) कैसा रहेगा यहाँ पर .....
फिर परिचय क्या
बहुत खुबसूरत !
लजवाब...
जवाब देंहटाएंनवीन प्रयोग...........अच्छा लगा पढ़ कर!!
जवाब देंहटाएंझंकृत हुए मन के तार
जवाब देंहटाएंआँखें स्वप्निल हुईं
बन्द आँखों के मध्य जो है कह रहा
मैं तुम्हारा हूँ
वह मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या ....(मैं - रश्मि )
अनूठी प्रस्तुति है ... अनुपम अद्वितीय ...
बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआप कितनी सुंदर लग रही हैं, शेष कवि तो हो चुके हैं आप हमारे साथ हैं, नमन आपके भीतर बहते इस अनंत प्रेम को !
जवाब देंहटाएंये नीचेवाली तस्वीर मेरी माँ की है
जवाब देंहटाएंप्रेम का स्वरुप ही है
जवाब देंहटाएंहरि के विराट स्वरुप सा
अगर विराट में सूक्ष्म बंध न जाए
तो समर्पण अधूरा ....
कितना सही कहा आपने....
महान रचनाकारों की कृतियाँ तो हमारे लिए प्रकाश स्तम्भ हैं...
सुन्दर प्रयास...
झंकृत हुए मन के तार
जवाब देंहटाएंआँखें स्वप्निल हुईं
बन्द आँखों के मध्य जो है कह रहा
मैं तुम्हारा हूँ
वह मुझमें प्रिय
फिर परिचय क्या ....(मैं - रश्मि )
यह अभिनव प्रयोग आपका ... मन को छूते शब्द लाजवाब प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर रचनाएं...
जवाब देंहटाएंदी, आपका ये प्रयोग बहुत अच्छा लगा ....ये महान कवि अपनी कई कविताओं के साथ दुबारा याद आ गये ....सादर !
जवाब देंहटाएंवाह रश्मि जी, महान लेखकों की संपूर्ण पंक्तियों को कितनी खूबसूरती से आगे बढ़ाया है आपने...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल पूरक जैसा रूप दिया है...
इस सफ़ल प्रयोग के लिए बहुत बहुत बधाई.
एक बेहतरीन प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंmahan lekhakon ki rachnaye ..abhibhoot kar gayeee.
जवाब देंहटाएंwow rashmi ji, kitnaa anootha prayog ...
जवाब देंहटाएंअपनी रचनाये अन्य रचनाकारों से यूँ भी प्रभावित होती है ...सिद्ध हुआ !
जवाब देंहटाएंअनूठा, सफल प्रयोग !
- प्रेम मौन कभी
जवाब देंहटाएंप्रेम मुखर कभी
परिचय सुनना चाहता है
शब्दों की लहरों में बहना चाहता है
आत्मा के समर्पण की भाषा में
खुद को पाना चाहता है .....
एक - एक शब्द खुद बोलते हुए इनमे हमारी आवाज कहाँ कोई सुन पायेगा पर फिर भी कोशिश करने पर ही तो उम्मीद जगती है |
बहुत खुबसूरत |
कुछ उनकी और कुछ आपकी ...दोनों ही लाजवाब । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंछायावादी ्महान रचनाओं की याद हो आई ।प्रेम कथा,प्रेम व्यथा तो अपरिभाषित,असीमित,सागर सी गहरी,नभ सी विराट है ।यह तो वही जान सकता है जिसने भोगा नहीं-- एकाकीकार हो महसूस किया हो।
जवाब देंहटाएंसुधा भार्गव
बहुत रोचक और अनूठा प्रयोग. महान साहित्यकारों की दो पंक्तियाँ भी अपने आप में सम्पूर्ण है. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई रश्मि जी.
जवाब देंहटाएंरात आधी खींचकर मेरी हथेली
जवाब देंहटाएंएक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने (हरिवंश राय बच्चन)
वह रात , वह स्पर्श और कांपती हथेलियों की अनकही जुबां
... आज तलक उस प्यार को पढ़ती रही हूँ मैं
जिसको लिखा था तुमने ... हाँ आधी रात को खींचकर मेरी हथेली ...
(मैं - रश्मि )
bahut bahut behtareen sajeev samwaad...............
bahut hi sunder prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक प्रयोग.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ...निशब्द कर दिया आपने दीदी
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