मान लिया मैंने
पैसा बहुत बड़ी चीज है पैसा बोलता है
गाली देता है
औरंगजेब बन
दारा का सर कलम कर
थाली में सजाता है
कौन टूटा
कितने टुकड़े हुए
गुरुर में पैसे के
इसे सोचने की फुर्सत ....
नहीं नहीं - ज़रूरत कहाँ है !
रोटी बनाना कौन सी बड़ी बात है
रोटी खरीदनेवाला शहंशाह है .
पैसे की राजनीति में
सारे के सारे रिश्ते दाव पर लगे हैं
जीत के हर दावपेंच के खेल में
सहज खेल लोग भूल गए हैं !
...........
-'पैसे में ताकत ना सही
खरीदने की क्षमता तो है '
क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
.......
आदरणीय रशिम प्रभा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
यदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
......सच कहा आपने
पूरी कविता ही बड़ी सशक्त है...
जवाब देंहटाएंआपके लेखन की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है....
पैसे से क्या क्या तुम यहाँ खरीदोगे, दिल खरीदोगे की जा खरीदोगे, बेमानी है कहना सब कुछ. पैसे ने ताकत दिखा दी है. खरीदारों की कमी नहीं, बेचने वालों की बाज़ार लगी है , बेहद सामयिक रचना
जवाब देंहटाएं'पैसे में ताकत ना सही
जवाब देंहटाएंखरीदने की क्षमता तो है '
क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
bahut sahi kahaa
paisa bolta hai
bahut acha likha hai di
आदरणीया रश्मि प्रभा जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत समय बाद पहुंचा हूं आपके यहां … पिछली बहुत सारी बिना पढ़ी पोस्ट्स एक साथ अभी पढ़कर कुछ खोये हुए की भरपाई का प्रयास किया है … :)
पैसा बहुत बड़ी चीज है रचना कमाल है …
-'पैसे में ताकत ना सही
खरीदने की क्षमता तो है '
क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
बड़ी तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
सही कहा दीदी !
इस अच्छी रचना सहित अन्य रचनाओं के लिए भी बधाई !
और हां ,
ब्लॉगोत्सव परिकल्पना सम्मान के लिए भी हार्दिक बधाई !
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
देख तमाशा देख इस पैसे का
जवाब देंहटाएंभावनायो का खून..
अपनों से दूर
दिल में नहीं प्यार
पैसे का लगा है
बाज़ार ....
बिन मोल ...यहाँ
कुछ नहीं मिलता (अंजु...(अनु)
बहुत ही सटीक शब्दों में आपने पैसे कि महिमा का बखान किया है दीदी
रोटी बनाना कौन सी बड़ी बात है
जवाब देंहटाएंरोटी खरीदनेवाला शहंशाह है .
पैसे की राजनीति में
सारे के सारे रिश्ते दाव पर लगे हैं
जीत के हर दावपेंच के खेल में
सहज खेल लोग भूल गए हैं !
...sach paise ka khel hi hartaraf sar chadkar bolta nazar aa raha hai...
sateek abhivykti ke liye aabhar
मजाक उड़ाने वाले ही पैसे में बिकते पाये जाते हैं। सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंPaise ke vishay me sateek vyakhya kavita ke madhyam se bahut achchi likhi.
जवाब देंहटाएंक्या फर्क पड़ता है
जवाब देंहटाएंयदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
....बहुत सटीक टिप्पणी...बहुत सुन्दर
आज का सच तो पैसा ही दिखता है
जवाब देंहटाएंbilkul sahi hai sarthak rachna ....
जवाब देंहटाएंपैसे की कल से दिमाग में घूम रही थी आपकी कविता ने कुछ तार झंकृत कर दिये । बिना पैसे के भगवान का मंदिर तक भव्य नहीं बन पाता । स्वाभिमान ना खरीद सके पर बहुत कुछ खरीद लेता है ये पैसा । बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये रचना । शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंsahi kaha mausi...
जवाब देंहटाएंaabhar
सटीक सच्चाई……
जवाब देंहटाएंउस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
जवाब देंहटाएंतादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
शुक्र है फिर भी ऐसे स्वाभिमानी एक दो ही सही , मौजूद तो हैं ।
आज ही कहीं पढ़ा कि यह घोर कलियुग नहीं , कलियुग है ।
देख तमाशा देख इस पैसे का
जवाब देंहटाएंभावनायो का खून..
अपनों से दूर
दिल में नहीं प्यार
पैसे का लगा है
बाज़ार ....
बिन मोल ...यहाँ
कुछ नहीं मिलता
बहुत ख़ूबसूरत...
ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....
मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
क्या फर्क पड़ता है
जवाब देंहटाएंयदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
.......
लोगों को पैसे का ही गुरूर है ..किसी के स्वाभिमान को समझते नहीं कुछ भी ..और पैसे ले लालच में अच्छे अच्छे लोगों का ईमान डगमगा जाता है ... सुन्दर और विचारोत्तेजक रचना
जब रोटी हो तो पैसा सबकुछ लगता है...और जब रोटी ना हो तो चाँद में भी उसका अक्स दिखता है...एक बार अकबर की बेगम ने एक भिखारी को कीमती दुशाला दे दिया और उम्मीद की कि बीरबल उनके इस काम कि प्रशंसा करेंगे. पर बीरबल चुप रहे. अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा कि तुमने रानी के दान की तारीफ नहीं की. रानी को बुरा लगा. बीरबल ने कहा महाराज क्या उस भिखारी से आप दुशाला वापस मंगवा सकते हैं. सिपाहियों ने बड़ी मुश्किल से उस भिखारी को खोजा. पर दुशाला उसके पास ना था. उसने उस दुशाले को बेच कर एक वक्त की रोटी खरीद ली थी. बीरबल न समझाया भूखे तो रोटी की ज़रूरत थी दुशाले की नहीं...
जवाब देंहटाएं'पैसे में ताकत ना सही
जवाब देंहटाएंखरीदने की क्षमता तो है '
yahi to khatarnak hai......
पैसा वाकई बहुत बड़ी चीज़ हैं.....पर इस बात से भी इत्तेफाक रखती हूँ कि कुछ चीज़ें बिकाऊ नहीं होती ..............
जवाब देंहटाएंलेकिन इन पैसो से मान सम्मान नही खरीदा जा सकता, खोई इज्जत नही खरीदी जा सकती, ईमान दारी नही खरीदी जा सकती, अच्छी सेहत, स्वस्थ नही खरीदा जा सकता, संतान नही खरीदी जा सकती, शांति नही खरीदी जा सकती, अजी बहुत सी चीजे इस पैसो से नही खरीदी जा सकती....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.धन्यवाद
क्या फर्क पड़ता है
जवाब देंहटाएंयदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
.......
सच कहा....मजाक उड़ाने वालों का मोल आसानी से लगता है ...और वे बिकते भी हैं
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
जवाब देंहटाएंतादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !....
कितनी गहन सच्चाई और पीड़ा है इस कविता में
पर कोई बात नहीं ,
स्वाभिमान रखने वाले इन मखौल उड़ाने वालों की हैसियत पहचानते हैं और उन पर हँसते हैं !
वाह दो पैसे में क्या क्या नहीं मिल जाता ,
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
aaj ka kadwa such jo apne rachna me dhal diya...
जवाब देंहटाएं-'पैसे में ताकत ना सही
जवाब देंहटाएंखरीदने की क्षमता तो है '
और यह क्षमता ही सामने वाले को खुद से कमतर
आंकती है ...प्रत्येक शब्द सच्चाई पर खरा उतरा है
इस रचना में ...।
यदि पैसे से
जवाब देंहटाएंएक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं!
पैसे की ताकत और महत्त्व को नकारना संभव नहीं. सामयिक विचारणीय कविता.
यदि पैसे से
जवाब देंहटाएंएक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
स्वाभिमान तब भी नहीं टूटता है , हाँ उस पीड़ा के अहसास से दुखी जरूर हो जाता है जब सत्य का मखौल बनाया जाता है.
ना बाप बड़ा ना भैया पैसा सबसे बड़ा रुपैया...
जवाब देंहटाएंआज ये ही तो सच बना हुआ है
बहुत सुन्दर रचना दीदी
"क्या फर्क पड़ता है
जवाब देंहटाएंयदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न ख़रीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल सकते हैं "
..................................................मानवीय संवेदनाओं , संबंधों और चरित्र पर भारी पड़ रही भौतिकता का यथार्थ की भावभूमि पर बेबाक चित्रण ......अति सुन्दर
Pese ki mahima hai nirali, jiske pas hai wo sahnsha jiske pas nahi wo bhikari. Pesa hai to jahaj me jao , nahi hai to milegi nahi ko sawari.. . . Sach kaha hai mam apne
जवाब देंहटाएंJai hind jai bharat
"क्या फर्क पड़ता है
जवाब देंहटाएंयदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !"
दीदी, इतिहास के पन्नों में यह सच सदा ही संचित रहा है.समंदर से दो बूंद को अलग कर देनेवाली बात है.आज को प्रतिबिंबित करती रचना जहाँ मानवीय संबंधों पर पैसा भारी पड़ रहा है.फिर भी कुछ तो हैं जो पैसे को ठेंगा दिखाने का दम रखते हैं.
बहुत ही सटीक शब्दों में आपने पैसे कि महिमा का वर्णन किया है..सामयिक विचारणीय कविता....
जवाब देंहटाएंपैसा बहुत बड़ी चीज है
जवाब देंहटाएं-'पैसे में ताकत ना सही
खरीदने की क्षमता तो है '
क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
बड़ी तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
तभी कहा गया है बाप बडा ना भैया सबसे बडा रुपैया………बहुत सुन्दर रचना।
आदरणीया...
जवाब देंहटाएंआप लगातार लिखती रहती हैं..और इतना बेहतरीन लिखती रहती हैं. अद्भुत है.
"क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
हमेशा की तरह उम्दा रचना
बहुत ही सटीक शब्दों में आपने पैसे कि महिमा का बखान किया है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमाना कि पैसा बहुत बड़ी चीज़ है लेकिन पैसे से सब कुछ तो नहीं खरीदा जाता। सुन्दर अभिव्यक्ति धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंpaise se swaabhimaan aur samman ko nahi kharida jaa sakta...shashakt rachna.......sacche ke saath sacche log rahte hain...kya farq parta hai doosron ke kahne par jo makhaul uraate hain....
जवाब देंहटाएंrachna ko naman..
सटीक शब्दों में बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद
जवाब देंहटाएं:-( sach kaha magar kitna kadwa sach hai yeh...
जवाब देंहटाएं'पैसे में ताकत ना सही
जवाब देंहटाएंखरीदने की क्षमता तो है '
क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
....
अरे दीदी इतनी तल्खी ....माई तो हतप्रभ हूँ...वाह मज़ा आगया, जब आप जरा भी क्रोधित होती हैं तो शिवा हो जाती है शांत शिवा नही...त्रिनेत्री शिवा !
बहुत अच्छी व्याख्या. सटीक अवलोकन और वर्णन.
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