17 मई, 2011

पैसा बहुत बड़ी चीज है



मान लिया मैंने
पैसा बहुत बड़ी चीज है
पैसा बोलता है
गाली देता है
औरंगजेब बन
दारा का सर कलम कर
थाली में सजाता है
कौन टूटा
कितने टुकड़े हुए
गुरुर में पैसे के
इसे सोचने की फुर्सत ....
नहीं नहीं - ज़रूरत कहाँ है !

रोटी बनाना कौन सी बड़ी बात है
रोटी खरीदनेवाला शहंशाह है .
पैसे की राजनीति में
सारे के सारे रिश्ते दाव पर लगे हैं
जीत के हर दावपेंच के खेल में
सहज खेल लोग भूल गए हैं !
...........
-'पैसे में ताकत ना सही
खरीदने की क्षमता तो है '
क्या फर्क पड़ता है
यदि पैसे से
एक दो स्वाभिमान को
न खरीदा जा सके
उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
.......

43 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय रशिम प्रभा माँ
    नमस्कार !
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
    ......सच कहा आपने

    जवाब देंहटाएं
  2. पूरी कविता ही बड़ी सशक्त है...
    आपके लेखन की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है....

    जवाब देंहटाएं
  3. पैसे से क्या क्या तुम यहाँ खरीदोगे, दिल खरीदोगे की जा खरीदोगे, बेमानी है कहना सब कुछ. पैसे ने ताकत दिखा दी है. खरीदारों की कमी नहीं, बेचने वालों की बाज़ार लगी है , बेहद सामयिक रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. 'पैसे में ताकत ना सही
    खरीदने की क्षमता तो है '
    क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !




    bahut sahi kahaa
    paisa bolta hai
    bahut acha likha hai di

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीया रश्मि प्रभा जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बहुत समय बाद पहुंचा हूं आपके यहां … पिछली बहुत सारी बिना पढ़ी पोस्ट्स एक साथ अभी पढ़कर कुछ खोये हुए की भरपाई का प्रयास किया है … :)
    पैसा बहुत बड़ी चीज है रचना कमाल है …
    -'पैसे में ताकत ना सही
    खरीदने की क्षमता तो है '
    क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    बड़ी तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !


    सही कहा दीदी !
    इस अच्छी रचना सहित अन्य रचनाओं के लिए भी बधाई !

    और हां ,
    ब्लॉगोत्सव परिकल्पना सम्मान के लिए भी हार्दिक बधाई !

    हार्दिक शुभकामनाओं सहित

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  6. देख तमाशा देख इस पैसे का
    भावनायो का खून..
    अपनों से दूर
    दिल में नहीं प्यार
    पैसे का लगा है
    बाज़ार ....
    बिन मोल ...यहाँ
    कुछ नहीं मिलता (अंजु...(अनु)

    बहुत ही सटीक शब्दों में आपने पैसे कि महिमा का बखान किया है दीदी

    जवाब देंहटाएं
  7. रोटी बनाना कौन सी बड़ी बात है
    रोटी खरीदनेवाला शहंशाह है .
    पैसे की राजनीति में
    सारे के सारे रिश्ते दाव पर लगे हैं
    जीत के हर दावपेंच के खेल में
    सहज खेल लोग भूल गए हैं !
    ...sach paise ka khel hi hartaraf sar chadkar bolta nazar aa raha hai...
    sateek abhivykti ke liye aabhar

    जवाब देंहटाएं
  8. मजाक उड़ाने वाले ही पैसे में बिकते पाये जाते हैं। सुन्दर कविता।

    जवाब देंहटाएं
  9. Paise ke vishay me sateek vyakhya kavita ke madhyam se bahut achchi likhi.

    जवाब देंहटाएं
  10. क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !

    ....बहुत सटीक टिप्पणी...बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  11. आज का सच तो पैसा ही दिखता है

    जवाब देंहटाएं
  12. पैसे की कल से दिमाग में घूम रही थी आपकी कविता ने कुछ तार झंकृत कर दिये । बिना पैसे के भगवान का मंदिर तक भव्य नहीं बन पाता । स्वाभिमान ना खरीद सके पर बहुत कुछ खरीद लेता है ये पैसा । बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये रचना । शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  13. सटीक सच्चाई……

    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  14. उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !

    शुक्र है फिर भी ऐसे स्वाभिमानी एक दो ही सही , मौजूद तो हैं ।
    आज ही कहीं पढ़ा कि यह घोर कलियुग नहीं , कलियुग है ।

    जवाब देंहटाएं
  15. देख तमाशा देख इस पैसे का
    भावनायो का खून..
    अपनों से दूर
    दिल में नहीं प्यार
    पैसे का लगा है
    बाज़ार ....
    बिन मोल ...यहाँ
    कुछ नहीं मिलता
    बहुत ख़ूबसूरत...
    ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....
    मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

    जवाब देंहटाएं
  16. क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
    .......

    लोगों को पैसे का ही गुरूर है ..किसी के स्वाभिमान को समझते नहीं कुछ भी ..और पैसे ले लालच में अच्छे अच्छे लोगों का ईमान डगमगा जाता है ... सुन्दर और विचारोत्तेजक रचना

    जवाब देंहटाएं
  17. जब रोटी हो तो पैसा सबकुछ लगता है...और जब रोटी ना हो तो चाँद में भी उसका अक्स दिखता है...एक बार अकबर की बेगम ने एक भिखारी को कीमती दुशाला दे दिया और उम्मीद की कि बीरबल उनके इस काम कि प्रशंसा करेंगे. पर बीरबल चुप रहे. अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा कि तुमने रानी के दान की तारीफ नहीं की. रानी को बुरा लगा. बीरबल ने कहा महाराज क्या उस भिखारी से आप दुशाला वापस मंगवा सकते हैं. सिपाहियों ने बड़ी मुश्किल से उस भिखारी को खोजा. पर दुशाला उसके पास ना था. उसने उस दुशाले को बेच कर एक वक्त की रोटी खरीद ली थी. बीरबल न समझाया भूखे तो रोटी की ज़रूरत थी दुशाले की नहीं...

    जवाब देंहटाएं
  18. 'पैसे में ताकत ना सही
    खरीदने की क्षमता तो है '
    yahi to khatarnak hai......

    जवाब देंहटाएं
  19. पैसा वाकई बहुत बड़ी चीज़ हैं.....पर इस बात से भी इत्तेफाक रखती हूँ कि कुछ चीज़ें बिकाऊ नहीं होती ..............

    जवाब देंहटाएं
  20. लेकिन इन पैसो से मान सम्मान नही खरीदा जा सकता, खोई इज्जत नही खरीदी जा सकती, ईमान दारी नही खरीदी जा सकती, अच्छी सेहत, स्वस्थ नही खरीदा जा सकता, संतान नही खरीदी जा सकती, शांति नही खरीदी जा सकती, अजी बहुत सी चीजे इस पैसो से नही खरीदी जा सकती....
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  21. क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
    .......
    सच कहा....मजाक उड़ाने वालों का मोल आसानी से लगता है ...और वे बिकते भी हैं

    जवाब देंहटाएं
  22. उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !....

    कितनी गहन सच्चाई और पीड़ा है इस कविता में
    पर कोई बात नहीं ,
    स्वाभिमान रखने वाले इन मखौल उड़ाने वालों की हैसियत पहचानते हैं और उन पर हँसते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  23. वाह दो पैसे में क्या क्या नहीं मिल जाता ,
    अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  24. -'पैसे में ताकत ना सही
    खरीदने की क्षमता तो है '

    और यह क्षमता ही सामने वाले को खुद से कमतर
    आंकती है ...प्रत्‍येक शब्‍द सच्‍चाई पर खरा उतरा है

    इस रचना में ...।

    जवाब देंहटाएं
  25. यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं!

    पैसे की ताकत और महत्त्व को नकारना संभव नहीं. सामयिक विचारणीय कविता.

    जवाब देंहटाएं
  26. यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !


    स्वाभिमान तब भी नहीं टूटता है , हाँ उस पीड़ा के अहसास से दुखी जरूर हो जाता है जब सत्य का मखौल बनाया जाता है.

    जवाब देंहटाएं
  27. ना बाप बड़ा ना भैया पैसा सबसे बड़ा रुपैया...

    आज ये ही तो सच बना हुआ है

    बहुत सुन्दर रचना दीदी

    जवाब देंहटाएं
  28. "क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न ख़रीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल सकते हैं "
    ..................................................मानवीय संवेदनाओं , संबंधों और चरित्र पर भारी पड़ रही भौतिकता का यथार्थ की भावभूमि पर बेबाक चित्रण ......अति सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  29. Pese ki mahima hai nirali, jiske pas hai wo sahnsha jiske pas nahi wo bhikari. Pesa hai to jahaj me jao , nahi hai to milegi nahi ko sawari.. . . Sach kaha hai mam apne
    Jai hind jai bharat

    जवाब देंहटाएं
  30. "क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !"
    दीदी, इतिहास के पन्नों में यह सच सदा ही संचित रहा है.समंदर से दो बूंद को अलग कर देनेवाली बात है.आज को प्रतिबिंबित करती रचना जहाँ मानवीय संबंधों पर पैसा भारी पड़ रहा है.फिर भी कुछ तो हैं जो पैसे को ठेंगा दिखाने का दम रखते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  31. बहुत ही सटीक शब्दों में आपने पैसे कि महिमा का वर्णन किया है..सामयिक विचारणीय कविता....

    जवाब देंहटाएं
  32. पैसा बहुत बड़ी चीज है
    -'पैसे में ताकत ना सही
    खरीदने की क्षमता तो है '
    क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    बड़ी तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !

    तभी कहा गया है बाप बडा ना भैया सबसे बडा रुपैया………बहुत सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  33. आदरणीया...
    आप लगातार लिखती रहती हैं..और इतना बेहतरीन लिखती रहती हैं. अद्भुत है.
    "क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    हमेशा की तरह उम्दा रचना

    जवाब देंहटाएं
  34. बहुत ही सटीक शब्दों में आपने पैसे कि महिमा का बखान किया है| धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  35. माना कि पैसा बहुत बड़ी चीज़ है लेकिन पैसे से सब कुछ तो नहीं खरीदा जाता। सुन्दर अभिव्यक्ति धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  36. paise se swaabhimaan aur samman ko nahi kharida jaa sakta...shashakt rachna.......sacche ke saath sacche log rahte hain...kya farq parta hai doosron ke kahne par jo makhaul uraate hain....

    rachna ko naman..

    जवाब देंहटाएं
  37. सटीक शब्दों में बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  38. 'पैसे में ताकत ना सही
    खरीदने की क्षमता तो है '
    क्या फर्क पड़ता है
    यदि पैसे से
    एक दो स्वाभिमान को
    न खरीदा जा सके
    उस स्वाभिमान का मखौल उड़ानेवाले
    तादाद में दो पैसे में मिल जाते हैं !
    ....
    अरे दीदी इतनी तल्खी ....माई तो हतप्रभ हूँ...वाह मज़ा आगया, जब आप जरा भी क्रोधित होती हैं तो शिवा हो जाती है शांत शिवा नही...त्रिनेत्री शिवा !

    जवाब देंहटाएं
  39. बहुत अच्छी व्याख्या. सटीक अवलोकन और वर्णन.

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...