04 अक्तूबर, 2011

मन को पता होता है



तुम्हें डर था
पढ़ लूँगी मैं चेहरे को
तो तुमने चेहरे को व्यस्त बना लिया
.... मुझे हँसी आई
उम्र होने पर भी बच्चों वाली कोशिश पर !
चेहरा व्यस्त हो , शांत हो
लम्बी सी मुस्कान ओढ़े हुए हो
पर वह मन से अलग नहीं होता ....
अगर मन से अलग चेहरे की भाषा होती
तो शिव ने भस्मासुर की मंशा नहीं जानी होती
यमराज के आगे सती की निष्ठा की जीत नहीं होती
सत्य तो यही है ... कि
प्रहलाद के मन ने ही होलिका को जलाया
........
रिश्ते अनगिनत होते हैं
रक्त , जाति, धर्म , देश के
पर ठहराव मन के रिश्तों में होता है
और मन
चेहरे से विलग नहीं होता ...
........
मन से अलग होना रूह से अलग होना
और जब शरीर खाली होता है
तो उस भटकती रूह को तुमने भी देखा और सुना है
फिर कैसे सोच लिया
तुम्हारी रूह मुझसे नहीं मिलेगी
कुछ नहीं कहेगी
....
खनकती हँसी
बेजान गूंजती हँसी का फर्क
मन को पता होता है -
!!!

42 टिप्‍पणियां:

  1. कितने भाव छिपे रहते हैं इन चेहरों में,
    कितने तीर बिंधे रहते हैं इन चेहरों में।

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  2. Haaaaa ... ठहराव मन के रिश्तों में होता है...! Ilu..!

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  3. खनकती हँसी
    बेजान गूंजती हँसी का फर्क
    मन को पता होता है -
    बिल्‍कुल सच ...हमेशा की तरह एक बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ..आभार ।

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  4. मन से अलग होना रूह से अलग होना
    और जब शरीर खाली होता है
    तो उस भटकती रूह को तुमने भी देखा और सुना है
    फिर कैसे सोच लिया
    तुम्हारी रूह मुझसे नहीं मिलेगी
    कुछ नहीं कहेगी

    बहुत ही बढि़या ..भावमय करते शब्‍दों का संगम है यह अभिव्‍यक्ति ।

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  5. मन से अलग होना रूह से अलग होना
    और जब शरीर खाली होता है
    तो उस भटकती रूह को तुमने भी देखा और सुना है
    फिर कैसे सोच लिया
    तुम्हारी रूह मुझसे नहीं मिलेगी
    कुछ नहीं कहेगी
    sabse sundar... sach yahi to rooh hai aur yahi to man hai... yahi to rishta hai...

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  6. सही कहा.. मन का हर भाव चेहरा बता ही देता है.. ..चेहरा मन का कार्बन कापी है..
    लाख छुपाओ.छुप न सकेगा....

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  7. sach mein...man padh leta hai khanaktii,sachchii hansii aur bejaan goonjtii hansii ka fark ...bahut achchha likha hai,aapne.

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  8. ठहराव मन के रिश्तों में होता है
    और मन
    चेहरे से विलग नहीं होता ...........



    Incredible... Regards...

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  9. चेहरा व्यस्त हो , शांत हो
    लम्बी सी मुस्कान ओढ़े हुए हो
    पर वह मन से अलग नहीं होता ....

    सहही बात है, चेहरा तो मन का आइना है ... पर कई माहिर खिलाडी चेहरे को मन से अलग करने में सफल हो पाते हैं ...

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  10. रिश्ते अनगिनत होते हैं
    रक्त , जाति, धर्म , देश के
    पर ठहराव मन के रिश्तों में होता है
    और मन
    चेहरे से विलग नहीं होता ...
    ........

    बहुत सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति..आभार

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  11. tora man darpan kahlaaye re ....aur chehra to man ka bhi darpan hai ...
    bahut sunder rachna..

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  12. चेहरा कभी मन से अलग नहीं होता...
    गहरी सोच... सार्थक चिंतन दी..
    सादर...

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  13. और मन
    चेहरे से विलग नहीं होता ...

    सही कहा जी आपने .

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  14. आह!!!!! सच कहा हँसी के अर्थ भी बदले होते हैं।

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  15. नजर पढ़ लेती है दिल की जुबान.

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  16. पर मन मानता क्यों नहीं है..

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  17. खनकती हँसी
    बेजान गूंजती हँसी का फर्क
    मन को पता होता है -
    ekdam......

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  18. खनकती हँसी
    बेजान गूंजती हँसी का फर्क
    मन को पता होता है -
    ekdam......

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  19. खनकती हँसी
    बेजान गूंजती हँसी का फर्क
    मन को पता होता है -
    ekdam......

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  20. मन से क्या छिपता है , ऐसा मन भी तो हो जो दूसरों को पढ़ सके, तब ही तो !
    प्यारी सी कविता!

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  21. रिश्ते अनगिनत होते हैं
    रक्त , जाति, धर्म , देश के
    पर ठहराव मन के रिश्तों में होता है
    और मन
    चेहरे से विलग नहीं होता ...


    सच है

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  22. एक यथार्थ,
    मन की बोली
    साधुवाद

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  23. और मन
    चेहरे से विलग नहीं होता ...
    ........
    मन से अलग होना रूह से अलग होना

    कितनी अच्छी बात कही है..पर मन तक सबकी पहुँच कहाँ...

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  24. एक बार फिर गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती रचना !

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  25. चेहरा मन का दर्पण होता है ..बेहद सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति....सादर !!!

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  26. बहुत अच्छी बात कही है....
    आभार
    विजय पर्व "विजयादशमी" पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनायें.

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  27. बहुत अच्छी बात कही है....
    आभार
    विजय पर्व "विजयादशमी" पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  28. मन से अलग होना रूह से अलग होना
    और जब शरीर खाली होता है
    तो उस भटकती रूह को तुमने भी देखा और सुना है
    फिर कैसे सोच लिया
    तुम्हारी रूह मुझसे नहीं मिलेगी
    कुछ नहीं कहेगी


    भाव व अर्थ से परिपूर्ण !!

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  29. खनकती हँसी
    बेजान गूंजती हँसी का फर्क
    मन को पता होता है -
    मन का अंतर्मन विस्तृत होता है ..

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  30. बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली रचना.....

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  31. तुमने जो देखी होती ..... जो सुनी होती
    मेरे मन की आवाज़
    तो ये रूहें कभी न भटकतीं
    तुम और मैं कभी यूँ ना जी रहे होते
    खाली भीगे-से शरीर को लिए हुए
    अब इन होठों पर कैसी भी हँसीं खेले
    वो बेज़ान तो होनी ही है ..... सिली-सिली सी

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  32. खनकती हँसी
    बेजान गूंजती हँसी का फर्क
    मन को पता होता है -
    haan sach...man ko pata hota hai...bilkul pata hota hai...

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  33. bahut hi sundar
    sach apke blog par aakar man
    prasanna ho jata hai
    bahut hi accha likhti hai aap..

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  34. सच... चेहरे से झलक जाते हैं मन के भाव!

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