17 अक्टूबर, 2011

वो जिंदादिल है !



वो जिंदादिल है
जिंदादिली से जीता है
जिंदादिली की ज़िन्दगी देता है ...
एक हँसी की सौगात में
प्राणप्रतिष्ठा करते हुए
वह कुछ भी बोलता जाता है
मन के बेसुरे सुरों को सुर देने के लिए
शब्दों के अनगिनत वाद्य यन्त्र इकट्ठे करता है
और फिर
दूसरों के लिए उगाहे शब्दों में
बुरी तरह फंस जाता है ....
खाली समय से खेलते हुए
वह खुद से ही अजनबी होता है !
कभी इस शहर
कभी उस शहर
वह ढूंढता है कुछ लम्हें
जो उसका हाल बयां कर सके
कभी इस सड़क
कभी उस सड़क
गैरों में ठहाके लगाता
वह खुद को ढूंढता है !
कितनी अजीब बात है न
रिश्तों को गहराई से जीता हुआ
प्रेम की चाक पर मन के प्याले गढ़ता हुआ
वह बेदिली से प्याले तोड़ता है
चीखता है निःशब्द ....
सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
ओस से नम मन की मिट्टी
प्रेम की चाक पर प्याले गढ़ता है
और सहज हो उठता है
फिर से जीने के लिए
जिंदादिली की ज़िन्दगी देने के लिए
मन के बेसुरे सुरों को सुर देने के लिए !!!

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत तकलीफदेह होता है सचमुच
    जिंदादिली से जीना
    कितना कुछ छुपाता है सबसे
    खुद से लड़ता है अकेले.
    किसी कृष्ण को भी नही आने देता अपने पास
    भीतर झाँक न ले,
    जान न ले कहीं भीतर के घमासान को
    अकेला लड़ता है अपना युद्ध
    वो ही सारथि
    वो ही अर्जुन
    थक जाता है अकेले लड़ते लड़ते
    पर.... यही उसकी ताकत है मित्र
    जो भीतर से भर देती है उसे अक्षय ऊर्जा से
    शुष्क आँखे उसमे भरती रहती है जीवन की नमी
    समंदर सा जीता है
    ऊपर चंचल लहरें
    भीतर गहन गंभीरता
    पर....यही तो है उसकी असली ख़ूबसूरती
    एकदम समंदर -सी
    भले लगते हैं ये समन्दर से लोग
    इसी लिए बहुत प्यार करती हूँ अपने आप से मैं
    बाबु! लिखती क्या हो पत्थर को कवि बना देती हो कभी कभी हा हा हा

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  2. सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
    ओस से नम मन की मिट्टी
    प्रेम की चाक पर प्याले गढ़ता है
    और सहज हो उठता है
    फिर से जीने के लिए
    जिंदादिली की ज़िन्दगी देने के लिए
    नये दिन का स्‍वागत करने के लिए ...ऐसा ही करना होता है न ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ..।

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  3. कितनी अजीब बात है न
    रिश्तों को गहराई से जीता हुआ
    प्रेम की चाक पर मन के प्याले गढ़ता हुआ
    वह बेदिली से प्याले तोड़ता है
    चीखता है निःशब्द ....
    सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
    ओस से नम मन की मिट्टी
    प्रेम की चाक पर प्याले गढ़ता है
    और सहज हो उठता है
    फिर से जीने के लिए
    जिंदादिली की ज़िन्दगी देने के लिए
    मन के बेसुरे सुरों को सुर देने के लिए !!!

    जिंदादिल अकेले होकर भी दूसरों का एकांत भरते हैं ...
    रो -रो कर दुखड़ा सुनाने वाले क्या जाने कि मुस्कुराती आँखों में भी आंसुओं के सैलाब होते हैं!
    अपना युद्ध खुद लड़ते हैं , बस बखान करने से ही रह जाते हैं!

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  4. दी ,
    जिंदादिली हो शायद तभी ज़िन्दगी जी जा सकती है .... सादर !

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  5. बधाई!
    सच! बस...इसी को जिंदादिली कहते है !!!
    शुभकामनाएँ!

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  6. और सहज हो उठता है
    फिर से जीने के लिए
    जिंदादिली की ज़िन्दगी देने के लिए
    नये दिन का स्‍वागत करने के लिए ...
    इसी का नाम ज़िंदगी है... गहन भाव

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रेम की चाक पर मन के प्याले गढ़ता हुआ
    वह बेदिली से प्याले तोड़ता है
    चीखता है निःशब्द ....
    सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
    ओस से नम मन की मिट्टी
    ________________
    और फिर बनता है प्याले
    सहेजता है रिश्तों की
    गंध को
    और नि:शब्द चीख भी
    दबा लेता है अपने
    कंठ में
    खुद पर ही
    लगाता है ठहाका
    लोग समझते हैं कि
    कितना जिंदादिल है
    यह इंसान ....

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  8. कभी इस सड़क
    कभी उस सड़क
    गैरों में ठहाके लगाता
    वह खुद को ढूंढता है !
    khoob pasand aayee......

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  9. जिंदादिली की ज़िन्दगी देने के लिए
    मन के बेसुरे सुरों को सुर देने के लिए !!!
    ...........यही तो असली जिंदादिली माँ

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  10. यही है ज़िंदादिली……………रोज खुद को मिटाकर फिर जिला देना हर किसी को कहाँ आता है।

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  11. जिंदादिली की ज़िन्दगी देने के लिए
    मन के बेसुरे सुरों को सुर देने के लिए

    आपने एकदम सही कहा दीदी ... ये दुनिया ऐसी ही है !

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  12. जिंदादिल एहसासों को खूब पिरोया है!

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  13. जीना आवश्यक है, जिन्दादिली से जीना कर्त्तव्य !
    हार्दिक शुभकामनाएं !

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  14. गैरों में ठहाके लगाता
    वह खुद को ढूंढता है !
    कितनी अजीब बात है न
    रिश्तों को गहराई से जीता हुआ
    प्रेम की चाक पर मन के प्याले गढ़ता हुआ
    वह बेदिली से प्याले तोड़ता है
    चीखता है निःशब्द ....

    वाह...अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  15. जिंदादिल ऐसे ही होते हैं।..बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  16. कितनी अजीब बात है न
    रिश्तों को गहराई से जीता हुआ
    प्रेम की चाक पर मन के प्याले गढ़ता हुआ
    वह बेदिली से प्याले तोड़ता है
    चीखता है निःशब्द ....
    ....और फिर....
    सुबह होते फिर....
    .........
    और सहज हो उठता है
    ....
    दीदी आसान नहीं है ऐसे जीना बड़ा सीखना पड़ता है ... और मैं सीख रहा हूँ
    कहानी पहचानी सी लगी
    सादर नमन
    भरत

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  17. सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
    ओस से नम मन की मिट्टी
    प्रेम की चाक पर प्याले गढ़ता है
    और सहज हो उठता है
    फिर से जीने के लिए....

    वाह! दी.... सुगढ़ चिंतन...
    सादर बधाई....

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  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    शहर की भाग दौड़ में जिंदादिल इन्सान अब कम ही मिलते हैं ।

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  19. जिन्दादिली और हौसले की आत्मकथा ...

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  20. jindadili se jina hi to jivan hai varna murde kya khak jite hai !
    bahut sunder rachna ...

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  21. सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
    ओस से नम मन की मिट्टी
    प्रेम की चाक पर प्याले गढ़ता है

    Behad khubsoorat lines hain

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  22. कल 19/10/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

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  23. कितनी अजीब बात है न
    रिश्तों को गहराई से जीता हुआ
    प्रेम की चाक पर मन के प्याले गढ़ता हुआ
    वह बेदिली से प्याले तोड़ता है
    चीखता है निःशब्द ....
    ..antarman ko jakjhorti sundar rachna...

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  24. जीने के लिए जिंदादिली दिखानी पढ़ती है ...

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  25. बहुत व्यस्त था ! बहुत मिस किया ब्लोगिंग को ! बहुत जल्द सक्रिय हो जाऊंगा !

    सुबह होते फिर इकट्ठी करता है
    ओस से नम मन की मिट्टी
    प्रेम की चाक पर प्याले गढ़ता है
    और सहज हो उठता है
    फिर से जीने के लिए

    जिंदादिल अभिव्यक्ति.. आभार

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  26. जिंदादिली से जिंदगी जीना और देना...बहुत कठिन है पर जो कोई कर ले फिर तो...बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.

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