11 अक्टूबर, 2011

फॅमिली बैक ग्राउंड बहुत बड़ी चीज है !!!???



नो डाउट - फॅमिली बैक ग्राउंड बहुत बड़ी चीज है .... सुख हो या दुःख , बाहरी झंझावात हो , आर्थिक सामाजिक समस्या हो तो यह परिवार एक मुट्ठी सा होता है ...... लेकिन प्रचलित फॅमिली बैक ग्राउंड का अर्थ क्या है ? पैसेवाला घर ? ओह्देवाला घर ? माँ , बाप , पति-पत्नी - जहाँ रात दिन कलह होते हैं , जिनके लिपे पुते चेहरे और भारी भरकम पर्स के आगे सामाजिक नियम कुछ और हो जाते हैं . जो अपने बच्चों से बेखबर होते हैं , जिनके बच्चे एक घर की तलाश में गुमराह हो जाते हैं ....
पेचीदा सा लगता यह सवाल मेरे अन्दर हथौड़े मारता है -
चलो सतयुग से प्रश्न उठाते हैं - राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं , तो आप कहेंगे - उस समय यही प्रचलन था . यदि यह सही था तो कालांतर में यह कानून क्यूँ बना कि दो शादी अपराध है ? या उसी युग में राम ने एक पत्नीव्रत क्यूँ लिया ? दशरथ के तीन विवाह , तीनों से हुए पुत्रों का परिणाम था राम का वनवास ... कैकेयी की जिद्द से दशरथ के प्राण गए ,तो उस परिवार को क्या बड़ी चीज कहेंगे ? उर्मिला के लिए कुछ नहीं सोचा गया - पर चलो यह ख़ास बात है ही नहीं !(अबला जीवन हाय ......) ............. सीता के त्याग , सहनशीलता का उदाहरण आप सब हम सब आज तक देते आए हैं , एक रात के लिए किसी की बेटी का अपहरण कलंक - तो सीता तो एक वर्ष रहीं ! अब बताइए कि दूरबीन लगाकर कौन पल पल का हिसाब रख रहा था और यदि रख रहा था तो निःसंदेह रावण सम्मान योग्य है . ...... पर राम ने आम जनता की शंका के निवारण के लिए अग्नि परीक्षा ली - अब आप कहेंगे कि वे भगवान् थे , राम ने पहले ही सीता को अग्नि को सुपुर्द कर सुरक्षित कर दिया था - अब प्रश्न है कि हम भगवान् कैसे बन जाएँ , और यदि यह सत्य था तो सबके सामने परीक्षा का प्रयोजन क्यूँ ? सतयुग में तो सब भगवान् ही थे ! फिर एक धोबी , फिर वनवास - और कोई खोज खबर नहीं .... इस फॅमिली में बड़ी चीज क्या रही ?
अब चलें द्वापर युग में ----- मथुरा नरेश कंस अपनी नृशंस ज़िन्दगी को बरक़रार रखने के लिए अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को बंदीगृह में डाल देता है , क्योंकि ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि देवकी का आठवां पुत्र उसके लिए काल होगा ..... कालकोठरी में वह निर्ममता से देवकी के बच्चों की हत्या करता गया = इस पूरे प्रकरण में परिवार जैसी कोई बड़ी चीज तो नहीं थी .
कृष्ण की अदभुत छवि सर्वव्याप्त है - तुलसी दास ने बहुत ठीक लिखा है- जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी " कृष्ण के रास की अलग अलग परिभाषा है , किसी ने उसे भक्तिभाव से जोड़ा है, किसी ने शरीर से . यदि हम शरीर से जोड़कर देखेंगे तो अनुकरणीय नहीं , न ही कोई परिवार मानेंगे . तो यह व्यापक सत्य गीता से ही समझा जा सकता है , जिसे हम कसौटी पर रखने की ध्रिष्ट्ता नहीं कर सकते !
पर उसी युग में शांतनु पुत्र विचित्रवीर्य की दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। अब कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा, "पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो।" माता की बात सुन कर भीष्म ने कहा, "माता! मैं अपनी प्रतिज्ञा किसी भी स्थिति में भंग नहीं कर सकता।"
यह सुन कर माता सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। अचानक उन्हें अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण हो आया। स्मरण करते ही वेदव्यास वहाँ उपस्थित हो गये। सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, "हे पुत्र! तुम्हारे सभी भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। अतः मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो।" वेदव्यास सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौट कर माता से बोले, "माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा।" सत्यवती को यह सुन कर अत्यन्त दुःख हुआ और उन्हों ने वेदव्यास को छोटी रानी अम्बालिका के पास भेजा। अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई। उसके कक्ष से लौटने पर वेदव्यास ने सत्यवती से कहा, "माता! अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र होगा।" इससे माता सत्यवती को और भी दुःख हुआ और उन्होंने बड़ी रानी अम्बालिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जा कर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, "माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदान्त में पारंगत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।" इतना कह कर वेदव्यास तपस्या करने चले गये।
समय आने पर अम्बा के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।
अब इस परिवार को आदर्श की किस श्रेणी में रखेंगे , कहाँ उदाहरण देंगे और परिवार सही मायनों में हुआ किसका ..... न शांतनु से संबंध न विचित्रवीर्य से न भीष्म से - तो बंधु कथा तो यहीं से पलट गई ! और अब सूक्ष्मता से देखा जाए तो दासी पुत्र विदुर की ही चर्चा हो सकती है.... विदुर से रिश्ता जोड़ना अधिक श्रेष्ठ है , बशर्ते ध्रितराष्ट्र और पांडू से रिश्ता जोड़ने के ! पांडू पुत्र कह देने से अर्जुन,युद्धिष्ठिर ,भीम, नकुल, सहदेव पांडू पुत्र नहीं होते , कर्ण तो सूर्य पुत्र कहे गए (सही नाम मिला) . उसके बाद इस कहानी में आती है द्रौपदी ..... जो ५ पुत्रों के बीच खाद्य सामग्री की तरह सौंप दी गई . कुंती ने जानबूझकर खुद की तरह कई पुरुषों के मध्य द्रौपदी को कर दिया .... खैर , ये परिवार के नाम पर क्या बड़ी चीज थे जब अपनी शान के लिए इन्होंने द्रौपदी को दाव पर लगा दिया - कृष्ण न होते तो बेड़ा गर्क ही था !
अब आज ऐसी कुंती माँ के संग कौन रिश्ता जोड़ेगा ..... ह्म्म्म , जोड़ेगा , यदि हस्तिनापुर जैसा राज्य हो , वैभव के आगे सारे ऐब निरस्त होते हैं !!!
..............
अब कलयुग के ऐसे पुरुष पात्रों को उठाती हूँ , जिसमें से आपके आसपास की कई छवियाँ उभरेंगी , और आपका मन उसके साथ आपके मन को तौलेगा - हाँ मन को , क्योंकि मन से भागना संभव नहीं ! और ऐसे सवालिया पात्र परिवार की बात अधिक उठाते हैं -
- दहेज़ के नाम पर पत्नी को बेरहमी से मारनेवाले
- बेटी होने पर पत्नी के साथ बुरा सलूक करनेवाले
- अपने अहम् की तुष्टि में पत्नी को घर से निकालनेवाले
- गाली गलौज करनेवाले
- हत्या करनेवाले
- एक एक रोटी का टुकड़ों में हिसाब करनेवाले
- दूसरे की बहू बेटी को गलत नज़रों से देखनेवाले ................. इत्यादि
अब कुछेक महिला पात्रों को भी उठाती हूँ :
- अपने संदेह में पुरुष का जीना दुश्वार करना
- पुरुष के हर कार्य में हस्तक्षेप , अपनी राय देना
- पुरुष के परिवार के सदस्यों के साथ बदसलूकी से पेश आना
- अपनी बात मनवाने के लिए त्रियाचरित्र दिखाना
- बात बेबात कलह करना .................
ऐसे परिवार की बातें आसमानी होती हैं , ये सिर्फ दूसरों से उम्मीदें पालते हैं, उनकी आलोचना में वक़्त जाया करते हैं और सबसे ज्यादा तरीके की बात यही करते हैं . ' फॅमिली फॅमिली ' सबसे ज्यादा यही करते नज़र आते हैं .
फॅमिली बैक ग्राउंड बहुत बड़ी चीज तभी होती है जब वह पैसे से समर्थ हो , रूतबा हो .... मात्र शिक्षा का कोई औचित्य नहीं (शिक्षा का संबंध संस्कार से जुड़ा होता है और रोटी कपड़ा मकान )...पॅकेज से शुरुआत होती है , फिर कौन खूनी है, कौन अय्याश है ... कोई फर्क नहीं पड़ता ,
और आजकल तो लिविंग रिलेशनशिप का ज़माना है - कानूनन ! और भी बहुत कुछ क़ानूनी है तो अब पलड़े का क्या आधार होगा ! किसे बड़ी चीज कहेंगे ....???

51 टिप्‍पणियां:

  1. बाप रे रश्मि दी ! आज तो गज़ब के तेवर हैं :) सबको एक लाइन से लगा दिया.
    पर आपकी एक एक बात से सहमत हूँ.ये बात सोचने वाली है कि हमारे भगवान सब राज्य घराने से ही क्यों थे?..
    क्योंकि उन्हें भगवान कहलवाया गया.और बेचारी जनता मानने लगी..

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  2. आज तो आप अलग रंग में दिखीं। लेकिन सोच के तेवर वही हैं। यह वैचारिकी भी अच्‍छी लगी।

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  3. बेहद सटीक और सारगर्भित बात आपका ये रूप भी मन में घर कर गया . आप वास्तव में साहित्य पुत्री है

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  4. इस आलेख की सबसे अच्‍छी बात तो यह है कि यह शुरू से अंत तक आपको बांधे रखता है ...आप पढ़ने के साथ मनन करते जाते हैं ऐसा था ..ऐसा है और ऐसा हो रहा है ...किसी भी बात को नकारा नहीं जा सकता लेखन की इस कला के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई ..पारिवारिक पृष्ठिभूमि का दंभ भरते .. दोमुंही बात करते लोग कई बार हंसी का पात्र बनते हैं और बात जब खुद पर आती है तो किनारा कर जाते हैं ..सच्‍चाई बयां करती इस प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  5. मात्र शिक्षा का कोई औचित्य नहीं (शिक्षा का संबंध संस्कार से जुड़ा होता है और रोटी कपड़ा मकान )...पॅकेज से शुरुआत होती है , फिर कौन खूनी है, कौन अय्याश है ... कोई फर्क नहीं पड़ता

    आजकल ऐसा ही है।

    बहुत ही अच्छा आलेख।

    सादर

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  6. आपकी बात बिलकुल सही है पारिवारिक प्रष्ठभूमि का आधार ही सब कुछ नहीं हो सकता व्यक्ति अपने कर्मो से महान बनता है...सारगर्भित लेख

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  7. दीदी,..कितना मंथन चलता रहता है आपके अंदर, कहाँ तक देखते हो आप चीज़ों को, और कितनी गहन और मनोवैज्ञानिक व्याख्या और तर्क रखते हो आपके चिंतन पर मुझे गर्व है,
    एक विचार यह भी आ रहा है कि क्या परिवार का ज़माना अब धीरे धीरे जाने को है? क्या पारिवारिक प्रष्ठभूमि का अब कोई औचित्य है ? यद्यपि गरीब परिवारों में तो पहले ही नहीं था, वंशावलियां केवल शासक और धनवानों की ही होती हैं और उनको भी वैयक्तिक वाद अब धीरे धीरे खतम ही कर रहा है ...लिविंग रिलेशनशिप ही भविष्यहै भले ही यह निकट भविष्य में न हो मगर आने वाले कल का यथार्थ यही लगता है मुझे!
    इतने उर्जावान लेख के लिए बधायी दीदी आपको |

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  8. तभी तो लोग फेमिली देख कर शादी कर देते थे।

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  9. bahut khub.is aalekh me to apne sabko ek kataar me khada kar unki acchi khatir ki hai
    bahut hi prabhavshali hai apka ye aalekh...

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  10. ओह!!
    तो इस आलेख की पृष्ठ्भूमि के लिए कभी आपने प्रश्न किया था- फैमिलि बेकग्राउंड का क्या अर्थ है?

    आपने लालसाओं और तृष्णाओं को निशाना बनाया है, तब भी और अब भी॥

    सार्थक नवीन और गहन दृष्टि का अभिलेख है। बेहद गम्भीर बात का चिंतन॥

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  11. एक अलग ही अंदाज़...सोच की एक नयी दिशा..अद्भुत और विचारणीय...

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  12. पहली बार आज का आपका ये तेवर बहुत पसंद आया | एकपल के लिए तो दिव्या जी की याद आ गयी | कृपया यही तेवर आगे की पोस्ट में भी बनाये रखिये तभी नारी जाति का कल्याण होगा | महर्षि दयानंद ने भी इन्ही गलत बातों के कारण पुराणों का विरोध किया है | इन्ही बकवासों के कारण ही नारी जाति को उसके मूल भूत अधिकारों से वंचित किया गया | आज भी हम उस सड़ी गली परंपरा से छुटकारा पाने की कोशिश नहीं करते | इतने अच्छे पोस्ट के लिए आपको सादर नमन!

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  13. dimaag bhanna gaya padh kar
    ye saare awal hamesha se saamne khade hain, par hum dekhna nahi chahte, jawab nahi hai na, so aankh churate hain....padh kar maun hoon

    apne andar jawab dhoondhne ki koshish kar rahi hu ab

    abhaar

    Naaz

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  14. फेमिली बैकग्राउंड सीधा-सीधा फेमिली बैंकग्राउंड से जुड़ता सा प्रतीत होता है तब भी और अब भी.
    सार्थक प्रश्न उकेरता आलेख

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  15. रश्मि जी बहुत ही उम्दा और सार्थक पोस्ट

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  16. बेहद सटीक और सारगर्भित आलेख........

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  17. दी ,
    आज कुछ दिनों के अन्तराल के बाद ब्लाग की अपनी दुनिया में वापस आयी हूँ और आते ही आपका आलेख पढ़ा ... बहुत ही कमाल का ,एकदम अलग अंदाज़ में ...बहुत तीखे तेवर में ,क्या बात है ..... सादर !

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  18. दीदी (और गर्व हो रहा है आज अभी "दीदी" कहते) निश्चय ही काफी वर्षों से जो उथलपुथल थी (शायद बचपन खत्म होते ही) उसको आज आपने शब्दों में उतार दिया और वो भी साक्छ्य समेत...
    और मैं बहुत खुश हूँ , कारण ! कि मेरे कई सवालों का जवाब मिल गया आज मुझे और बड़ा हल्का महसूस हो रहा है ...
    आपको और आपकी कलम को दण्डवत नमन ...
    सदैव आसपास भरत

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  19. बढ़िया अंदाज़ ....
    शुभकामनायें !

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  20. काम बन्द किया था कुछ दिनों से अब चालू करना आसान होगा इसे पढ़ने के बाद ...:-)

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  21. कई दिन के बाद आज वापस आई ब्लॉग की दुनिया पर ...और आज ही सुबह सुबह आपका यह विचारो त्तेजक,मनोविश्लेशनात्मक लेख पढ़ने को मिला.
    आपने बिलकुल सही प्रश्न उठाये हैं...अधिकतर समाज चुप हो जाता है जब अमीरों के मामले में कुछ कहना होता है ..
    लिव इन के ज़माने में कहाँ के संस्कार ,कौन सी परम्पराएं ,कहाँ के रीति रिवाज ??
    एक चीज़ अच्छी यह लगी कि आपने केवल पुरुषों पे ऊँगली नहीं उठायी वरण स्त्रियाँ जो गलत आचरण करती हैं...आदमियों को त्रस्त करती हैं...उन को भी शामिल किया है...अन्यथा वो तो वूमेन लिब के समय में अक्सर बच के ही निकल जाती हैं .
    सौम्य भावों से युक्त आपकी रचनाओं के साथ आज आपके तीखे तेवर भी देखने को मिले .

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  22. आपका यह निरपेक्ष भाव ही मुझे आपके प्रति श्रद्धा से भरता है ...आँख मूंदकर ना किसी का समर्थन, न किसी का विरोध ...

    द्रौपदी से सम्बंधित और विचित्र तथ्य है ...तर्क दिया जाता है कि परिवार को एक जुट रखने के लिए ही द्रौपदी को पांचों पति के बीच बाँटना पड़ा , तो फिर सभी पतियों ने अन्यत्र विवाह क्यों किया , वे पत्नियाँ क्यों नहीं विभाजित की गयी, और तो और अर्जुन ने भी दूसरा विवाह किया . द्रौपदी जो कि सम्मानित कुल की राजकुमारी थी , उसकी खूबसूरती और विद्वता उसके लिए अभिशाप हो गयी!

    @अब आज ऐसी कुंती माँ के संग कौन रिश्ता जोड़ेगा ..... ह्म्म्म , जोड़ेगा , यदि हस्तिनापुर जैसा राज्य हो , वैभव के आगे सारे ऐब निरस्त होते हैं !!!
    कितना सत्य है , सौ दुर्गुण हो , पैसा , शोहरत हो , सब छिप जाता है !
    हाई सोसाईटी में परिवारों की क्या स्थितियां हैं , क्या आदर्श और नैतिकता है , कौन नहीं जानता , मगर सबके मुंह सिले होते हैं , हिम्मत हो तो उन्हें आईना दिखाएँ !

    जबरदस्त पोस्ट!

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  23. अरे बाप रे रश्मि जी ,आज क्या हो गया ..पक्का किसी की बात नश्तर की तरह चुभी होगी और ये विचारों की निर्मल धारा में ज्वार आ गया ..रामायण से महाभारत तक सब लपेटे में आ गए ...अभी एक दो बार और पढूंगी फिर टिपण्णी करूंगी

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  24. फैमीली बेकग्राउण्‍ड कभी पैसे से,कभी शिक्षा से, कभी जाति से, कभी धर्म से देखा जाता है। लेकिन यह सब कोई मायने नहीं रखते।

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  25. तर्क सत्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता.
    सृष्टि - उत्पत्ति से ले कर, मानव - उत्पत्ति
    तक ही नहीं, आज के परिवेश में भी यह बात
    त्रिकाल सत्य जैसी है.
    उत्तम रचना.
    साधुवाद.
    आनन्द विश्वास.

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  26. aaj aapka lekh padhkar maja aa gaya....bahut hi sarthak aur tathyaparak rachna hai...aapko padhkar hamesha lagta hai sach me log accha bhi likhte hain.....

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  27. बहुत खूब बड़ी माँ... फैमिली background का हल्ला... बाप रे बाप...
    और कई बार तो ये हल्ला इतना ज़्यादा होता है कि लगता है कि कान के परदे फट जायेंगें... और बस जव़ाब कि देर, पलट के बोल दो और फ़िर फुर्सत...
    न जाने लोग संस्कारों और साक्षरता के स्तर को देखने की बजाय धन-दौलत, जान-पहचान को ज़्यादा भाव देते हैं... history उठा के देखेंगे तो न जाने कितने ऐसे उदहारण मिल जायेंगे...
    वैसे ये तमाचा भी बढ़िया था... :)

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  28. aap hamesha hi wahan se sochna shuru karti hain jahan samanytaya log sochna band kar dete hain..aitihasi prishbhumi ko adhar banate hue..bade hi gambhir tarike se lelin tarkikta ke sath samajhne yogya banate hue behatarin bicharon se awgat karaya..samrath ko nahi dosh gosai..jo samarth hain wahi apne har kritya ko niyam bana dete hain aaur jab unse hi niyam toot jaate hain to sudharwadi hone ka dhong karte hain..is rachna aaur iski shrajan karta ko sadar pranam

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  29. बहुत ही सार्थक और सटीक पोस्ट /बहुत ही सच्ची बात लिखी आपने/बहुत गहराई से सोच कर बहुत सूछ्म बातों का अध्यन करके बहुत लाजबाब लेख लिखा है /बधाई आपको /

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  30. aaderniya rashmiji..aaj phir se aapka gahan chitan me dooba aaur sabko dubata aalekh padha..aap wahan se sochna shuru karti hain amoonan jahan log sochna band karte hain..aitihasik prishthbhumi ko adhar banakar bade hi tarkik tarike se likha gaya yah lekh ..aapke najariye se main purntaya sahmat hoon aaur aapki lekhni ka hamesh ki tarah kayal bhi..sach hai samrath ko nahi dosh gosai..samarth log apne krityon ko niyam ka darja deta hain..aam aadmi un per chalne ko bibash hota hai..kalanter me yada kada jab bhool vash bhi ye niyam inhi samarthon ke dwara toot jaate hain tab ye sudharwadi hone ka dhong kar daalte hain..kisi garib ke yahan agar aise bidur karna arjun paida ho gaye hote to kahani kuch aaur hoti..koi nahi sunta aisi kahaniyan..aapke blog per aana mujhe chintan ki nayi disha deta hai..aapke sahitya ki rawangi aaur tajgi ka main kayal hoon....is shandaar rachna aaur iski shrjankarta ko sadar pranam ke sath

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  31. क्या बात है! वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई

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  32. अरे - आज तो बात ही और है ..
    जी
    पढ़ा - कुछ समझी, कुछ नहीं भी - पर हाँ आमतौर पर तो सहमती है ..

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  33. आप तो बहुत धनी लग रही हैं आज। इस पोस्ट की बात कर रहा हूँ। वैचारिक द्वंद्व छेड़ दिया है आपने।
    फेमिली बैकग्राउंड व्यक्ति-व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है। वह कैसा बैकग्राउंड चाहता है। कृष्ण का वसुदेव-देवकी के घर जन्म लेना कोई साधारण घटना नहीं थी। वे चाहते तो सबसे धनी और शक्तिशाली के घर भी जन्म ले सकते थे। लेकिन उन्होने ऐसे माता-पिता का चुनाव किया जो आपस में खूब प्यार करते थे। कृष्ण की पसंद का फेमिली बैकग्राउंड वही था।

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  34. रश्मि जी ,

    बहुत गहन चिंतन है ... अभी मैं इस पर कुछ लिखने में समर्थ नहीं हो पा रही ... फिर से पढूंगी ... वैसे महाभारत में मुझे तो कोई भी पात्र भीष्म के बाद ... जायज़ नहीं लगता .. फिर कैसा फैमिली बैक ग्राउंड ?

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  35. आदरणीय रश्मी दी,
    बहुत ही सशक्त तर्कसंगत आलेख...
    तमाम प्रश्न सार्थक और गहन चिंतन की धरातल से उपजे हैं... निश्चित ही अनुत्तरित भी है.... इस गहन चिंतन के लिए कोटिशः साधुवाद और आपकी लेखनी को सादर नमन....

    इन तमाम तर्कों के पृथक मेरी शंका रावन को सम्मानीय (?) बताने को लेकर रही है...
    किसी गलती करने वाले के प्रति सम्मान का भाव क्या केवल इसआधार उचित होगा कि कुछ सुस्थापित सम्माननीय संस्थाओं ने भी गलतियां कीं...?
    क्षमा याचना सहित... सादर....

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  36. मैं रावण के पक्ष में नहीं बोल रही, पर जितने कुत्सित हाथ रावण को जलाने के लिए तत्पर होते हैं -
    वह क्या न्यायोचित है ? पढ़े के आधार पर हम- आप रावण के विरुद्ध जाने क्या क्या कहते हैं , (क्योंकि
    यह कहानी राम से जुड़ी है !), पर आंखन देखी घटनाओं से हम मुंह मोड लेते हैं या फिर सामाजिक दुहाई
    देते हुए सही को कुर्बान कर देते हैं, गलत को आदर देते हैं .

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  37. बहुत सार्थक विश्लेषण किया है !
    बहुत बढ़िया .....

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  38. आपकी बात से सहमत है ...आपकी बाते और विचार सीधा दिल दिमाग में उतर जाते है ....सोचने को मजबूर करते है

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  39. पूरा खरा खरा, ना कुछ छुपाना,,, ना किसी का बचाव पूरा सत्य... पढ़ कर अच्छा लगा...

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  40. आज family background को हर रिश्ते में शामिल करने का आधार माना जाता है. फिर उन युगों के ऐसे background को क्या कहा जाए जहां न परिवार है न कोई chintan? bahut achchha आलेख है jispar jitne vichaar kiye jaayen उतने जवाब मिल सकते हैं.

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  41. aapne jo kuch bhi likha hai wo bahut had tak satya hai (kuch jagah chod kar).
    parantu mera maan na hai ki aap chijo ko kasie dekhtain hain ......

    1st approach
    Aap history and Scince main believe karte hain to ye sare granth ramayana, mahabharata to story hai jo us samay ki samaaj sanrachana ko dikhata hai.

    2nd approach

    You believe in hindutava and mante ho ki ram and krishna are lord then before questioning any incident in that u need to analyze it in that way only (aadhyatmic taur par)

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  42. रश्मि प्रभा जी ,सबसे पहले मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ कि आपने इस धर्मांध समाज के कायदे क़ानून के विरुद्ध आवाज उठाने की हिम्मत की। आपने एक एक उदहारण सटीक दिया है। जाति और परिवार पर दंभ भरनेवालों को इन बातो का ध्यान रखना चाहिए। सत्यवती खुद मत्स्य कन्या थी , व्यास उसका बेटा ,व्यास से उत्पन्न बच्चे क्षत्रिय कैसे हुआ ? संतान जायज कैसे हुआ ? राजवंश में थे इसीलिए ? ........... राजा दशरथ के कोई पुत्र नहीं था .रिश्य्श्रीन्गा मुनिको बुला कर यज्ञ किया ,पुत्र हो गया. उस समय जनता ने विश्वास किया था यह, क्या आज कर रहा है ? उस समय नियोग प्रथा प्रचलित थी।कई राजाओं के यहाँ नियोग से संतान उत्पन्न हुए। ........... परसुराम ने २ १ बार पृथ्वी क्षत्रिय हीन किया ,सभी क्षत्रिय मर्दों को मर डाला फिर औरतें तथाकथित म्लेच्छ या ब्राह्मणों या जो भी मर्द उपलब्ध थे उन्ही से बच्चे पैदा किया होगा ,फिर उन्हें क्षत्रिय कैसे कहा जाय ? असल में जाति केवल दो ही है , स्त्री और परुष। परिवार की दशा तो आपने समझा दिया है ,उसके आगे कुछ कहना आवश्यक नहीं समझता। फेमिली बैक ग्रौङ्ग के बारे में बात करने वाले खुद उनके ५ वीं ६ वीं पीढ़ी के बारे में कुछ नहींजानते। मैंने यह लेख आज ही देखा इसलिए आज अपनी बात बता रहा हूँ।

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  43. तेज़ धारदार शब्दों और भावों से बना सशक्त लेख जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है....आज तो बस इतनी चाह है कि इंसानियत का धर्म मानने वाले परिवार के साथ संबंध बन जाए तो इससे बड़ी कोई बात ही नहीं..

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  44. सटीक और सार्थक आलेख ......सशक्त विश्लेषण
    बहुत कुछ और आगे जोड़ने के लिए सोचने पर
    मजबूर करता आलेख ....साभार.....

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...