31 अक्तूबर, 2011

देखा अपना हश्र !!!



मकड़ी का जाल
हल्का हाथ लग जाए
तो अजीब सी गिजबिजाहट होती है
हटाने में छोटा सा जाला
इधर से उधर सटता है
शक्ल बन जाती है
.....
अब जरा सोचो
नहीं नहीं सोच के देखो
जाला
जैसा खंडहरों में होता है
उससे तुम टकरा जाओ
पूरे शरीर में वह चिपक जाए
चेहरा , हाथ .....
ओह !
........
कई बातें , कई रिश्ते
जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
छुड़ाते छुड़ाते
खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है
शक्ल देखने लायक होती है !
अचानक लगता है ....
हम बुद्धिमान नहीं
रिश्तों की भोथरी दुहाई देते
मकड़ी का भोजन हैं
बस लजीज भोजन
जिसे मौका मिलते मकड़ी चट कर जाए
और कहे
देखा अपना हश्र !!!

44 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ कहाँ पहुँच गई आप ...अँधेरे रिश्तों की गुहा में ...

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  2. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है
    गलती का अहसास ...हमें मन ही मन कचोटता रहता है ..।

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  3. sach kaha kuch rishte makdi ke jaal ki tarah hi hote hain jinse nikalte nahi banta.

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  4. हम बुद्धिमान नहीं
    रिश्तों की भोथरी दुहाई देते
    मकड़ी का भोजन हैं
    बस लजीज भोजन
    जिसे मौका मिलते मकड़ी चट कर जाए
    और कहे
    देखा अपना हश्र !!!

    लाजवाब पंक्तियाँ हैं।

    सादर

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  5. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है
    शक्ल देखने लायक होती है !

    bhut sunder.

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  6. wah...adbhut...behtareen

    bahot sundar prastuti...

    www.poeticprakash.com

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  7. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है
    शक्ल देखने लायक होती है !

    आपकी रचना पढते पढते मैं तो न जाने कितने मकड़ी के जालों में उलझ गयी ..सुन्दर प्रस्तुति

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  8. ओह... किसी हकिकत और कितनी भयावनी सच्चाई... गज़ब की प्रस्तुति..

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  9. लोग इस मकड़ी के जाले को माया कहते हैं।

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  10. मकड़ी के जाल की तरह बुने रिश्तों का सच....!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  11. यह मकड़ी का जाल ..
    जानते समझते हुए भी फँसते हैं लोग

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  12. अचानक लगता है ....
    हम बुद्धिमान नहीं
    रिश्तों की भोथरी दुहाई देते
    मकड़ी का भोजन हैं
    बस लजीज भोजन
    जिसे मौका मिलते मकड़ी चट कर जाए
    और कहे
    देखा अपना हश्र !!!
    बहुत सुन्दर और गहरी पंक्तियाँ...पता नहीं कैसे लिख लेती है आप
    ........अतिसुंदर रचना ..!!

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  13. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है
    bahut khoob....aabhar

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  14. ये मकड़ी के जाल नही बस माया जाल है...सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  15. "यह जिन्दगी है या फिर किसी शिकारी का जाल
    जालिम छूटने की कोशिश में उलझता चला गया"

    सादर....

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  16. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है

    Behatareen Prastuti.. Aabhar..

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  17. सकारत्मक विषय..सुन्दर कविता

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  18. मकड़ी तो है ही ऐसी कलाकार ।
    बच कर चलना ही सही है ऐसे मकड़जाल रिश्तों से ।

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  19. मकड़ी का जाला...और रिश्ते...क्या तुलना है...चिपक जाएँ तो चाट डालते हैं...

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  20. मकड़ी के जाल में एक बार फंस जाय तो निकलना मुश्किल होता है,शायद इसी को मकडजाल कहते है...सुंदर पोस्ट ....

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  21. waah Badi Maa... aajkal to ekdam...
    khair... par ky aaisa nahi ho skta ki ham waqt-waqt pe us jagah ki safai karte rahen, aur use na khandhar banne de na waha jaale lagne de...
    na khandhar, na jale... bas har waqt ek sarsarati si hawa... pyaari-si mahak liye hue...

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  22. रिश्तों का मकड़जाल ऐसा ही होता है, कभी-कभी तो जितना सुलझाओ..उतना ही उलझे..

    सुन्दर रचना.

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है..
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com

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  23. सचमुच आप मान्यवर पन्त जी से विरासत में मिली शब्दों एवं भावों का निधि पाई हैं ! रिश्तो के ताने बाने में तो हर कोई फसता है ठीक इसी मकड़ी के जाल की तरह जो जितना सुलझाने की कोशिश करता है वो और ही उलझता जाता है !

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  24. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    anoothe hain aapke bhaw.....bahut pasand aayee.

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  25. बहुत सुन्दर रश्मिप्रभा जी ...कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है .
    रिश्तों,बातों की जाले से तुलना बहुत अच्छी लगी

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  26. अचानक लगता है ....
    हम बुद्धिमान नहीं
    रिश्तों की भोथरी दुहाई देते
    मकड़ी का भोजन हैं...
    रिश्तों का मकडजाल ऐसा ही है ...जिनमे उलझे हम गोल गोल घूमते जाते हैं !

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  27. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है

    हाँ होते हैं कुछ ऐसे रिश्ते मकड़ी के जालों की तरह...

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  28. बहुत कुछ कह दिया……………इस मकडजाल मे फ़ंस कर मकडी ही कहाँ बचती है एक दिन इसी मे सिमट जाती है।

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  29. तभी तो कहा है किसी ने, बाबूजी धीरे चलना प्यार में जरा सम्भलना...

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  30. अचानक लगता है ....
    हम बुद्धिमान नहीं
    रिश्तों की भोथरी दुहाई देते
    मकड़ी का भोजन हैं
    बस लजीज भोजन
    जिसे मौका मिलते मकड़ी चट कर जाए
    और कहे
    देखा अपना हश्र !!!

    दीदी रिश्ते होते ही क्यों हैं ..क्या जरूरत है इनकी
    दीदी मेरे पास आजकल प्रश्न कुछ ज्यादा ही हो गए हैं ...क्या करूँ मैं अपना !

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  31. रिश्ते और जले .... वाह क्या नया बिम्ब बुना है ... रिश्तों का जाल निकलने नहीं देता ...

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  32. कई बातें , कई रिश्ते
    जाले की तरह जाने अनजाने चिपक जाते हैं
    छुड़ाते छुड़ाते
    खंडहर से गुजरने की गलती का आभास होता है
    और अंत में सिवाय पछतावे के और कुछ हाथ नहीं रहता रिश्तों के मकड़ जाल से बुनी मन के अंदर कई प्रश्न उठती पोस्ट ....

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  33. आपकी भावनाओं को व्यक्त करने की प्रतिभा कविता पढने से ही पता चलती है,सबसे बड़ी बात है की आप उसका सदुपयोग करती हैं और ये भी एक सच्चे कवि या कवियत्री की पहचान है,आप ना भी बताएं तो भी आप पन्त साहब के यहाँ की लगती हैं,आप ब्लॉग पे आयीं और लिंक दियें उसका ह्रदय से आभार।

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