01 अक्टूबर, 2011

समंदर को मीठा



मेरा दिल कर रहा है
खींच दूँ दीवारों पर
आड़ी तिरछी रेखाएं
उन रेखाओं को छूकर
कोई मेरे मन को पढ़ जाए
समंदर की लहरों तक खींच ले जाए
समंदर से कहे
'शोर को जब्त कैसे करते हैं सीख लो'
समंदर की लहरें कहें -
' इसे मेरी तरह चीखना सीखा दो
वरना धीरे धीरे सारी मिठास ख़त्म हो जाएगी
और खारापन रगों में बहने लगेगा ....
............
मैं चाहती हूँ ... वह कोई
समंदर को मीठा कर जाए !!!

31 टिप्‍पणियां:

  1. गहन भाव ... मन के समंदर से मिठास नहीं जानी चाहिए

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  2. इसे मेरी तरह चीखना सीखा दो
    वरना धीरे धीरे सारी मिठास ख़त्म हो जाएगी !

    Aabhar....

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  3. खारापन कम करने क लिए अन्दर का गुबार निकलते रहना चाहिए...

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  5. वाह .. बेहतरीन काव्य बेहतरीन आकांछा .काश आपकी अभिलाषा पूरी हो

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  6. समंदर की लहरें कहें -
    ' इसे मेरी तरह चीखना सीखा दो
    वरना धीरे धीरे सारी मिठास ख़त्म हो जाएगी
    और खारापन रगों में बहने लगेगा ....

    मैं चाहती हूँ ... वह कोई
    समंदर को मीठा कर जाए !!!

    मन के भावों को दबाकर रखने से तो खारापन ही पैदा होगा इसीलिये कविता रुपी नदी मिठास लिए बहती रहे ...शुभकामनाएं

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  7. samunder to khara hi achha lagta hai rashmi , meethi to nadi hoti hai

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  8. लहरों के चीखते रहने पर भी सागर का खारापन कम ना हुआ... मिठास आएगी भीतर की शांति से

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  9. वाह दीदी, क्या बेहतरीन कविता है ! पर मैं रजनीश जी से सहमत हूँ ... मिठास मन की शांति से आती है ... नाकि उत्तेजना से ...

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  10. दिलों में खारापन ना रहे और मिठास भर जाये.

    मैं चाहती हूँ ... वह कोई
    समंदर को मीठा कर जाए !!!

    सुंदर विचार सुंदर कविता के माध्यम से. आभार.

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  11. अद्भुत अहसासों भरी सुन्दर रचना....

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  12. बहुत ख़ूब...कितने गहरे भाव हैं आपकी इस कविता में समंदर और दिल का सामंजस्य

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  13. खारा होने से तो चीखना शुरू किया समुंदर ने!

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  14. अत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति .

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  15. समंदर से कहे
    'शोर को जब्त कैसे करते हैं सीख लो'...

    वाह दी! अद्भुत अभिव्यक्ति है...
    सादर...

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  16. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| सार्थक प्रस्तुति . धन्यवाद|

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  17. lagta hai bahut sara kshar ikattha ho gaya hai.....agar ab pahunch hi gayi ho samunder k pas to jaldi karo isme pravahit kar do apne kshaar ko aur bacha lo rago me behne se pahle us kharepan ko.

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  18. समयानुसार ही समंदर का चीखना और लहरों की चुप्पी ठीक है!
    कभी कभी चिल्लाने में बुराई नहीं है , मवाद बह जाती है!
    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  19. मैं चाहती हूँ ... वह कोई
    समंदर को मीठा कर जाए !!!

    वाह...भावनाओं का एक सार यह भी ...

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  20. समुन्दर जैसा है तभी तो समुन्दर है...हम जैसे हैं तभी तो हम हैं...बस किसी को यह पता नहीं कि वह कैसा है...

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  21. waah... bahut sundar...
    samandar ke andar mithaas aur ussey cheekhne ki kala seekhna... bahut khoob...

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  22. वाह के साथ एक आह भी निकली मन से.काश ये खारापन कोई मिटा पाता.

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  23. बहुत सुन्दर रश्मि जी :)

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  24. मैं चाहती हूँ ... वह कोई
    समंदर को मीठा कर जाए !!! bhaut hi sundar....

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  25. zindgi ka kharapan kahan kaun mita paya hai kabhi...zindgi bas yun hin guzar jaati hai...

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