कमज़ोर मन से रिसते
रक्त संबंध के ज़ख्म
लचर दलीलों
राहत भरी हँसी के मध्य
आँखों से मूक टपक रहे थे
हर करवट में कराहट ...
..........
शब्दों की पकड़
रिश्तों की भूख ..."
हमेशा तुमसे सुना , गुना
अपने मन को
बंदिशों से
स्वार्थ से परे रखा .......
पर कितनी सफाई से आज भी तुमने
अगर, मगर में बात कही !!!
ओह !
मुझे विषैले तीरों से बिंध दिया गया
और तुमने कहा -
'मारनेवाले की नियत गलत नहीं थी !'
मारने के बाद मारनेवाले का चेहरा बुझ गया
वह ख़त्म हो गया ...
ये सारे वाक्य
ज़ख्मों पर
मिर्च और नमक का कार्य कर रहे हैं !
मैंने कसकर रिसते घाव को बाँध दिया है
पर वे चीखें
जो मेरे दिल दिमाग को लहुलुहान कर रही हैं
रेशा रेशा उधेड़ रही है
उनका क्या करूँ ?
.........
बिछावन पर गिर जाने से ही दर्द गहरा नहीं होता
उनकी सोचो
जिनके पाँव चलने से इन्कार करते हैं
पर उनको चलना होता है
........
क्यूँ हर बार
इसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
यदि संभव हो तो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
शब्दों की पकड़
जवाब देंहटाएंरिश्तों की भूख ..."
हमेशा तुमसे सुना , गुना
अपने मन को
बंदिशों से
स्वार्थ से परे रखा ....बहुत मार्मिक प्रस्तुति....
दर्द का सागर खड़ा कर देती रचना!!
जवाब देंहटाएंमार्मिक!!
अगर दूसरा सोचता तो आज येकहना ही ना पडता।
जवाब देंहटाएंक्यूँ हर बार
जवाब देंहटाएंइसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
यदि संभव हो तो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
रिश्तों को बनाये रखने की एकतरफा कशमकश और फिर अंत में जब सब्र का बाँध टूटा तो एक आखिरी निर्णय ... जो आपकी आखिरी पक्तियों में नजर अता है ...!!! बहुत सुन्दर रचना ... !!!!
Behtareen...
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
क्यूँ हर बार
जवाब देंहटाएंइसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
यदि संभव हो तो !!!!!
risto aur man ki unsuljhi uljhan ko vaykt karti sarthak rachna.....
कमजोर मन से रिसते
जवाब देंहटाएंरक्त संबंध के ज़ख्म
मैंने कसकर रिसते घाव को बाँध दिया है
पर वे चीखें
जो मेरे दिल दिमाग को लहुलुहान कर रही हैं
रेशा रेशा उधेड़ रही है
उनका क्या करूँ ?
इस बार सोचो
- सिर्फ तुमसब सोचो
असहनीय स्थिति से विद्रोह करने की मार्मिक प्रस्तुति.... !!!
जो मेरे दिल दिमाग को लहुलुहान कर रही हैं
जवाब देंहटाएंरेशा रेशा उधेड़ रही है
उनका क्या करूँ ?
.......किसी गहरे दर्द की अभिव्यक्ति है
हरेक पंक्ति बहुत मर्मस्पर्शी है। कविता अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंरक्त संबंध के ज़ख्म
जवाब देंहटाएंलचर दलीलों
राहत भरी हँसी के मध्य
आँखों से मूक टपक रहे थे
हर करवट में कराहट ...
खून के रिश्ते टूटते नहीं हैं ..यह सच ही एक लचर दलील है ..ज्यादातर रक्त सम्बन्ध ही टूटते देखे गए हैं ..
बिछावन पर गिर जाने से ही दर्द गहरा नहीं होता
उनकी सोचो
जिनके पाँव चलने से इन्कार करते हैं
पर उनको चलना होता है
........ और दर्द भी दिखा नहीं पाते ... बहुत मार्मिक अनुभूति
सोचना संभव ही तो नहीं है ..तभी तो अंत में आपने कह दिया कि यदि संभव हो तो ..
गहन भावों से भरी संवेदनशील रचना
क्यूँ हर बार
जवाब देंहटाएंइसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
यदि संभव हो तो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सही कहा है हर बार मैं ही क्यों सोचूं इस बार तुम सोचो और सब सोचो, सोचकर देखो बिलकुल मेरी तरह... कशमकश रिश्तों की...
क्यूँ हर बार
जवाब देंहटाएंइसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
यदि संभव हो तो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दर्द जहां हो वहां क्या कहा जाए ...इसे ही समझा इसे ही जाना जाए ...।
bahut gahan bhaav...dil ko kachotti marmik prastuti.
जवाब देंहटाएंउफ़ छलनी छलनी होता मन..
जवाब देंहटाएंपीड़ा
जवाब देंहटाएंसह जाये,
या
बह जाये,
बस देख लें,
मन में वह,
रह न जाये।
गहन भाव!
जवाब देंहटाएंकसमकश के बीच खूबशुरती लिखी रचना अंतिम पन्तियाँ बहुत अच्छी लगी...सुंदर प्रस्तुती......
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ...बहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो http://akashsingh307.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .फोलोवर बनकर उत्सावर्धन करें .. धन्यवाद .
क्यूँ हर बार
जवाब देंहटाएंइसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
गहन अभिव्यक्ति!
मैंने कसकर रिसते घाव को बाँध दिया है
जवाब देंहटाएंपर वे चीखें
जो मेरे दिल दिमाग को लहुलुहान कर रही हैं
रेशा रेशा उधेड़ रही है
उनका क्या करूँ ?
...बहुत मार्मिक...अंतस के दर्द को जीवंत कर दिया...आभार
dard ekdam bebaki se ubhar kar aa gaya hai.......क्यूँ हर बार
जवाब देंहटाएंइसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार - सिर्फ तुमसब सोचो
यदि संभव हो तो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बहुत गंभीर कविता... अंतिम पंक्तियाँ उद्वेलित कर देती हैं...
जवाब देंहटाएंशब्दों की पकड़
जवाब देंहटाएंरिश्तों की भूख ..."
हमेशा तुमसे सुना , गुना
अपने मन को
बंदिशों से
स्वार्थ से परे रखा ....
हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ हैं....
शब्दों की पकड़
जवाब देंहटाएंरिश्तों की भूख ..."
हमेशा तुमसे सुना , गुना
अपने मन को
बंदिशों से
स्वार्थ से परे रखा .......
पर कितनी सफाई से आज भी तुमने
अगर, मगर में बात कही !!!
ओह !
संवेदनशील रचना
शब्द- शब्द टपकता दर्द इसे ही कहते हैं ना !
जवाब देंहटाएंरिश्ते घाव बाँधने पर भी दर्द देते हैं..
जवाब देंहटाएंवाणी के उपयोग पर बहुत बड़ी-बड़ी बातें कहीं गयीं हैं...पर फिर भी लोग चूक जाते हैं...और अनायास अपनों को दर्द दे जाते हैं...
जवाब देंहटाएंवाह! दी, अथाह....
जवाब देंहटाएंसादर...
(
जवाब देंहटाएंसुन्दर....और सच भी.यह अगर -मगर से जब बातें कही जाती हैं तो घाव अक्सर ऐसे ही रिसते हैं.
जवाब देंहटाएंकश्मकश ...
जवाब देंहटाएंमैंने कसकर रिसते घाव को बाँध दिया है
जवाब देंहटाएंपर वे चीखें
जो मेरे दिल दिमाग को लहुलुहान कर रही हैं
रेशा रेशा उधेड़ रही है
उनका क्या करूँ ? marmik...
अंतर्मन की व्यथा-कथा में सम्भव क्या,असम्भव क्या
जवाब देंहटाएंपीड़ाओं का गरल सदा ही खुद को पीना पड़ता है.
शब्द-जाल के चक्रव्यूह में, मन-अभिमन्यु फँस जाता
भीष्म बने तो शर-शैया पर जीवन जीना पड़ता है.
मर्म का अतिरेक लिये अद्भुत रचना.
acha likha hai risto ka byaan
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, ज़ख्म से ज़्यादा उसका अहसास दर्द देता है...
जवाब देंहटाएंएक शेर याद आ रहा है-
बन आप अपने सफ़ीने का नाखुदा ऐ दोस्त
बुलंद अज़्म हवाओं के रुख बदलते हैं.
शब्दों की पकड़
जवाब देंहटाएंरिश्तों की भूख ..."
हमेशा तुमसे सुना , गुना
अपने मन को
बंदिशों से
स्वार्थ से परे रखा .जज़्बातों की अनुभूति,दर्द को बहुत गहरे से कहा है।
शब्दों की पकड़
जवाब देंहटाएंरिश्तों की भूख ..."
agar sambhav hotaa
to kitna achhaa hotaa
क्यों लोग
तिल तिल कर
मरते ?
बेवजह रिश्तों को
ढोते
दिल में नफरत
रखते
निरंतर पीछा छुडाना
चाहते
हिम्मत नहीं जुटा
पाते
जुबां से कह नहीं
पाते
ऐसी भी क्या मजबूरी
क्यों लोग
दोहरेपन से जीते ?
30-10-2011
1724-131-10-11
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्यूं हर बार
इसे सोचूं
उसे सोचूं
इस बार
सिर्फ तुम सब सोचो
यदि संभव हो तो..... क्या कहने
बहुत मार्मिक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंमैंने कसकर रिसते घाव को बाँध दिया है
जवाब देंहटाएंपर वे चीखें
जो मेरे दिल दिमाग को लहुलुहान कर रही हैं
रेशा रेशा उधेड़ रही है
उनका क्या करूँ ?
....
दीदी यद्यपि मैं बहुत वाचाल हूँ पर रचना को पधार निःशब्द हूँ अभी तो
प्रणाम !
dusra kahan soch pata kuchhh
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंबेहद अर्थपूर्ण रचना, बधाई.
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