21 अक्तूबर, 2011

सबसे अलग



जाने कब वह आया
पर जब से देखा जाना
सबसे अलग लगा ....
सुबह सुबह दबे पाँव
दूबों पर अटकी ओस से
मैं अपनी हथेलियाँ भरती हूँ
फिर दबे पाँव उसके सिरहाने जाकर
उसके जलते चेहरे पर
ओस बिखरा देती हूँ ....
छन् ' से आवाज़ आती है
एक धुंआ उठता है
और वह मुस्कुराकर चल देता है !
शाम को जब पंछी
अपनी नीड़ में लौट रहे होते हैं
मैं गोधूलि की लालिमा हथेलियों में भर
उसके आगे बिछा देती हूँ
पर वह मौन अरण्य में डूब जाता है !
मैं सोचती हूँ उसके नाम
हवाओं में लोरियां भर दूँ
पर वह .........
कौन है वह ? क्या चाहता है !
क्या ढूंढता है ....
आखिर पूछ ही लिया - वह ऐसा क्यूँ है?
कंदराओं से ज्यूँ आवाज़ उभरे
ठीक उसी तरह
हाँ बिल्कुल उसी तरह उसने कहा -
"क्या , कौन , क्यूँ ...
बुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
और मेरे सर पर हाथ रख गया .............

31 टिप्‍पणियां:

  1. क्या , कौन , क्यूँ ...
    बुद्धि मत लगाओ ...
    प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"

    सचमुच यह अबूझ पहेली हे...बहुत बहुत बधाई|

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  2. प्रकृति के खेल बड़े ही निराले हैं।

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  3. बुद्धि मत लगाओ ...
    सचमुच ऐसा ही तो है वह !

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  4. प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"
    गहन भाव समेटे यह पंक्तियां ...बहुत ही बढि़या अभिव्‍यक्ति ।

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  5. प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"

    ओस का छन्न से वाष्प बन उड़ जाना और संध्या की लालिमा को उस पर बिखेर देना ..अद्भुत प्रतीक से गहन बात कहती हुयी खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  6. वाह! गजब की प्रस्तुति है.

    मन तन्मय होगया पढकर.

    आभार.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

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  7. मैं सोचती हूँ उसके नाम
    हवाओं में लोरियां भर दूँ
    पर वह .........
    कौन है वह ????
    और
    और मेरे सर पर हाथ रख गया .............
    रश्मिजी अद्भुत और गहन सोच ... आभार

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  8. सबसे अलग सा ही लिखती हैं आप..

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  9. अजब गजब माया प्रकृति की.
    बहुत सुन्दर.

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  10. शाम को जब पंछी
    अपनी नीड़ में लौट रहे होते हैं
    मैं गोधूलि की लालिमा हथेलियों में भर
    उसके आगे बिछा देती हूँ
    पर वह मौन अरण्य में डूब जाता है !

    बहुत ही अलग हट कर है आपकी यह कविता। हमेशा की तरह गहन भाव अपने मे समाहित किये हुए।
    ----------
    कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. प्रकृति के नज़ारे और उसकी लीला अद्भुत ही होती है।

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  12. Akhiri panktiyan laajavab rahii ..


    "क्या , कौन , क्यूँ ...
    बुद्धि मत लगाओ ...
    प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !

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  13. प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    प्रकृति को कौन समझ पाया है
    सुन्दर प्राकृतिक बिम्बों का समावेश

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  14. सच है..पात्रता देख कर ही शक्तिपात करती है .बढ़िया रचना...

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  15. "क्या , कौन , क्यूँ ...
    बुद्धि मत लगाओ ...
    प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"

    ...बहुत गहन भाव..सच में इस का रहस्य कौन समझ पाया है..लाज़वाब अभिव्यक्ति..आभार

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  16. सोचती हूँ उसके नाम
    हवाओं में लोरियां भर दूँ

    ....प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"

    सच कहा दी....सुन्दर चिंतन...
    सादर बधाई...

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  17. गूढ़ भावार्थ...

    ''प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"

    बधाई.

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  18. क्या , कौन , क्यूँ .
    बुद्धि मत लगाओ ...
    प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"
    निराकार ब्रहम के दर्शन की चर्चा आपने कितनी आसानी की हैं

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  19. प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !

    बहुत सटीक चिंतन !!

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  20. मैं गोधूलि की लालिमा हथेलियों में भर
    उसके आगे बिछा देती हूँ
    पर वह मौन अरण्य में डूब जाता है !
    मैं सोचती हूँ उसके नाम
    हवाओं में लोरियां भर दूँ...

    दिल को छू गई आभार...

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  21. Sure different..
    I have to spend more and more time to understand the real meanings of some poems written by you.. This is one of those poems.. Regards..

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  22. adbhut....bahut sundar likha hai...हवाओं में लोरियां भर दूँ

    wah kya khayal hai....

    Prakash
    www.poeticprakash.com

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  23. हाँ बिल्कुल उसी तरह उसने कहा -
    "क्या , कौन , क्यूँ ...
    बुद्धि मत लगाओ ...
    प्रकृति पात्रता ढूंढती है
    देती है
    उसे समझना और जानना क्या !"
    और मेरे सर पर हाथ रख गया .............सच और अदभुत.....

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  24. सोचती हूँ उसके नाम
    हवाओं में लोरियां भर दूँ ....बहुत ही सुन्दर !

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