जाने कब वह आया
पर जब से देखा जाना
सबसे अलग लगा ....
सुबह सुबह दबे पाँव दूबों पर अटकी ओस से
मैं अपनी हथेलियाँ भरती हूँ
फिर दबे पाँव उसके सिरहाने जाकर
उसके जलते चेहरे पर
ओस बिखरा देती हूँ ....
छन् ' से आवाज़ आती है
एक धुंआ उठता है
और वह मुस्कुराकर चल देता है !
शाम को जब पंछी
अपनी नीड़ में लौट रहे होते हैं
मैं गोधूलि की लालिमा हथेलियों में भर
उसके आगे बिछा देती हूँ
पर वह मौन अरण्य में डूब जाता है !
मैं सोचती हूँ उसके नाम
हवाओं में लोरियां भर दूँ
पर वह .........
कौन है वह ? क्या चाहता है !
क्या ढूंढता है ....
आखिर पूछ ही लिया - वह ऐसा क्यूँ है?
कंदराओं से ज्यूँ आवाज़ उभरे
ठीक उसी तरह
हाँ बिल्कुल उसी तरह उसने कहा -
"क्या , कौन , क्यूँ ...
बुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
और मेरे सर पर हाथ रख गया .............
क्या , कौन , क्यूँ ...
जवाब देंहटाएंबुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
सचमुच यह अबूझ पहेली हे...बहुत बहुत बधाई|
behad sundar, last ki lines boht achi lagi
जवाब देंहटाएंप्रकृति के खेल बड़े ही निराले हैं।
जवाब देंहटाएंबुद्धि मत लगाओ ...
जवाब देंहटाएंसचमुच ऐसा ही तो है वह !
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
जवाब देंहटाएंदेती है
उसे समझना और जानना क्या !"
गहन भाव समेटे यह पंक्तियां ...बहुत ही बढि़या अभिव्यक्ति ।
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
जवाब देंहटाएंदेती है
उसे समझना और जानना क्या !"
ओस का छन्न से वाष्प बन उड़ जाना और संध्या की लालिमा को उस पर बिखेर देना ..अद्भुत प्रतीक से गहन बात कहती हुयी खूबसूरत अभिव्यक्ति
वाह! गजब की प्रस्तुति है.
जवाब देंहटाएंमन तन्मय होगया पढकर.
आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
मैं सोचती हूँ उसके नाम
जवाब देंहटाएंहवाओं में लोरियां भर दूँ
पर वह .........
कौन है वह ????
और
और मेरे सर पर हाथ रख गया .............
रश्मिजी अद्भुत और गहन सोच ... आभार
अंतिम पंक्तियाँ मुग्ध कर देती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने बधाई
जवाब देंहटाएंसबसे अलग सा ही लिखती हैं आप..
जवाब देंहटाएंअजब गजब माया प्रकृति की.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
शाम को जब पंछी
जवाब देंहटाएंअपनी नीड़ में लौट रहे होते हैं
मैं गोधूलि की लालिमा हथेलियों में भर
उसके आगे बिछा देती हूँ
पर वह मौन अरण्य में डूब जाता है !
बहुत ही अलग हट कर है आपकी यह कविता। हमेशा की तरह गहन भाव अपने मे समाहित किये हुए।
----------
कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
khoobsurat abhivyakti jise sirf mahsus kiya ja sakta hai....aabhar
जवाब देंहटाएंप्रकृति के नज़ारे और उसकी लीला अद्भुत ही होती है।
जवाब देंहटाएंAkhiri panktiyan laajavab rahii ..
जवाब देंहटाएं"क्या , कौन , क्यूँ ...
बुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
जवाब देंहटाएंप्रकृति को कौन समझ पाया है
सुन्दर प्राकृतिक बिम्बों का समावेश
सच है..पात्रता देख कर ही शक्तिपात करती है .बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएं"क्या , कौन , क्यूँ ...
जवाब देंहटाएंबुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
...बहुत गहन भाव..सच में इस का रहस्य कौन समझ पाया है..लाज़वाब अभिव्यक्ति..आभार
सोचती हूँ उसके नाम
जवाब देंहटाएंहवाओं में लोरियां भर दूँ
....प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
सच कहा दी....सुन्दर चिंतन...
सादर बधाई...
Bahut sundar prawah
जवाब देंहटाएंगूढ़ भावार्थ...
जवाब देंहटाएं''प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
बधाई.
अद्भुत प्रतीक ......
जवाब देंहटाएंक्या , कौन , क्यूँ .
जवाब देंहटाएंबुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
निराकार ब्रहम के दर्शन की चर्चा आपने कितनी आसानी की हैं
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
जवाब देंहटाएंदेती है
उसे समझना और जानना क्या !
बहुत सटीक चिंतन !!
मैं गोधूलि की लालिमा हथेलियों में भर
जवाब देंहटाएंउसके आगे बिछा देती हूँ
पर वह मौन अरण्य में डूब जाता है !
मैं सोचती हूँ उसके नाम
हवाओं में लोरियां भर दूँ...
दिल को छू गई आभार...
Sure different..
जवाब देंहटाएंI have to spend more and more time to understand the real meanings of some poems written by you.. This is one of those poems.. Regards..
adbhut....bahut sundar likha hai...हवाओं में लोरियां भर दूँ
जवाब देंहटाएंwah kya khayal hai....
Prakash
www.poeticprakash.com
हाँ बिल्कुल उसी तरह उसने कहा -
जवाब देंहटाएं"क्या , कौन , क्यूँ ...
बुद्धि मत लगाओ ...
प्रकृति पात्रता ढूंढती है
देती है
उसे समझना और जानना क्या !"
और मेरे सर पर हाथ रख गया .............सच और अदभुत.....
सोचती हूँ उसके नाम
जवाब देंहटाएंहवाओं में लोरियां भर दूँ ....बहुत ही सुन्दर !