अजब है ये दुनिया !!! आप किसी को भी आदर्श नहीं बना सकते ... यकीनन मैं भी दुनिया में हूँ , पर एक बात स्पष्ट कर दूँ - जब आदर्श हो या प्रेम हो तो उसके गुण भी अपने, अवगुण भी अपने , अन्यथा आप हम ज़िन्दगी को प्याज के छिलकों की तरह इस्तेमाल करते रह जायेंगे . हम सब जानते हैं कि कोई भी परफेक्ट नहीं होता , पर यदि वह परफेक्ट किसी को मिल जाता है तो आप हम अपना सारा काम छोड़कर उस प्राप्य्कर्ता को यह सिद्ध करने में जुट जाते हैं कि वह पहले कैसे परफेक्ट नहीं था !
किसी से आपकी ना बनती हो तो बात समझ में आती है , पर जिनसे आपके कोई ताल्लुकात नहीं .... उनके अनजाने पन्नों को क्यूँ खोलना ! और यदि खोला तो मुहर कैसे मार दी बिना सोचे समझे ? थोड़ी अक्ल लगाईं होती , नज़रें घुमाई होती ... नहीं , 'कौआ कान ले गया ' सुनते दौड़ पड़े और फिर बड़ी शिद्दत से लिख दिया - ' हम बेखुदी में तुम्हें सोचते रहे ... कौआ कान ले गया !'
आप सोच रहे होंगे ये असली माज़रा क्या है .... मैं भी सोच रही हूँ कि मैं खामखाह इधर उधर क्यूँ कर रही हूँ !
एडवर्ड का नाम आपने भी सुना होगा , जिसने सिम्पसन के प्यार में इंग्लैण्ड का राज्य त्याग दिया ! बहुत छोटी थी , जब माँ ने यह कहानी सुनाई और तब से एक अनजाना चेहरा मेरे पूरे वजूद में चलता रहा . रोमांच होता रहा सोचकर , सिम्पसन ने मना किया लेकिन एडवर्ड ने सिम्पसन के आगे राज्य को तुच्छ बना दिया . ........................................ प्यार सही मायनों में यही है - आत्मा यहीं , परमात्मा यहीं , नैसर्गिक संगीत यहीं .
मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं कि एडवर्ड और सिम्पसन को शब्दों में ढाल सके ! नाम लें या प्यार कहें - यह एक एहसास है सूर्योदय की तरह , चिड़ियों के घोंसले से झाँकने की तरह , मंद हवाओं की तरह , सघन मेघों की तरह , रिमझिम फुहारों की तरह, मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह , गोधूलि की तरह, सूर्यास्त , रात , समुद्र की लहरें , ओस , पपीहे की पुकार , शनैः शनैः फैलती ख़ामोशी में एक मीठी खिलखिलाहट , प्रतीक्षित आँखें , बोलती आँखें , तेज धड्कनें , मौन आमंत्रण , मौन स्वीकृति , ............ जिस उपमा में महसूस करें - प्यार है तो बस है .
फिर भी एक कोशिश की चाह ने कहा - कुछ भी कहो, पर कहो , क्योंकि तुम्हारे अन्दर एक एडवर्ड और सिम्पसन अंगड़ाई लेते रहे हैं और प्यार ही प्यार को कोई रंग दे सकता है सातों रंगों के मेल से ..... मुझे इस सच से इन्कार नहीं कि इस आठवें रंग ने ही मुझे चलाया है ... जब प्यार की बातें होती हैं वहाँ मेरा साया होता ही है .
लिखने को तत्पर हुई तो सोचा - कुछ और पढूं .... तो पढ़ा , एडवर्ड को प्यार करने की आदत थी , वे एक दिलफेंक इन्सान थे .... सिम्पसन से पहले वे शादीशुदा रईस महिला और दो बच्चों की मां फ्रिडा डडले वार्ड के प्रेम में पागल थे और उन्हें पाना चाहते थे !.... पढकर लगा कि जब सोच संकीर्ण हो तो वहाँ बातों का रूप कितना हास्यास्पद हो जाता है .
कम उम्र हो या अनुभवी उम्र ही सही - प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है . एडवर्ड का राज्य त्याग यदि सिम्पसन के लिए तठस्थ रहा तो फ्रिड़ा डडले वार्ड के लिए क्यूँ नहीं हुआ ? - यह प्रश्न ही उत्तर है !
पूरी ज़िन्दगी सिम्पसन के साथ प्यार में निभानेवाले एडवर्ड से एक बार उनकी कहानी पर फिल्म बनाने की अनुमति लेने लोग गए तो एडवर्ड ने इन्कार कर दिया . उनका कहना था - कि जिस प्यार को उनदोनों ने जिया है , उसे वे कैमरे में नहीं कैद कर सकते और कुछ यूँ हीं देखना उन्हें गवारा नहीं होगा ... तो बेहतर है उनके नहीं रहने पर ही यह कोशिश हो .
प्यार को सम्मान नहीं दे सकते तो चुप रहो .... पर सिर्फ निरादर के ख्याल से (?) किसी का नाम न उछाला जाए तो बेहतर है . एडवर्ड और वार्ड के अधकचरे ज्ञान पर कुछ भी कहने से पहले यह सोचना होगा कि जिस एडवर्ड ने राज्य त्याग दिया ( जो आम बात नहीं ) उसने वार्ड से किनारा क्यूँ कर लिया . आलोचना सोच समझकर हो तो सही है ....
मुझे तो आज भी इस कल्पना मात्र से रोमांच होता है कि उस समय इंग्लैण्ड में कैसी लहर उठी होगी ... सिम्पसन की गति ....... ओह ! आसान नहीं एडवर्ड होना ... यही पंक्तियाँ सही लगती हैं -
ये इश्क नहीं आसान इतना ही समझ लीजिए, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..