06 दिसंबर, 2011

अगर मगर



" जब वी मेट " में
जब नायिका कहती है
'फोटो फाड़ो और फ्लश करो'
तो दर्शक मुस्कुराते हैं ...

फिल्मों में जो होता है
वह रियल लाइफ में कहीं कहीं होता है
यहाँ तो लोग खुद से डरते हैं
सोचते हैं
इससे मेरे व्यक्तित्व पर प्रश्न उठ खड़ा होगा
ये...वो... जाने कितने मंथन !
मंथन तो इस बात का होना चाहिए न
कि किसी ने अगर मुझे
चाय में पड़ी मक्खी की तरह फ़ेंक दिया
तो क्या इसे सहज घटना रहने दूँ ...

सही फैसला लेने से
व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
बल्कि वह उदाहरण बनता है !
हम खुद को
उदाहरण बनाने की बजाय
निरीह बना लेते हैं
और मानसिक अपाहिजता लिए
हर आगत को अपाहिज कर देते हैं !
विवशता तभी तक होती है
जब तक हम उसके नीचे दबे रहते हैं
सच तो यही है
कि कोई किसी के लिए
कहीं नहीं ठहरता
यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
....फिर क्या अगर मगर ???

39 टिप्‍पणियां:

  1. आप जहाँ से कविता उठती हैं वह विस्मित आकर देने वाला है... बढ़िया कविता...

    जवाब देंहटाएं
  2. यह बात हम जितनी जल्‍दी समझ लें, उतना अच्‍छा।

    जवाब देंहटाएं
  3. सच तो यही है कोई किसी के लिए नही,ठहरता,
    यहाँ तक की वक्त भी नही,......
    सुंदर प्रस्तुति,.....
    नए पोस्ट में इंतजार है

    जवाब देंहटाएं
  4. निश्चयात्मक निर्णय प्रक्रिया सदा ही सराही जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत मुश्किल होता है flush करना पर फिर भी आगे तो बढ़ना ही है न

    जवाब देंहटाएं
  6. हम खुद को
    उदाहरण बनाने की बजाय
    निरीह बना लेते हैं....

    वाह दी.... रचना का आरम्भ अपने में अद्भुत है....
    सुन्दर रचना...
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  7. सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !

    प्रेरणार्थक उनके लिए जो अनचाहे ही इसका शिकार हो जाते हैं...बहुत बहुत बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  8. सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !

    बहुत सही लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  9. बिलकुल सही कहा आपने कोई किसी के लिए नहीं ठहरता यहाँ तक की वक्त भी नहीं तो फिर क्या अगर क्या मगर,जैसे "ऊपर वालेने जब ज़िंदगी एक बार दी है तो दो बार क्या सोचना" एक सशक्त संवाद
    The dirty film से :-)

    जवाब देंहटाएं
  10. सामाजिक सोच को हमारे सामने रखती है ये कविता। गंभीर सोच के साथ आपकी स्पष्ट अभिव्यक्ति का मैं हमेशा से कायल हूं।
    बहुत सुंदर कविता

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सही लिखा है ...बहुत बहुत बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  12. सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है...

    जवाब देंहटाएं
  13. हम खुद को
    उदाहरण बनाने की बजाय
    निरीह बना लेते हैं
    और मानसिक अपाहिजता लिए
    हर आगत को अपाहिज कर देते हैं !

    सच में यही तो होता है..... बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  14. सभी वक्त के आगे झुकते रहे हैं...
    किसी के लिए वक्त झुकता नहीं है...
    बहुत तेज रफ़्तार है जिंदगी की...
    किसी के लिए कोई रुकता नहीं है...

    इस राह में कई मोड़ हैं कोई आयेगा कोई जायेगा...
    तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भुलाने की दुआ करो...

    नो अगर-मगर...

    जवाब देंहटाएं
  15. कि कोई किसी के लिए
    कहीं नहीं ठहरता
    यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
    ....फिर क्या अगर मगर ???

    सार्थक संदेश देती रचना

    जवाब देंहटाएं
  16. ज़िन्दगी औरों के लिए एक उदाहरण न भी बन पाय तो कमसे कम खुद के लिए अपने उदाहरण तो ज़रूर बन सकते. ज़िन्दगी को किसी के लिए रुकने भी न दें, सच है वक़्त हो या कोई अपना कभी किसी की राह नहीं देखता. जीवन जीने का नाम है. संदेशप्रद रचना, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  17. वक़्त कुछ करने का है,
    अगर-मगर का नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  18. सच तो यही है
    कि कोई किसी के लिए
    कहीं नहीं ठहरता ...

    बिल्‍कुल सही कहा आपने ..आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  19. सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !
    bahut achchi baat bolin aap......

    जवाब देंहटाएं
  20. दी ,मै तो इस अगर मगर के एकदम विरुद्ध हूँ .... बहुत अच्छा लिखा है .... सादर !

    जवाब देंहटाएं
  21. सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !

    सीख देती हुई कविता।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  22. सटीक अभिव्यक्ति…………ये हमारी ही मानसिक अपाहिजता है जिससे हम मुक्त होना नही चाहते।

    जवाब देंहटाएं
  23. सचमुच अगर मगर से जिंदगी नहीं रूकती इंसान वहीं ठहर जाता है... सुंदर कविता !

    जवाब देंहटाएं
  24. सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !

    ...बहुत सारगर्भित और उत्कृष्ट प्रस्तुति...आभार

    जवाब देंहटाएं
  25. सच तो यही है
    कि कोई किसी के लिए
    कहीं नहीं ठहरता
    यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
    ....फिर क्या अगर मगर ???


    वक्त और अवसर के सर में बाल नहीं होते..! हमें पहले से तैयार होना पड़ता है ...वरना पीछे से तो पकड़ पाना असंभव है..!

    आपकी हर रचना मुझे खामोश कर देती है
    फिर क्या टिपण्णी करूँ समझ नहीं आता..
    प्रेरणादायक रचना !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  26. सारगर्भित बेहतरीन प्रस्तुति....

    मेरे नए पोस्ट में आपका इंतजार है,...

    जवाब देंहटाएं
  27. very well said;;
    life is not any movie; but we can learn many things from it.

    जवाब देंहटाएं
  28. न अगर न मगर,

    बस चला चल सच्ची डगर ।

    जवाब देंहटाएं
  29. कोई किसी के लिए
    कहीं नहीं ठहरता
    यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
    ....फिर क्या अगर मगर ??सच्चाई का एक कढवा घूंट ....!

    जवाब देंहटाएं
  30. बहुत सही कहा आपने....

    प्रेरक रचना...

    जवाब देंहटाएं
  31. सच तो यही है
    कि कोई किसी के लिए
    कहीं नहीं ठहरता
    यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
    ....फिर क्या अगर मगर ???
    ..शाश्वत तो यही है..
    सही विश्लेषण करती रचना हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  32. Rashmi ji...

    Agar-magar duvidha darshakar...
    Man ko sada hai bharmati...
    Spasht soch, nirbhik hon nirnay...
    Duvidha saari mit jaati....

    Behad sanvedansheel avam vicharottejak pravaah....hamesha ki tarah...

    Shubhkamnaon sahit...

    Deepak Shukla..

    जवाब देंहटाएं
  33. आदरणीया
    सही फैसला लेने से
    व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
    बल्कि वह उदाहरण बनता है !
    हम खुद को
    उदाहरण बनाने की बजाय
    निरीह बना लेते हैं
    और मानसिक अपाहिजता लिए
    हर आगत को अपाहिज कर देते हैं !
    ज़िन्दगी चित्रपट है भी तो नहीं......आपकी यह पंक्तियाँ सोचने पर विवश करती हैं

    जवाब देंहटाएं
  34. सार्थक व सटीक लेखन के लिए बधाई ।

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...