आज मैं जो हूँ
जिस भी मुकाम पर हूँ
उसमें जितना असर दुआओं का था
मौसम , आँखों के सपने का था
उतना ही जबरदस्त असर हादसों का था !
हादसे ना हों
तो उबड़ खाबड़ रास्तों को
सुगम बनाने का जज्बा नहीं उठता
और जज्बा जब होता है
तो धैर्य बढ़ता जाता है
पड़ाव मिलते जाते हैं !
हादसों ने बताया
कि विश्वास को अविश्वास में बदलने की
गहरी निजी साजिश होती है
सब्ज़ बाग़ दिखाकर
जलील किया जाता है
और सबसे बड़ी बात -
कि जो अंजाम देते हैं
वे बहुत मासूम होते हैं
उनकी सोची समझी चाल
बेचारगी बन समूह को अपनी तरफ ले जाती है
और समूह से कई चेहरे
अगले अंजाम का गुर सीखते हैं ...
हादसों ने बताया
कि समय पर अपनों की पहचान कितनी दुखदाई होती है
जिनके लिए पथरीले रास्तों को समतल बनाया
मंजिल पाते ही उनके अंदाज बदल गए !
तो मुझे होना पड़ा - मैं जो हूँ
जिन्होंने माथे पर हाथ रखा
उनकी दुआओं की हिम्मत ने
मुझे अकेले चलना सिखाया
बन्द दरवाजों की तरफ मुड़कर नहीं देखना
दरवाज़ा बन्द करनेवालों ने सिखाया
तूफानों में अडिग रहना
उनकी स्व नीति ने सिखाया ...
इतनी ईंटें बिछायीं
कि ठेस खाते खाते
अंधेरों में भी इंटों की पहचान मिल गई
और मैं उन्हें पार करने लगी
यही नहीं -
उन्हीं इंटों से मैंने एक घर बनवा लिया
अब सब मेरी जीत को मेरी चालाकी कहते हैं
........" आज मैं जो हूँ
जिस भी मुकाम पर हूँ
उसे चालाकी कहने से पहले
अपनी गिरेबान देख लो " - यह कहना भी आ गया ...
दुआओं के आगे सर झुकाना
हादसों की असलियत बताना
मुझे इन्होंने ही सिखाया है
भूल नहीं सकती !!!