लोग कहते हैं
जी हाँ लोग -
कुछ मेरे जैसे
कुछ आपके जैसे , कुछ उनसे ...
हाँ तो कहते हैं कि
सतह से देखोगे तो समझोगे नहीं ... "
अजीब बात है
सतह पर ही तो हम पैदा हुए हैं
खेलकर बड़े हुए हैं !
अपने को श्रेष्ठ बना
हमें ' सतही ' कहकर
जाने किसने इसके मायने बदल दिए !
मैं यानि मेरे जैसे लोग
सतह पर ही आए और सतह पर ही हैं
तो ख्याल ये बना - कि
सतह पर होना और वहाँ से देखना ही उपयुक्त है !
आकाश की उंचाई
सूरज का असीम तेज
चाँदनी का उतरना
ओस का टपकना ....
सबकुछ सतह से ही दिखता है .
आप असाधारण हैं
तो आप क्या चाहते हैं ?
आपको असाधारण मानने के लिए
हम सतह से ऊपर हो जाएँ
पाँव को हवा में टिका दें
गिर ही जायेंगे न !
आप ही सोचिये
आकाश , चाँद तक पहुंचकर
उनको जानने में हमने क्या किया
चाँद के सौन्दर्य से अलग
उसे पत्थर साबित कर दिया
कहानियों से मामा खो गए
बच्चे सतह की बात समझने से इन्कार करने लगे !
अब ... सब सर पे हाथ धरे बैठे हैं
और आजिजी से कह रहे हैं
'सतह पर दिमाग रखो '
................................
काश ! सतह से ऊपर उठने की बात ही न हुई होती !
vaah ek anokhi addbhut soch jitni khoj karte jaate hain prakartik sundarta par prashn chih lag jata hai.sundar prastuti.
जवाब देंहटाएंज़मीं पर पांव जमाए रखना भी कोई कम बात नहीं...
जवाब देंहटाएं"सतही" सच मूल सतह को छोड़ कर इस शब्द को कुछ ज्यादा ही सतही बना दिया सबने ........ सादर !
जवाब देंहटाएंसतह ही जीवन का आधार हैं .....और उसे जीना एक कला ....और इस कला में हर कोई माहिर नहीं हो सकता ......दीदी आपकी इस बात से कि
जवाब देंहटाएं''चाँद के सौन्दर्य से अलग
उसे पत्थर साबित कर दिया
कहानियों से मामा खो गए ''............एक बात और याद आती हैं ...बचपन में हम चाँद को ''मामा'' कहते हैं और जवानी में उसी चाँद को ''महबूबा'' का नाम क्यूँ दे दिया जाता हैं ?
आप असाधारण हैं
जवाब देंहटाएंतो आप क्या चाहते हैं ?
आपको असाधारण मानने के लिए
हम सतह से ऊपर हो जाएँ
पाँव को हवा में टिका दें
गिर ही जायेंगे न !
वाह क्या बात है...एकदम से सहमत होने जैसा...
सतह को ही मूल बना दिया आपने, साहित्यिक तर्क श्रंखला
जवाब देंहटाएंआकाश की उंचाई
जवाब देंहटाएंसूरज का असीम तेज
चाँदनी का उतरना
ओस का टपकना ....
सबकुछ सतह से ही दिखता है
बहुत गहरी बात!
सब के लिये सतह पर बने रहना भी मुश्किल है. सतह पर रहना उनके लिये नाकामयाबी से कम नहीं.
जवाब देंहटाएंसही सन्देश देती सुंदर प्रस्तुति.
सतह पर रहकर ही सतह से ऊपर उठता है आदमी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
वाह!!!!!बहुत सुंदर सन्देश देती,अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंनई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
...फुहार....: कितने हसीन है आप.....
बहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास, शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंकहानियों से मामा खो गए
जवाब देंहटाएंबच्चे सतह की बात समझने से इन्कार करने लगे !
अब ... सब सर पे हाथ धरे बैठे हैं
और आजिजी से कह रहे हैं
'सतह पर दिमाग रखो '
एक माँ अपने बच्चे को बहलाने के लिए चाँद को मामा बुलाती है ,
जवानी में एक माँ नागवार गुजरती है तो दो मा+मा....... !!
इसलिए...... !!!!
जिनके पैर सतह पर टिके होते है ,गिरते नही ,
जो लोग हमें सतही समझते है ,उनके पैरो तले जमीं नहीं होती.... !!
सतह जिसने अपने मूल अर्थ को खो दिया.... हर चीज का वास्तविक अर्थ खोजने की होड़ में हम सच में सतह से बहुत दूर हो गए है हम....... ये रचना यार्थार्थ की स्थिति को बखूबी प्रस्तुत करती है.....
जवाब देंहटाएंसतह के नीचे भी बहुत कुछ हो सकता है...beauty is skin deep...सतह से सागर की गहराई को नहीं नापा जा सकता...
जवाब देंहटाएंगहरी बात! सादर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रश्मि दी....
जवाब देंहटाएंआपके मन का हल्का सा आक्रोश झलका इस कविता में...
शायद स्वाभाविक हैं..
बहुत अच्छी रचना.
स्नेह और आदर सहित.
-विद्या
सही कहा आपने सतह से ऊपर उठे तो गिर जायेंगे... जरुरी है सतही बनकर रहना... सादर
जवाब देंहटाएंसतह पर पैर रख आसमा को देखे तो सब कुछ ठीक है वरना भावो का कही गुम हो जाना संभव है ,ऐसे में चाँद- मामा से पत्थर तो बन ही जायेंगे .आपकी यह रचना वर्तमान की स्थिति भी कहती है और एक सार्थक सन्देश भी देती है ....
जवाब देंहटाएंसतह से जुड़ाव के भी अपने मायने हैं...... गहरी बात लिए रचना
जवाब देंहटाएंbahut acchhi prastuti.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा आपने ....
जवाब देंहटाएंसतह 'सतही' तो नहीं ...
जवाब देंहटाएंसतह का विवेचन करती बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
आकाश की उंचाई
जवाब देंहटाएंसूरज का असीम तेज
चाँदनी का उतरना
ओस का टपकना ....
सबकुछ सतह से ही दिखता है .
sateek ...satah par gahari jaden ....
bahut sunder rachna ....
Atal ji yaad aa gaye..
जवाब देंहटाएंMere Prabhu Mujhe Itni oonchaai kabhi mat dena....
आपको पढ़कर राहत सी होती है और आत्मावलोकन भी हो जाता है . हार्दिक आभार..
जवाब देंहटाएंआकाश की उंचाई
जवाब देंहटाएंसूरज का असीम तेज
चाँदनी का उतरना
ओस का टपकना ....
सबकुछ सतह से ही दिखता है .
लेखन का जादू..
यर्थाथ का चित्रण। सादर।
हकीकत से रूबरू कराती रचना.सही भी है ..बात तो तब ही हैं..ऊंचे भले ही उठे पर पाँव सतह पर ही टिके रहे .
जवाब देंहटाएंकहानियों से मामा खो गए
जवाब देंहटाएंबच्चे सतह की बात समझने से इन्कार करने लगे !
अब ... सब सर पे हाथ धरे बैठे हैं
और आजिजी से कह रहे हैं
'सतह पर दिमाग रखो '
satah ko chhodana parivartan ka amantran hai....aur parivartan prti kshan shaswt hai.....filhal kalpana ki sanjeedgi se bhari rachana ....bahut hi sundar hai.
गहरी सोच लिए सार्थक सन्देश देती सुंदर प्रस्तुति रश्मि जी..
जवाब देंहटाएं:) सही बात है.
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंसतह पर होना और वहाँ होने का सुख भोगना, आनंद उठाना और प्रकृति का अवलोकन करना बड़ी अच्छी बात है, बहुत अलौकिक अनुभव है.. लेकिन शायर का कहना है कि
बाहर से देखते हैं तो समझेंगे आप क्या,
कितने ग़मों की भीड़ है इस आदमी के साथ!
और सतह से उठने पर सतह पे पैर टिके होना ज़रूरी है और सतह के अंदर, इंसानी सतह के अंदर जाकर ही इंसानी फितरत का पता चलता है!!
रश्मि दी, बहुत अच्छी कविता है यह!!
अपने को श्रेष्ठ बना
जवाब देंहटाएंहमें ' सतही ' कहकर
जाने किसने इसके मायने बदल दिए !
waah..in panktiyon men aapne kuch naa kahte hue bhi bahut kuch kah diya...aapki rachnayen srijan ko prerit kartin hain..bahut bahut abhaar
.शब्दों का संस्कार समझाती अच्छी रचना .कुछ लोग हवा में उड्तें हैं ,आसमान पे थूकतें हैं ,पाँव इनके सतह से ऊपर ही रहतें हैं ,ज़मीं पे नहीं रहते ये लोग .
जवाब देंहटाएंvichaarniye rachna.
जवाब देंहटाएंगहरी सोच को व्यक्त करती अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबढिया सीख।
बच्चे सतह की बात समझने से इन्कार करने लगे !
जवाब देंहटाएंअब ... सब सर पे हाथ धरे बैठे हैं
और आजिजी से कह रहे हैं
'सतह पर दिमाग रखो '
................................
काश ! सतह से ऊपर उठने की बात ही न हुई होती !
bahut hi gahre bhav
bahut sunder
rachana
काश ! सतह से ऊपर उठने की बात ही न हुई होती !
जवाब देंहटाएंअक्षरश: सही कहा है आपने इस अभिव्यक्ति में ..सार्थक संदेश लिए उत्कृष्ट रचना ..आभार ।
अजीब बात है
जवाब देंहटाएंसतह पर ही तो हम पैदा हुए हैं
खेलकर बड़े हुए हैं !
अपने को श्रेष्ठ बना
हमें ' सतही ' कहकर
जाने किसने इसके मायने बदल दिए !
हैं कुछ लोग दीदी जो अध्यात्म और ज्ञान के ठेकेदार हैं ...जिनकी नज़र में सारी दुनिया ही अधम सोंच से ग्रसित है !