(आस पास कई लोग ऐसे भी मिल जाते हैं - )
तब के थे
न तुम आज
आज के हो
तुम वह राजा भी नहीं हो
जिसके सिर पर सिंग था
तुम तो बिना सिंग के
सिंग होने की बात करते हो
और सोचते हो -
कोई तुम्हारे सिंग की चर्चा कर रहा है ...
:)
दरअसल तुम एक पागल हो
जो कभी कपड़े में होता है
तो कभी नंगा ...
ऐसे में तुम किसी दिन नंगे से परहेज रखते हो
किसी दिन कपड़े पहने लोगों से ...
:)
तुम्हारी मानसिकता दयनीय तो बिल्कुल नहीं
खतरनाक से भी अधिक हास्यास्पद है
क्योंकि तुम कभी धूनी रमाते हो
कभी नशे में धुत्त रोते हो
कभी ईंट पत्थर के साथ सम्राट हो जाते हो !
:)
बचपन और पौधा एक सा होता है
समय समय पर काटछांट ना हो
तो गुलाब गुलाब होकर भी अपनी छवि खो देता है
और इन्सान अपनी ज़ुबान !
तुमने भी ज़ुबान खो दी है
कहाँ कब किससे क्या कहना चाहिए
तुमने सीखा नहीं
पर अपने आगे सबको झुकाना चाहते हो !
तुम दया के पात्र बिल्कुल नहीं
तुम वह पात्र हो
जिसमें अमृत भी अपनी पहचान खोने लगता है
इस लिहाज से
तुमसे डर लगता है !
अपनी पहचान खोना
किसी को गवारा नहीं होता
और बेवजह एक पागल की सनक में
कत्तई नहीं ! :)
सही कहा है ... आस पास भांति- भांति के लोग मिलते हैं ... दूसरों को नीचा दिखाने के चक्कर में खुद कितना नीचे गिर जाते हैं उनको खुद ही नहीं पता चलता । अपनी पहचान गंवाना कत्तयी गवारा नहीं ...
जवाब देंहटाएंइंसानी फ़ितरत की अच्छी पड़ताल की है आपने इस काव्य के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति !..
जवाब देंहटाएंतीखे तेवर वाली कविता।
जवाब देंहटाएंtum chaahte jo tumhein pasand
जवाब देंहटाएंvah hee ho sab ko pasand
nahee to sab dushman
galtee tumhaaree nahee tumhaaree nasl kee hai
tum insaan to ho nahee sakte
jaanvar bhee nahee
usmein to nanhe pakshee aur nirih khargosh bhee hote
mujhe pooraa yakeen hai
tum insaan ke roop mein haiwaan ho
kewal haivaan ho
बहुत सार्थक बात कही ..... सच है क्यों खोई जाये अपनी पहचान
जवाब देंहटाएंइंसान क्या ऐसा ही होता है...???
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतिकरण।
बहुत गहरी पडताल है एक विक्षिप्त व्यक्ति के मानसिक दिवालिएपन की.. दरसल ऐसे लोग तो कहीं चर्चा के योग्य भी नहीं होते!!
जवाब देंहटाएंपहचानना और जानना जरूरी है अपने आसपास को।
जवाब देंहटाएंहँसते हुए :) बेहद गंभीर बात कर गयी कविता!
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात कह डाली है.लोग दूसरों के बारे में बोलते हुए ये तनिक भी नहीं सोचते कि उनके बारे लोग क्या सोच रहे हैं.और ज्यादातर दूसरों के खोदे गड्ढे में खुद ही गिर जाते हैं.
जवाब देंहटाएंबड़ी पागलपन लिए हुए कविता है :) पर सच ही तो है !!!!
जवाब देंहटाएंअपनी पहचान खोना.......... कत्तई नहीं...... संभव ही नहीं........ !!
जवाब देंहटाएंइस दुनिया के भांति-भांति इंसानों के स्वभाव का सही चित्रण.... :):)
विद्रुप सत्य को खूबसूरत लिबास में प्रस्तुत किया है...लेखन की अद्भुत कला|
जवाब देंहटाएंहां-हां-हां....................मौन -मौन सिंग को फॉरवर्ड कर रहा हूँ , फिट बैठता है उसपर :)
जवाब देंहटाएंक्या कीजियेगा, सब झेलना ही पड़ता है...
जवाब देंहटाएंतुमने भी ज़ुबान खो दी है
जवाब देंहटाएंकहाँ कब किससे क्या कहना चाहिए
तुमने सीखा नहीं
पर अपने आगे सबको झुकाना चाहते हो !
नहीं तुम्हारे आगे कोई नहीं झुक सकता कतई नहीं...गहन भाव... आभार
बचपन और पौधा एक सा होता है
जवाब देंहटाएंसमय समय पर काटछांट तो होनी ही चाहिए ....
जो आप कर रही हैं !!!
शुभकामनाएँ!
" रहिमन इस संसार में भांति भांति के लोग "
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर पड़ताल कर डाली. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबधाई.
सही विश्लेषण किया है।
जवाब देंहटाएंकल 13/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बचपन और पौधा एक सा होता है
जवाब देंहटाएंसमय समय पर काटछांट तो होनी ही चाहिए ...बिल्कुल सही कहा रश्मि जी..अच्छा विश्लेशण है....अभिव्यंजना में आप को न देख कर थोड़ी चिन्ता होगई...
बहुत तीखा प्रहार ...सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबचपन और पौधा एक सा होता है
जवाब देंहटाएंसमय समय पर काटछांट ना हो
तो गुलाब गुलाब होकर भी अपनी छवि खो देता है ekdam sahi baat .......
विचारोत्प्रेरक सार्थक रचना दी...
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत सुन्दर लाजबाब प्रस्तुतीकरण|
जवाब देंहटाएंऐसे पागलपन को झेलना मुश्किल है...पर क्या करें इस नवधनाढ्य संस्कृति में ऐसे सनकियों की भरमार है...जो खुद को आज का सम्राट समझते हैं...
जवाब देंहटाएंआस पास ऐसे "भी" नहीं...ऐसे "ही" लोग है...
जवाब देंहटाएंज़्यादातर...
बहुत बढ़िया रचना दी...
सादर.
समय समय पर काटछांट ना हो
जवाब देंहटाएंतो गुलाब गुलाब होकर भी अपनी छवि खो देता है
और इन्सान अपनी ज़ुबान !
सच कहा आपने ...सीमाओं का अपना महत्व है वर्ना पागलपन बढ़ने में देर नहीं लगती
तुम वह पात्र हो
जवाब देंहटाएंजिसमें अमृत भी अपनी पहचान खोने लगता है
इस लिहाज से
तुमसे डर लगता है !
अपनी पहचान खोना
किसी को गवारा नहीं होता
और बेवजह एक पागल की सनक में
कत्तई नहीं ! :)
बहुत ही सशक्त रचना ! इसमें संदेह नहीं वर्तमान में हम ऐसे ही लोगों से घिरे हुए हैं और अपना अस्तित्व अपनी पहचान बनाये रखने के संघर्ष में जुटे हुए हैं ! शानदार रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
बार बार दिन ये आये...बार बार दिल ये गाये...
जवाब देंहटाएंतुम जियो हज़ारो साल...है ये मेरी आरज़ू...
:-)
मुस्कान बिखराती...प्यार लुटाती...आदरणीय रश्मि दी-
आपको जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएँ...
अपनी पहचान खोना
जवाब देंहटाएंकिसी को गवारा नहीं होता
और बेवजह एक पागल की सनक में
कत्तई नहीं ! :)
ऐसे भी लोंग होते ही हमारे पास ...
और सचमुच डर नहीं , शायद नफरत होती है उनसे या फिर उपेक्षा कि ऐसे लोगों के लिए क्यों अपनी धडकनें जाया करें !
तुम दया के पात्र बिल्कुल नहीं
जवाब देंहटाएंतुम वह पात्र हो
जिसमें अमृत भी अपनी पहचान खोने लगता है
teekha prahar .....bahut hi sundar
बचपन और पौधा एक सा होता है
जवाब देंहटाएंसमय समय पर काटछांट ना हो
तो गुलाब गुलाब होकर भी अपनी छवि खो देता है
अनुभवी आंखों से कोई बच नहीं सकता ...जिनके पास कलम का जादू हो .. शब्दों का खजाना हो ..सार्थकता लिए हुए सटीक अभिव्यक्ति ... ।
Wah, Behtareen:-)
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ आंटी।
जवाब देंहटाएंसादर
तुमने सीखा नहीं
जवाब देंहटाएंपर अपने आगे सबको झुकाना चाहते हो !
तुम दया के पात्र बिल्कुल नहीं
तुम वह पात्र हो
जिसमें अमृत भी अपनी पहचान खोने लगता है
इस लिहाज से
तुमसे डर लगता है !
..isani fitrat se sachet karti sarthak rachna ..
बहुत ही सार्थक एवं सशक्त रचना .....
जवाब देंहटाएंतुम वह पात्र हो
जवाब देंहटाएंजिसमें अमृत भी अपनी पहचान खोने लगता है
इस लिहाज से
तुमसे डर लगता है !
takra hi jate hain aise log kya karen didi !