07 जुलाई, 2012

चक्रव्यूह ....... !!!





चक्रव्यूह ....... !!!
कोई विशेष कला न जाने की थी
न आने की !
निष्ठा थी आन की
..... अभिमन्यु ने उसी निष्ठा का निर्वाह किया
और चक्रव्यूह में गया ...
पर निकलना निष्ठा नहीं थी
न निकलने का मार्ग अभिमन्यु ने ढूँढा !
चक्रव्यूह से परे
कटु सत्य का तांडव
अभिमन्यु की मृत्यु का कारण बना
जिसे इतिहास भी अपने पन्नों पर कह न सका !
पाँच ग्राम !
कृष्ण ने दूत बनकर यही तो माँगा था
और ' नहीं ' के एवज में कुरुक्षेत्र का मैदान सजा था !!!
सत्य जो भी हो -
राज्य , शकुनी की चाल
या द्रौपदी का अपमान ...
चक्रव्यूह बने जो खड़े थे
वे सब अभिमन्यु के मात्र सगे नहीं थे
एक आदर्श थे
पर -
जिन हाथों में कभी दुआओं के स्पर्श थे
वे हाथ मृत्यु के बाण साध रहे थे
जिनके चेहरे पर कभी वात्सल्य का सागर था
जिनके मुख से आशीर्वचन निकले थे
दादा , चाचा , गुरु ... -
सब के सब मृत्यु का आह्वान कर रहे थे
इससे बड़ा चक्रव्यूह तो कुछ भी नहीं था
झूठे पड़ते आशीष के आगे
अभिमन्यु की वीरगति
क्षणिक बने चक्रव्यूह से बाहर भी निश्चित थी !
जीवन में हम जब भी हारते हैं
तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
कभी कारण बने
कभी निर्णायक बने
इस चक्रव्यूह से निकलकर
सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना
.........
भीष्म ने जब तरकश से मृत्यु बाण निकाल लिया
........................................
फिर कोई कारण
उत्तर
परिणाम
बिल्कुल बेमानी है !

42 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    अक्षरश: सही कहा है आपने ... उत्‍कृष्‍ट लेखन ..आभार आपका

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  2. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    फिर कोई कारण
    उत्तर
    परिणाम
    बिल्कुल बेमानी है !
    बिल्कुल बेमानी है !

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  3. रश्मि प्रभा जी,

    बहुत दिन से इन पंक्तियों को पूरा करने का मन था, बहुत दिनों से अधूरी हैं ! ...

    काश कुछ देर और, नींद आती नहीं !
    पर तुम्ही सो गयीं दास्ताँ सुनते सुनते !

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  4. बिल्कुल सही
    बात भले ही महाभारत की हो, पर आज भी सच के बहुत करीब है।


    जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना

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  5. इसका तो अर्थ हुआ अपने ही चक्रव्यूह हैं...अर्थात हमारा होना ही क्योंकि जन्मते ही तो मिल जाते हैं अपने..जन्म ही चक्रव्यूह है जन्म है तो मरण तो होगा ही..

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  6. इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना

    कुरुक्षेत्र के मैदान में रचाया गया था चक्रव्यूह .... लेकिन हर इंसान अपनी ज़िंदगी के कुरुक्षेत्र में चकव्यूह से जूझता है ...पलायन कोई विकल्प नहीं ... प्रेरणा देती सुंदर रचना

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  7. अभिमन्यु ने चक्रव्यूह के अन्दर ही मर जाना बेहतर समझा...खुद के लिए अपनों के मृत्युबाण झेलना ज्यादा कष्टकारक था...इतिहास हमेशा कुछ सीख ही देता है, अपनी बुद्धि से हम उसपर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं|

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  8. haaaan di! har ke jindagi me chakraview hota hai... aur bahut kam hain jo bhed pate hain....
    behtareen!

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  9. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---

    बहुत ही सुन्दर रचना...हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  10. अभिमन्यु की हार में थी अपनों की चाल
    इसी तरह हम हारते अपनों का यही हाल
    अपनों का यही हाल,कभी न हारता रावण
    राम को मुश्किल होती, न होता विभीषण
    विभीषणों के कारण ही रचा गया चक्रव्यूह
    इसी लिए कुरुक्षेत्र में मरा गया अभिमन्यु,,,,,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  11. बेहतर है चक्रव्यूह में लड़ते हुए मर जाना।..वाह!

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  12. बहुत सुन्दर दी.....
    अभिभूत हूँ पढ़ कर.....

    सादर.

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  13. हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना

    बहुत मार्मिक, पुराने संदर्भों को यूं आज से जोडना ।

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  14. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    हकीकत है ये...
    सार्थक भाव लिए बहुत ही बेहतरीन रचना...

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  15. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने....बहुत सही कहा रश्मि जी.आज इंसान अपने ही बनाये चकव्यूह से जुझ रहा .सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति...आभार

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  16. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    अक्षरशः सत्य!

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  17. बहुत सही लिखा आपने ....स्वार्थ के आगे सारे रिश्ते नाते बेमानी हो जाते है और इसी स्वार्थ के कारण चक्रव्यूह कि घटना होती है ...

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  18. चक्रव्यूह से बाहर आना तो अभिमन्यु आज तक नहीं सीखा..

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  19. अभिमन्यु जैसी समझ और उत्सर्ग की वैसी ललक अब शायद ही देखने को मिले...बढ़िया अभिव्यक्ति !

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  20. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल रविवार को 08 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज हलचल में .... आपातकालीन हलचल .

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  21. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना
    bahut sundar ...

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  22. अभिमन्यु लड़ रहा है आज भी

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  23. सही है अपनों से कैसी जीत, कैसा हार जाना
    बेहतर है, उनकी खातिर जीना और मर जाना
    सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार

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  24. चक्रव्यूह के चक्रों से निकलने की कोशिश अभी भी जारी है.

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  25. पौराणिक कथा कुछ नए अर्थों के साथ बहुत लगी.

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  26. किसे पता कि यदि द्रौपदी न भी सोयी होती ... तब भी क्या अभिमन्यु चक्रव्यूह से निकल पाता ... और फिर इस बात पे ध्यान देना ज़रुरी है कि हमेशा जीवन के चक्रव्यूह से निकलने का राष्ट न ढूँढकर ... लढना भी ज़रूरी होता है ...
    अति उत्तम रचना ..

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  27. उफ़ ..वाकई जब भीष्म ने बाण निकाल ही लिया तो फिर कुछ भी हो क्या अयने रखता था..हम हारते हैं अपनी से ही.

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  28. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना.. बहुत ही सहजता से आपने जीवन के सत्य को रख दिया हम सभी के सामने.....

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  29. कभी-कभी तो लगता है यह जीवन एक चक्रव्यू है और हर एक शक्स अभिमन्यू,शायद इसका नाम ज़िंदगी है।

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  30. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने

    यही तो वास्तविकता है जीवन की ………जीवन का चक्रव्यूह भेदना ही तो आसान नही होता

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  31. आज के सच के करीब ...वक्त बदल गया ....चेहरे बदल गए ...पर शकुनी चालें ...नहीं बदली

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  32. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने

    Ji Han....Aisa Hi Hota hai....

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  33. chakrvyuh naa kuchakr hai,naa anarth hai ,chakrvyuh jeevan kaa saty hai,chakrvyuh se niklnaa vyarth hai

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  34. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना

    .सच चक्रव्यूह रचने वाले कोई बाहर से नहीं आते..जिनके बीच हम रहते हैं वही तो होते हैं ..
    बहुत अच्छी सीख भरी प्रस्तुति ..आभार

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  35. सूक्ष्म बिन्दुओं का सुन्दर चित्रण होता है आपकी रचनाओं में..

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  36. बिलकुल सही कहा ,आपने
    जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना

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  37. चक्रव्यूह में जाना परम आवश्यक है... और लौट कर न आना भी...
    विचारोत्प्रेरक रचना दी.....
    सादर.

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  38. जीवन में हम जब भी हारते हैं
    तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
    हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
    कभी कारण बने
    कभी निर्णायक बने
    इस चक्रव्यूह से निकलकर
    सिवाए डरावने सपनों के कुछ नहीं रह जाता
    तो बेहतर है - चक्रव्यूह में मर जाना ....ji

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...