अक्सर लोग सोचते हैं
दर्द को खुलकर नहीं कहना चाहिए
'सुनी इठ्लैहें लोग सब '
..... तो ?
दर्द के सत्य को
जो हर एक की ज़िन्दगी का ख़ास हिस्सा है
रोग बना लेना चाहिए ...
कभी दिल का दौरा
ब्रेन हैमरेज ....
और न जाने क्या क्या !
अरे मरना तो सबको है
जीने के लिए दर्द को बांटना सीखिए
दर्द का रिश्ता बनाइये
किसी की मुस्कान बनिए
किसी से मुस्कान लीजिये ....
कभी सोचा है ?
- हमसब सहजता से परे क्यूँ होते जा रहे हैं
खिन्न क्यूँ रहते हैं
एक दूसरे से मिलने से क्यूँ कतराते हैं .... !
क्योंकि हम भाग रहे हैं
और इस भागमभाग में कई परेशानियां हैं
जिसे हम अकेले अकेले सुलझाते हैं
और आत्मप्रशस्ति में सिर्फ अकेलेपन का दर्द लेते हैं
किसी के आगे अपने मन को रखना
शान के खिलाफ समझते हैं
या फिर डरते हैं मखौल से !!!
कभी सोचा है
कौन उड़ाएगा मखौल ?
कौन सम्पूर्ण है ?
किसके पैर न फटी बेवाई?
स्किन कलर के मोजे पहन लेने से कुछ नहीं होता
- ताड्नेवाले क़यामत की नज़र रखते हैं ...
रात-दिन की तरह दर्द हमारे संग रहता है ....
ख़ुशी तो सुबह की तरह है
ब्रह्ममुहूर्त की लालिमा
स्वप्न नीड़ से उचककर पंछियों का झांकना
चूल्हे से उठता धुंआ ...
दिन शुरू होने का ऐलान और ...सुबह ख़त्म !
इस सुबह के इंतज़ार में गुनगुनाती हवाओं का
माँ की लोरी का
प्यार भरे स्पर्श का
मीठी नींद का साथ होता है
तो फिर दर्द में साथ क्यूँ नहीं !
आंसू की एक बूंद का साथ देकर तो देखो
कितनी राहत मिलती है !