30 जुलाई, 2011

सुना है आँखों से निःसृत शंखनाद को



चाँद के गांव से
किरणों के पाजेब डाल
जब सूरज निकलता है
तब चिड़ियों के कलरव से
मैं मौन आरती करती हूँ
- हर जाग्रत दिशाओं की
जाग्रत भावनाओं की
जाग्रत क़दमों की .......
कभी सुना है आँखों से निःसृत शंखनाद को ?
......
अविचल पलकें
आँखों के मध्य से
जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
मद्धम न होने लगें
रात लोरी न गाने लगे .....
और पंछी अपने पंख न समेट लें !

40 टिप्‍पणियां:

  1. तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
    तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
    मद्धम न होने लगें
    रात लोरी न गाने लगे .....

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  2. खुबसूरत कविता और सुंदर उपमान..लाजवाब।

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    आपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  4. वाह!! जाग्रत नयनों का शंखनाद!!

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  5. अविचल पलकें
    आँखों के मध्य से
    जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
    तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
    वाह ...बहुत खूब आपने इन पंक्तियों के माध्‍यम से तो नि:शब्‍द कर दिया ...

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  6. di apke kavita ka shabd sanyojan ka jabab hi nahi hota.........:)
    ham to kuchh sochte hain, bas ek hi jagah attak kar rah jate hain........kitna bhi dimag lagao, us se aage chalta hi nahi!!

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  7. तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
    तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
    मद्धम न होने लगें
    रात लोरी न गाने लगे .....
    और पंछी अपने पंख न समेट लें

    behatareen abhivyakti...

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  8. aankhein aks jahan aur dil kaa
    par unkee bhee mazbooree
    khoobsoortee se bayaan huaa

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  9. चाँद के गाँव से .. वाह बहुत खूबसूरत कल्पना .. और मौन आरती उतारना .. मान को झंकृत करती रचना

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  10. अद्भुत पंक्तियाँ, काश ऐसा लिख पाता।

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  11. बहुत ही खुबसूरत और गहरे भावो से रची रचना....

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  12. तब चिड़ियों के कलरव से
    मैं मौन आरती करती हूँ ....

    वाह दी, अद्भुत संयोजन है....
    एक बहुत बेहतरीन रचना...
    सादर...

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  13. सुंदर बिंबो से सजी बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. अविचल पलकें
    आँखों के मध्य से
    जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
    तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
    तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
    मद्धम न होने लगें
    रात लोरी न गाने लगे .....
    और पंछी अपने पंख न समेट लें !

    ...laajawab!

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  15. आरती और दुआओं का ही असर है...हर तरफ...

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  16. बिम्बों का अद्भुत प्रयोग! कवयित्री अपना ही पुराना प्रतिमान तोड़ते नजर आती हैं। यह कविता लोक जीवन के यथार्थ-चित्रण के कारण महत्‍वपूर्ण है।

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  17. बेमिसाल रचना .... विचारणीय अभिव्यक्ति.....

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  18. अविचल पलकें
    आँखों के मध्य से
    जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
    तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
    तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
    मद्धम न होने लगें
    रात लोरी न गाने लगे .....
    और पंछी अपने पंख न समेट लें !


    अद्भुत भाव समेटे हुए है रचना ....!!
    बहुत सुंदर ...

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  19. चाँद के गांव से
    किरणों के पाजेब डाल
    जब सूरज निकलता है
    यह कार्य केवल कवि- ह्रदय ही कर सकता है , दूजा न कोई .. बहुत सुनार परिकल्पना जी ..बधाई /

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  20. खूबसूरत प्रतीकों और बिम्बों से सजी बेहतरीन कविता.

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  21. सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत-बहुत बधाई ||

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  22. पाजेब की झनकार दिल को छू गयी। आभार।

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  23. चाँद के गांव से
    किरणों के पाजेब डाल
    जब सूरज निकलता है
    तब चिड़ियों के कलरव से
    मैं मौन आरती करती हूँ.

    अद्भुत भाव लिए हुए अद्भुत रचना.

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  24. खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
    बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

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  25. बहुत ही खुबसूरत और गहरे भावो से रची रचना....

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  26. खुबसूरत कविता और सुंदर रचना...लाजवाब।

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  27. मैं मौन आरती करती हूँ


    इस मौन आरती की हम सब को जरुरत है

    मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया

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  28. किरणों की पाजेब....वाह!!पढ़ने के साथ ही चमक और मीठी सी खनक ...दिखाई सुनाई पड़ने लगी...

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  29. मैं मौन आरती करती हूँ
    - हर जाग्रत दिशाओं की
    जाग्रत भावनाओं की
    जाग्रत क़दमों की .......
    कभी सुना है आँखों से निःसृत शंखनाद को ?

    Waah ! Excellent !! Oh ! Sound so silence.. What an imagination...


    जब भी,
    कोई चिन्तक - समीक्षक ,
    विचारक, साधक या कवि,
    निहारता है उस असीम को,
    सरूप में छिपे - 'अरूप' को,
    जदत्व में छिपे - 'चैतन्य' को,
    सगुण में - 'नर्गुण-निराकार' को,
    उस गूढ़ रहस्य को, आवरण में.
    फिर हो जाता - 'निःशब्द', 'मौन'.
    एकदम से - 'मौन', 'महामौन'.

    अंतर्जगत की,
    थकाऊ, उबाऊ और दुर्गम,
    इस यात्रा मे, जा पहुचता है,
    वह अनंत से - "शून्य'' तक.
    यह नि:शब्दता ही, सत्य है,
    और मौन? मौन, इस सत्य की,
    सर्वाधिक सबल अभिव्याक्ति है.

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  30. लाजवाब, बहतरीन, शानदार, अदबुध, भावपूर्ण, गहन चिंतन युक्त खूबसूरत अभिवयक्ति.... :-) यह सारे शब्द भी आप की रचनाओं के बारे में कहे जाने के लिए प्र्याप्त नहीं है किन्तु फिर भी मैंने कह ही दिये और क्या कहूँ बस यूं ही लिखती रहियेगा हमेशा शुभकामनायें .....

    जवाब देंहटाएं

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