चाँद के गांव से
किरणों के पाजेब डाल
जब सूरज निकलता है
तब चिड़ियों के कलरव से
मैं मौन आरती करती हूँ
- हर जाग्रत दिशाओं की
जाग्रत भावनाओं की
जाग्रत क़दमों की .......
कभी सुना है आँखों से निःसृत शंखनाद को ?
......
अविचल पलकें
आँखों के मध्य से
जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
मद्धम न होने लगें
रात लोरी न गाने लगे .....
और पंछी अपने पंख न समेट लें !
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
जवाब देंहटाएंतब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
मद्धम न होने लगें
रात लोरी न गाने लगे .....
खुबसूरत कविता और सुंदर उपमान..लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
वाह!! जाग्रत नयनों का शंखनाद!!
जवाब देंहटाएंअविचल पलकें
जवाब देंहटाएंआँखों के मध्य से
जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
वाह ...बहुत खूब आपने इन पंक्तियों के माध्यम से तो नि:शब्द कर दिया ...
bahut hi khubsuratkavita....
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
bahut khoobsurat bhav...mausi ji...aabhar
जवाब देंहटाएंdi apke kavita ka shabd sanyojan ka jabab hi nahi hota.........:)
जवाब देंहटाएंham to kuchh sochte hain, bas ek hi jagah attak kar rah jate hain........kitna bhi dimag lagao, us se aage chalta hi nahi!!
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
जवाब देंहटाएंतब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
मद्धम न होने लगें
रात लोरी न गाने लगे .....
और पंछी अपने पंख न समेट लें
behatareen abhivyakti...
aankhein aks jahan aur dil kaa
जवाब देंहटाएंpar unkee bhee mazbooree
khoobsoortee se bayaan huaa
bahut uttam rachna seedhe gaon ke mandir se nikla hua shankhnaad.
जवाब देंहटाएंOutstanding presentation .
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंचाँद के गाँव से .. वाह बहुत खूबसूरत कल्पना .. और मौन आरती उतारना .. मान को झंकृत करती रचना
जवाब देंहटाएंखुबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंअद्भुत पंक्तियाँ, काश ऐसा लिख पाता।
जवाब देंहटाएंkirno ki paajeb pehan ke sooraj ka nikalna..... bahut hi khoobsoorat khayaal hai....
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत और गहरे भावो से रची रचना....
जवाब देंहटाएंतब चिड़ियों के कलरव से
जवाब देंहटाएंमैं मौन आरती करती हूँ ....
वाह दी, अद्भुत संयोजन है....
एक बहुत बेहतरीन रचना...
सादर...
सुंदर बिंबो से सजी बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
अविचल पलकें
जवाब देंहटाएंआँखों के मध्य से
जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
मद्धम न होने लगें
रात लोरी न गाने लगे .....
और पंछी अपने पंख न समेट लें !
...laajawab!
आरती और दुआओं का ही असर है...हर तरफ...
जवाब देंहटाएंबिम्बों का अद्भुत प्रयोग! कवयित्री अपना ही पुराना प्रतिमान तोड़ते नजर आती हैं। यह कविता लोक जीवन के यथार्थ-चित्रण के कारण महत्वपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंबेमिसाल रचना .... विचारणीय अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंअविचल पलकें
जवाब देंहटाएंआँखों के मध्य से
जब दुआओं का अभिषेक करती हैं
तब दसों दिशाएं गूंजती हैं
तब तक ...... जब तक किरणों के पाजेब के स्वर
मद्धम न होने लगें
रात लोरी न गाने लगे .....
और पंछी अपने पंख न समेट लें !
अद्भुत भाव समेटे हुए है रचना ....!!
बहुत सुंदर ...
चाँद के गांव से
जवाब देंहटाएंकिरणों के पाजेब डाल
जब सूरज निकलता है
यह कार्य केवल कवि- ह्रदय ही कर सकता है , दूजा न कोई .. बहुत सुनार परिकल्पना जी ..बधाई /
खूबसूरत प्रतीकों और बिम्बों से सजी बेहतरीन कविता.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई ||
पाजेब की झनकार दिल को छू गयी। आभार।
जवाब देंहटाएंचाँद के गांव से
जवाब देंहटाएंकिरणों के पाजेब डाल
जब सूरज निकलता है
तब चिड़ियों के कलरव से
मैं मौन आरती करती हूँ.
अद्भुत भाव लिए हुए अद्भुत रचना.
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
बहुत ही खुबसूरत और गहरे भावो से रची रचना....
जवाब देंहटाएंbhaut saare bhaavo aur gahraayi ko sametti rachna...
जवाब देंहटाएंखुबसूरत कविता और सुंदर रचना...लाजवाब।
जवाब देंहटाएंमैं मौन आरती करती हूँ
जवाब देंहटाएंइस मौन आरती की हम सब को जरुरत है
मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया
बहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंकिरणों की पाजेब....वाह!!पढ़ने के साथ ही चमक और मीठी सी खनक ...दिखाई सुनाई पड़ने लगी...
जवाब देंहटाएंati sundar...
जवाब देंहटाएंमैं मौन आरती करती हूँ
जवाब देंहटाएं- हर जाग्रत दिशाओं की
जाग्रत भावनाओं की
जाग्रत क़दमों की .......
कभी सुना है आँखों से निःसृत शंखनाद को ?
Waah ! Excellent !! Oh ! Sound so silence.. What an imagination...
जब भी,
कोई चिन्तक - समीक्षक ,
विचारक, साधक या कवि,
निहारता है उस असीम को,
सरूप में छिपे - 'अरूप' को,
जदत्व में छिपे - 'चैतन्य' को,
सगुण में - 'नर्गुण-निराकार' को,
उस गूढ़ रहस्य को, आवरण में.
फिर हो जाता - 'निःशब्द', 'मौन'.
एकदम से - 'मौन', 'महामौन'.
अंतर्जगत की,
थकाऊ, उबाऊ और दुर्गम,
इस यात्रा मे, जा पहुचता है,
वह अनंत से - "शून्य'' तक.
यह नि:शब्दता ही, सत्य है,
और मौन? मौन, इस सत्य की,
सर्वाधिक सबल अभिव्याक्ति है.
लाजवाब, बहतरीन, शानदार, अदबुध, भावपूर्ण, गहन चिंतन युक्त खूबसूरत अभिवयक्ति.... :-) यह सारे शब्द भी आप की रचनाओं के बारे में कहे जाने के लिए प्र्याप्त नहीं है किन्तु फिर भी मैंने कह ही दिये और क्या कहूँ बस यूं ही लिखती रहियेगा हमेशा शुभकामनायें .....
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