1)
इतिहास के पन्नों से
हमारी कब्र तक आकर
किन तथ्यों की छानबीन कर रहे हो
कानून तो आज के फैसले में अंधा है
तो किस अदालत में यशोधरा , द्रौपदी,
कैकेयी, सीता .... को ले जा रहे हो ?
धरती में गुम सीता को
भरी सभा में चीरहरण से संतप्त द्रौपदी को
राहुल को भी पिता के हवाले करनेवाली यशोधरा को
तिल तिल रिसती कैकेयी को क्यूँ कुरेद रहे हो ?
राधा का सत्य , कृष्ण का दुःख
मीरा की दीवानगी
किसी अदालत के मुहताज नहीं !
वर्तमान में तो इनकी छवि ही गुम है
.... खोज करनी है तो करो खोज आज में
कोई ऐतिहासिक छवि कहीं है !
.....2)
कितना फर्क है इन दो पंक्तियों में -
'एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों'
और
'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है '
इसी फर्क को समझना है
सरफरोशी की तमन्ना अपने दिल से होती है
पत्थर भी खुद उछालना होता है तबीयत से
परिवर्तन तभी संभव है
3)
सत्य आसान नहीं
जब जब मैंने किसी बंजर हिस्से को छुआ
सत्य प्रत्यक्ष होकर भी
खुद को तलाशता है
पूरी भीड़ सत्य से वाकिफ होती है
पर अनजान बन झूठा बना देती है
सत्य अपनी आग में तपता है
निखरता है
पर फिर भी उस सत्य कोकोई सत्य ही देख पाता है !
4)
किसी न किसी शक्ल में उसके पुश्तैनी हकदार
सामने आ गए ...
5)
मैं मेज पर रखा ख्वाहिशों का पंख हूँ
जब चाहो - उड़ सकते हो !
...............................................
मैं मेज पर रखा ख्वाहिशों का पंख हूँ
जवाब देंहटाएंजब चाहो - उड़ सकते हो !
बेहद उत्कृष्ट रचना है यह. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
पांचो रचनाये उत्कृष्ट .. पहली और दुसरी खास हैं.. सादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना..स्वयं में कई तथ्यों को समाहीत किये हुये.....लाजवाब।
जवाब देंहटाएं'सत्य प्रत्यक्ष होकर भी
जवाब देंहटाएंखुद को तलाशता है '
बहुत खूब!
सभी रचनाएँ अच्छी लगी.
तीसरी और पांचवी बहुत प्रभावी लगीं.
पर फिर भी उस सत्य को
जवाब देंहटाएंकोई सत्य ही देख पाता है !
gahan bahut khoobsoorat rachnayen..
bahut khoob mausi...sabhi rachnaye apne aap mei amulya hain...abhar...
जवाब देंहटाएंsabhi bahut achhi lagi rashmi ji...parntu..antim bahut khoob...
जवाब देंहटाएंसभी रचानाये बहुत उत्कृष्ट ही है....
जवाब देंहटाएंआपने दार्शिनिकता से ओत प्रोत सुन्दर प्रस्तुति की है,जो गहन भावों को अभिव्यक्त कर रही है.
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
आपकी सारी रचनायें गहन अर्थ को संजोये हैं ...
जवाब देंहटाएंसत्य वाली रचना ..बहुत पसंद आई ..
पत्थर भी खुद उछालना होता है तबीयत से
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन तभी संभव है !
Bahut acchhi rachnayein..
khoobsurat kavita...pancho kavitayen behatreen !
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं । मेरी शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
मैं मेज पर रखा ख्वाहिशों का पंख हूँ
जब चाहो - उड़ सकते हो !
........वाह। क्या खुब कहा है।
तथ्यपरक है आपकी ये प्रस्तुती,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वर्तमान में तो इनकी छवि ही गुम है
जवाब देंहटाएं.... खोज करनी है तो करो खोज आज में
कोई ऐतिहासिक छवि कहीं है !
सच है अदालतों से ऐसी छवि उभर भी नहीं सकती
शायद अदालतें भी भीड़ का हिस्सा भर हैं या तसवीर जब तक वहाँ से निकलती है तो इतनी पुरानी हो चुकी होती है कि कोई असर नहीं रह जाता
बहुत ही चिन्तनशील रचना।
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति .हर क्षणिका मन को छू गयी
जवाब देंहटाएंrasmi ji aapko apnee purani lay me padhkar behad sukhad anubhuti ho rahi hai, aap sadaiv urjawaan aivam swasth rahe aur sahitya ko samradhta pradaan karti rahe, shubhkamnaye
जवाब देंहटाएंगहन भावों को प्रकट करती...चिंतन हेतु प्रेरित करती रचना !!
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएं उत्कृष्ट हैं दी....
जवाब देंहटाएं....पूरी भीड़ सत्य से वाकिफ होती है
पर अनजान बन झूठा बना देती है....
ज्वलंत तथ्य है... जाने सत्य को आज कुंदन होने के लिए कितना जलना/तपना होगा...
सादर,,,,
गहन भाव लिये सुन्दर रचनायें।
जवाब देंहटाएंआज 25- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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सभी रचानाये बहुत उत्कृष्ट.
जवाब देंहटाएंजब जब मैंने किसी बंजर हिस्से को छुआ
जवाब देंहटाएंकिसी न किसी शक्ल में उसके पुश्तैनी हकदार
सामने आ गए ...
अक्षरश: सत्य कहा है ...गहन भावों का समावेश सभी रचनाओं के लिये बधाई ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
मैं मेज पर रखा ख्वाहिशों का पंख हूँ
जवाब देंहटाएंजब चाहो - उड़ सकते हो !
Awesome !
bahut sundar !
.
पर फिर भी उस सत्य को
जवाब देंहटाएंकोई सत्य ही देख पाता है !
ekdam sahi likhi hain.....khwahishon ka pankh.....bahut khoobsurat hai.
कितना फर्क है इन दो पंक्तियों में -
जवाब देंहटाएं'एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों'
और
'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है '
इसी फर्क को समझना है
सरफरोशी की तमन्ना अपने दिल से होती है
पत्थर भी खुद उछालना होता है तबीयत से
परिवर्तन तभी संभव है
iss kavita ka jabab nahi di...:)
कितना फर्क है इन दो पंक्तियों में -
जवाब देंहटाएं'एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों'
और
'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है '
इसी फर्क को समझना है
सरफरोशी की तमन्ना अपने दिल से होती है
पत्थर भी खुद उछालना होता है तबीयत से
परिवर्तन तभी संभव है
iss kavita ka jabab nahi di...:)
बेहद गहन भाव संजोये है रचना…………हर पल बदलती मगर अपनी सी लगती।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएँ उपहार में दी हैं हमको, क्या बात है? तारीफ करने के लिए शब्द नहीं है सभी तो सीधे दिल में उतारती चली गयी.
जवाब देंहटाएंसत्य को परिभाषित करने वाली सबसे अच्छी लगी.
सारी की सारी बहुत सुंदर कविताएँ, सत्य पर आधारित विशेष भायी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण क्षणिकाएं .
जवाब देंहटाएंपत्थर भी खुद उछालना होता है तबीयत से
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन तभी संभव है
सही कहा दीदी
परिवर्तन के लिए तबियत से कुछ करना होगा
सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं
सत्य अपनी आग में तपता है
जवाब देंहटाएंनिखरता है
पर फिर भी उस सत्य को
कोई सत्य ही देख पाता है !
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आपकी सारी रचनाएँ इतनी प्रभावशाली है और इतना सारा दर्शन समेटे हुए हैं कि उनकी तारीफ़ करना आसान नहीं है.
आभार
फणि राज
पर फिर भी उस सत्य को
जवाब देंहटाएंकोई सत्य ही देख पाता है !
अप्रतिम रचनाएं...आभार.
सादर,
डोरोथी.
Satya ko satya hi pahchan sakta hai....bilkul sahi kaha hai mam apne::::::::
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
गहन चिन्तन।
जवाब देंहटाएंखोज करनी है तो करो खोज आज में
जवाब देंहटाएंकोई ऐतिहासिक छवि कहीं है !
bahut sunder rachna
khwahison ka pankh !!! sundar bimb ,.utkrisht rachnayen
जवाब देंहटाएं१. ये सभी चरित्र इतिहास में नहीं...वर्तमान में भी मिल जायेंगे...नज़र चाहिए...
जवाब देंहटाएं२. परिवर्तन के लिए...ज़रूरी है...
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए...
३. भीड़ का सत्य और अकेले का सत्य...अलग है...
४. जैसे आईपीएल और मोदी...
५. ख्वाहिशों के पर निकल आये हैं...उड़ने पे आमादा दिखाते हैं...
''जब जब मैंने किसी बंजर हिस्से को छुआ
जवाब देंहटाएंकिसी न किसी शक्ल में उसके पुश्तैनी हकदार
सामने आ गए ...'' behad umda, sabhi rachnaayen utkrisht.
bahut hi nageenedaari se buni hui bhavya Bhavan ki eentein apne nirmaan ki sakshi bahi hui hai Rashim ji
जवाब देंहटाएंAppko jitni badhayi doon vah kam hai. Har prayas ,,lajawaab!
Devi Nangrani
dnangrani@gmail.com