10 जुलाई, 2011

वक़्त निकालो



एक दिन वक़्त निकालो
वक़्त निकालना बड़ी बात नहीं
सारी उलझनें इसलिए हैं
कि तुम वक़्त निकालना नहीं चाहते !
तुम अपने वक़्त को ज्यादा अहमियत देते हो
भूल जाते हो औरों के वक़्त के भी
अपने गुणा भाग हैं ....
तुमने खुद को ब्रह्मा मान लिया है
और इस तरह ब्रह्मा की छुट्टी कर दी है
लक्ष्मी को अपनी काबिलियत समझ बैठे हो ...
सब चलने की तैयारी में हैं
घर तुम्हारा रीता हो जाए
उससे पहले
एक दिन वक़्त निकालो
टांग दो अहम् को खूंटी पर
और मनन करो -
क्या खोया और क्या पाया !
रिश्तों की लकीरें हर किसी के पास होती हैं
कोई मिटा देता है कोई उसे बढ़ाता है
कोई उसे पार कर जाता है ....
तुमने क्या किया ?
एक सवाल रखो अपने आईने में -
रोते हुए बच्चे को तुमने चौकलेट दिया
या गोद में उठाया ....
' अब इतना ...' कहकर बातों को झटको मत
मुझे भी पता है हमेशा यह संभव नहीं
पर कभी कभी चौकलेट से अधिक
स्पर्श की अहमियत होती है
.....
खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
और उससे परे खुद को ....
तुम वृक्ष नहीं
मात्र एक शाखा हो
पर अपने अहम् के साथ तुम
पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
'कड़ाक' से टूट जाओ
उससे पहले - वक़्त निकालो

42 टिप्‍पणियां:

  1. तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
    तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    सटीक चेतावनी!!

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  2. बिलकुल सही कहा है !
    बहुत बढ़िया रचना ....

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  3. वक्त निकालना ही सबसे दुष्कर कार्य होता जा रहा है...इसी कारण वश अपनापन,लगाव,रिश्ते ..सब कहीं खोते जा रहे हैं औएर हम सब अकेले होते जा रहे हैं....बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

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  4. खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
    और उससे परे खुद को ....
    तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
    तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    बहुत बढ़िया .... सच्ची सटीक बात

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  5. बिल्कुल सच है ये ...किसी भी रिश्ते में पड़ने वाली गाँठे सिर्फ़ वक़्त न दे पाने की वजह से ही है ..... सादर !

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  6. भूल जाते हो औरों के वक़्त के भी
    अपने गुणा भाग हैं ..

    टांग दो अहम् को खूंटी पर
    और मनन करो -

    तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...

    वाकई मनन करने योग्य

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  7. तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
    तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो
    बिलकुल सही कहा है !बहुत बढ़िया ....

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  8. तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
    तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    आज हर इंसान पैसा कमाने में इतना व्यस्त है की वक्त ही नहीं निकालना चाहता ... फायदा और नुक्सान पहले देखता है ... रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  9. टांग दो अहम् को खूंटी पर और मनन करो -
    क्या खोया और क्या पाया!
    रिश्तों की लकीरें हर किसी के पास होती हैं -
    कोई मिटा देता है कोई उसे बढ़ाता है...कोई उसे पार कर जाता है!

    yes... वस्तु से अधिक एहसास की अहमियत होती है, दो शब्द प्रेम के ज्यादा मायने रखते है ...! वर्ना वही बात की रिश्ते बन तो जाते है पर उसे निभाने के लिए वक़्त कहा...!

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  10. अहम् तुम्हारा ...
    सोखता जा रहा है ...
    या डरे हुए हो ...
    कोई तुम्हे जीत ना ले ...

    टूट जाने से पहले वक़्त निकालो ...
    इंसानियत के लिए भी !

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  11. तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    बहुत बढ़िया .... सटीक

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  12. बेहतरीन प्रस्तुती... जीवन के कटु सच को दिखने की....

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  13. रिश्तों की लकीरें हर किसी के पास होती हैं
    कोई मिटा देता है कोई उसे बढ़ाता है '

    टूटन से पहले वक्त निकालो ?जबाब नही रश्मि जी ..आप वो सच बताती है जो दुसरे महसूस भी नहीं करते ???

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  14. खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई !!

    _______________
    शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'

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  15. आद. दी,
    सादर नमस्कार...
    कुछ दिन से बाहर था... आते ही ऐसी सार्थक रचना पढने को मिली..... सचमुच सभी के मनन योग्य
    सादर...

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  16. तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...

    बहुत ही सही कहा है आपने इन पंक्तियों में सशक्‍त रचना ।

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  17. खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
    और उससे परे खुद को ....
    तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
    तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    Wah di....
    na jane kya-2 kah diya in paktiyo ne.
    Badhai apko.

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  18. वक़्त की अहमियत ..और रिश्तो में प्यार का एहसास
    को बखूबी लिखा है आपने दीदी ...
    वक़्त का एहसास...
    वक्त निकालो ...........बहुत खूब
    हर बार की तरह ये रचना भी अद्दभुत

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  19. खूबसूरत कविता बेहतरीन प्रस्तुती.

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  20. सोलह आने सच्ची और खरी बात ! सुंदर प्रस्तुति के लिये आभार!

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  21. खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
    और उससे परे खुद को ....

    अद्भुत....काश हम ऐसा कर पायें...अगर ऐसा करते हैं तो ज़िन्दगी के अधिकाँश दुखों से निजात पा लेंगें...इस प्रेरक रचना के लिए आप की जितनी प्रशंशा की जाए कम होगी...

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  22. तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    ज़िन्दगी की सच्चाईयो से मिलवा दिया।

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  23. खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
    और उससे परे खुद को ....

    बस यही तो नहीं हो पता

    बहुत सुन्दर

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  24. हम कहते हैं हमारा वक़्त हमारा नहीं होता । न ख़ुद के लिए वक़्त न औरों के लिए; आखिर कहाँ जाया हो रहा है ये । एक दौड़ में अंधे हम दुनियावालों की प्राथमिकताएँ ही अलग हो गई हैं । विचारोत्तेजक कविता ।

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  25. बहुत ही सुन्दर कविता रश्मि जी बहुत बहुत बधाई |

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  26. अति सुंदर प्रस्तुति, समय के पास इतना समय कहाँ, आपको ही समय के साथ, अपने आप को ढालना होगा. घड़ी की सूइयों के साथ अपने पाँवों को बांध कर चलना होगा .
    धन्यवाद .
    आनन्द विश्वास

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  27. ज्ञानचक्षु खोल दिये आपने, अब समय निकालते हैं।

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  28. बहुत अच्छा संदेश देती सुंदर रचना,
    आभार,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  29. तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...

    Bahut gahri baat kahi hai aapne.. Aapse hum aur aapke fans aisi hi utkrisht rachnaon ki hi ummeed karte hain... Bahut - bahut badhai..

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  30. खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
    और उससे परे खुद को ....
    तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो
    पर अपने अहम् के साथ तुम
    पूरे वृक्ष की जगह ले रहे हो ...
    तुम धीरे धीरे सूखते जा रहे हो
    'कड़ाक' से टूट जाओ
    उससे पहले - वक़्त निकालो

    कविता का climax बहुत प्यारा है.बधाई .

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  31. sach kahaa hai !! ahm ke washibhut ho kar apne aap ko shakhaa se vriksh samjha baithe hain!!!

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  32. कमाल का विचार, कमाल की अभिव्यक्ति |

    इसी विषय पर मैंने एक पोस्ट लिखी थी -" खूब पर्दा है" - आज की जीवनशैली पर जिसमे हम लोगों के पास टि.वि. सीरिअल की हीरोइन की बीमारी के लिए रोज़ आधा घंटा है - परन्तु पड़ोसी अस्पताल में है तो ३ दिन तक हमें वक्त नहीं मिलता कि देख आयें !

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  33. खूंटी पर टंगे अपने अहम् को देखो
    और उससे परे खुद को ....
    तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो ...

    आईना दिखाती नज़्म ......!!

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  34. तुम वृक्ष नहीं
    मात्र एक शाखा हो... apni sochoon to esi shakha hoon jo abhi fal laane ke kaabil bhi nahi... bahut sunder seekh!

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...