10 नवंबर, 2011

जिसका डर था !



बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण ने
हमेशा मेरा आह्वान किया
मेरे विरोध से बेखबर
मुझे वह स्थल दिखाया
जहाँ ज्ञान मिला ...
एक नहीं दो नहीं ...कई बार
बुद्ध को मैंने प्रश्नों के भंवर में रखा
पर बुद्ध !
शांत स्मित लिए अनंत आकाश की तरह
भंवर से परे रहे ...
मैंने किंचित कटुता लिए भाव संग पूछा था ,
'क्या यशोधरा के मान का तुम्हें ख्याल नहीं आया ?'
आँखों में उद्दीप्त तेज भरकर बुद्ध ने कहा -
' मुझसे अधिक मान किसी ने रखा ही नहीं ...
एक एक पल में समाहित हमारा राहुल
यशोधरा की सांस बना , मकसद बना !
दुनिया क्या जानेगी , क्या पूछेगी
जो बात मेरे और यशोधरा के बीच थी !

जिस वक़्त मैं मोह की परिधि से निकला
उस वक़्त सारी दुनिया सो रही थी
पर यशोधरा जाग रही थी ....
मेरे ज्ञान मार्ग के आगे
वह विश्वास का एक दीया थी !
पति पत्नी की अवधि वहीँ तक थी
उससे आगे हम सहयात्री थे
मैं प्रत्यक्ष था , वह परोक्ष ....
बस यही एक सत्य था '
......
सोते जागते कोई अज्ञात स्वर मुझे बुलाता है
मोह से परे एक लम्बी सूक्ष्म पगडंडी दिखाता है
चौंकती हूँ ,
रोम रोम से एक ही गूँज अनुगूँज ...
' बुद्धं शरणम् गच्छामि
संघम शरणम् गच्छामि ....'
और मैं
आखिर वही हुआ
जिसका डर था !!!.....
यशोधरा का रूप लिए
निर्वाण यज्ञ को उद्धत होती हूँ !

44 टिप्‍पणियां:

  1. गहन अभिव्यक्ति ....

    यशोधरा के दुःख को ...किसने समझा..
    बुद्ध ने ....इस समाज ने ...या इन दोनों में से किसी ने नहीं
    नारी मन का दुःख और थाह ....कोई नहीं पा सकता ..ना बुद्ध और ना ये समाज .....आभार

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  2. बुद्ध की दृष्टि को ध्यान में रख कर लिखी गयी है ये कविता....भावों का सुन्दर संयोजन है ,इसमें
    रश्मिप्रभा जी

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  3. आखिर वही हुआ
    जिसका डर था !!!.....
    यशोधरा का रूप लिए
    निर्वाण यज्ञ को उद्धत होती हूँ !
    सत्य को बड़ी गम्भीरता से कहा है आपने इस रचना के माध्यम से...बहुत सुंदर।

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  4. बहुत ही सारगर्भित रचना आभार

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  5. बुद्धकर्म पर तो ध्यान जाता है, यशोधरा की सहन शक्ति उल्लेखविहीन हो जाती है।

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  6. इसके बिना जीवन का कोई पर्याय नहीं !
    बढ़िया रचना .......

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  7. आजकल लगता है आपका मूड इन संतों की पैरवी करने का है :)
    बहुत गहरे अर्थ लिए सुन्दर रचना.

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  8. सुन्दर सारगर्भित रचना ..आभार...

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  9. ek estri ke man ki thah wahi samjh sakta hai jo usmein jeeta hai..

    "sakhi we mujhse kahkar jaate
    chhori-chori gaye yahi bada vyaghat" ke marm ko is rachan ke madhya se jiwant kar diya aapne...aabhar

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  10. एक बार फिर खूबसूरत कविता... बहुत सुन्दर..

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  11. आप हमेशा एक अदभुत रत्न रुपी रचना सबके सामने रखती हैं ...बहुत सुन्दर ...
    आभार आपका ..
    गुरुनानक जयंती पे हार्दिक शुभकामनायें !!!

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  12. दुनिया क्या जानेगी , क्या पूछेगी
    जो बात मेरे और यशोधरा के बीच थी !

    जिस वक़्त मैं मोह की परिधि से निकला
    उस वक़्त सारी दुनिया सो रही थी
    पर यशोधरा जाग रही थी ....
    मेरे ज्ञान मार्ग के आगे
    वह विश्वास का एक दीया थी !
    पति पत्नी की अवधि वहीँ तक थी
    उससे आगे हम सहयात्री थे
    मैं प्रत्यक्ष था , वह परोक्ष ....
    बस यही एक सत्य था '



    awashya hi yashodhara ki prerna rahi hogi is mahaa tyaag ke peeche...


    utkrisht rachna....

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  13. जिस वक़्त मैं मोह की परिधि से निकला
    उस वक़्त सारी दुनिया सो रही थी
    पर यशोधरा जाग रही थी ....
    मेरे ज्ञान मार्ग के आगे
    वह विश्वास का एक दीया थी !

    bahut sunder rachna ...

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  14. पहले भी मै बुद्ध की तरफदारी करता था...परिस्थितियों के दोनों पहलू को देखना ज़रूरी है...आपने उन्हें शब्द दिए...धन्यवाद...

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  15. शायद आपको मुझे और हम सब को यह कभी पता ही नही चलेगा कि, मोक्ष दरअसल मिला था यशोधरा को, और लोग सिधार्थ को "गौतम" बुलाने लग पडे!!

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  16. हमेशा की तरह आज भी लाजबाब रचना ..
    सुंदर पोस्ट ..बधाई ..

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  17. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 11-11-2011 को शुक्रवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  18. bahut sunder bhav likhe yashodhara aur buddha ke beech ke ...bahut sundr

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  19. praveen pande ji ki baaton se poori tarah sahamt hoon ..... bahut hee gahare vicharon wali rachana hai yh aapki !!!

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  20. मेरे ज्ञान मार्ग के आगे
    वह विश्वास का एक दीया थी !
    पति पत्नी की अवधि वहीँ तक थी
    उससे आगे हम सहयात्री थे
    मैं प्रत्यक्ष था , वह परोक्ष ....
    बस यही एक सत्य था '

    आपकी ही एक कविता में पढ़ा था यशोधरा कहती हैं , मेरे बिना तुम्हारा बुद्ध होना संभव नहीं था !
    जब दोनों साथ ही थे , तब ही यह संभव हुआ!

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  21. मैं प्रत्यक्ष था , वह परोक्ष ....
    बस यही एक सत्य था '
    भावों को शब्‍दों में उतारना ...यह आपकी कलम बखूबी करती है ..!

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  22. यशोधरा ने तो बिना गृह का त्याग किये ही निर्वाण प्राप्त कर लिया था ...

    मेरे ज्ञान मार्ग के आगे
    वह विश्वास का एक दीया थी !

    बुद्ध भी बुद्ध यशोधरा के त्याग की वजह से ही बन पाए ... इसकी स्वीकृति आपकी ही एक रचना में की गयी है ..

    गहन भावों को उकेरती सुन्दर प्रस्तुति

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  23. Di!! tumhari rachna ko sirf bahut sargarbhit rachna kah kar hi jana padta hai, nahi nishkarsh nikal pate ki kya kahen........:(

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  24. इस कविता ने मुझे दोबारा पढ़ने के लिए विवश कर दिया। गहन भाव मिश्रित सुंदर अभिव्यक्ति।

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  25. पति पत्नी की अवधि वहीँ तक थी
    उससे आगे हम सहयात्री थे
    एक दृष्टिकोण को उकेरती रचना ...
    भावपूर्ण और सुन्दर

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  26. हमेशा... शांत.... स्मित... अनंत...
    यही बुद्ध है....
    सादर....

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  27. बुद्ध का बुद्धत्व की आधारशिला तो यशोधरा की सहनशीलता ही है ..... सादर !

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  28. बुद्ध का बुद्धत्व की आधारशिला तो यशोधरा की सहनशीलता ही है ..... सादर !

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  29. अनमोल रचना !
    बहुत अच्छी तरह से आपने अपना आध्यात्मिक दर्शन प्रस्तुत किया है ।

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  30. उससे आगे हम सहयात्री थे
    मैं प्रत्यक्ष था , वह परोक्ष ....
    बस यही एक सत्य था '
    दीदी आपने पहले भी यशोधरा का मन पढ़ने का अवसर दिया है आपकी लेखनी के द्वारा ....
    हर बार यशोधरा कहीं ना कहीं दुखी नज़र अति थी ..आज पहली बार वो अपने स्वाभाविक चरित्र में नज़र आई एक गरिमामयी यशोधरा ! बुद्ध की सहधर्मिणी यशोधरा !
    प्रणाम आपको दी !!

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  31. waah... kitni sundarta se Yashodhara ke dukh ka warnan kar diya aapne...

    yaha har istree mei ek Yashodhara hai, unka dard pratyaksh tha isiliye duniya ne jana... aur yaha roz na jane kitni Yashodhara janm leti hain, isi sahansheelta ke saath...

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  32. buddha or yashodhara ke man ke bhavo ko darshati bahut hi utkristha rachana ki hai apne....

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  33. aapko pad kar lagta hai ki aap bhi koi sant ho… ek sant ki soch is rachna mein saaf nazar aati hai… gyanvardhan karne ke liye shukriya, Rashmi ji!

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