25 नवंबर, 2011

सिर्फ पागल



हादसे अपने अपने होते हैं

अपने नहीं होते
तो दूसरे के दर्द में कोई रोता ही नहीं !

ये सच है
कि सबको अपनी बात पे ही रोना आता है
पर अपनी बात - सामने की पुनरावृति से जुड़ी होती है !

... जिसने हादसों की आवाज़ न सुनी हो
वह किसी के हादसे को सुनेगा ही क्यूँ
... उसे तो महज वह शोर लगेगा
रोना तो दूर की बात होगी
उसके चेहरे पर एक खीझ की रेखा होगी !

पर हम भी कहाँ साथ रोनेवाले का हाथ थामते हैं
जिनके चेहरे पर खीझ होती है
उन्हें समझाने में लगे रहते हैं ...
असफल होकर गाते हैं -
'कौन रोता है किसी और की खातिर ...'
जैसे सारी दुनिया दुश्मन हो !

दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
..... हादसों को नियति बनाकर चलना
हमें सहज लगता है
और जब यह सहज लगता है
तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
....... सिर्फ पागल !

43 टिप्‍पणियां:

  1. हादसे अपने अपने होते हैं
    अपने नहीं होते
    सूत्र वाक्य सी बात!

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  2. हादसे अपने अपने होते हैं
    अपने नहीं होते

    Sundar prastuti....

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  3. दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
    क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
    अगले हादसे का इंतज़ार होता है

    यह हादसे .....जीवन की नियति हैं ..क्या करें यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है ...!

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  4. झोठी सांत्वना देते लोग अपने नहीं होते .. हादसे सब के अपने अपने होते हैं ... बहुत गहन चिंतन

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  5. अपने नहीं होते
    तो दूसरे के दर्द में कोई रोता ही नहीं !
    ये सच है
    बिल्‍कुल ...हकीकत बयां करती अभिव्‍यक्ति .. ।

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  6. दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
    क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
    अगले हादसे का इंतज़ार होता है

    बिलकुल सही कहा आपने।

    सादर

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  7. Sach kaha hai .... Koun rota hai kisi aur ki khatir e dost ... Sabko spin hi kisi baat pe Rona aaya ...

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  8. बढ़िया कविता.... आज के रिश्तो की हकीकत...

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  9. rishte haadse me badal kyon rahe hain...aur kab tak ham aise hi pagal dikhenge!!
    di ki ek aur vicharniya rachna..

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  10. sach baat hai di .....apni zindagi se khud hi jhoojhana hota hai ...

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  11. इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  12. हादसों को नियति बनाकर चलना
    हमें सहज लगता है
    और जब यह सहज लगता है
    तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
    ....... सिर्फ पागल !
    सही है, बिलकुल सही बात कहती हमेशा की तरह बहुत ही शानदार प्रस्तुति....

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  13. बहुत सुंदर कविता बधाई ...
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है

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  14. हादसे हादसे होते हैं। वास्‍तव में वे किसी के नहीं होते।

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  15. कल 26/11/2011को आपकी किसी पोस्टकी हलचल नयी पुरानी हलचल पर हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  16. आप की रचना हमेशा लाजवाब होती है...आज भी है...बधाई

    नीरज

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  17. और जब यह सहज लगता है
    तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
    ....... सिर्फ पागल !
    बिलकुल सही...

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  18. सच कोई किसी का दुख महसूस नहीं करता...सिर्फ समझाना जानते हैं लोग
    अच्छी रचना

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  19. हादसे सबके अपने होते हैं...सच है.

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  20. हादसे सबके अपने होते हैं...सच है.

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  21. पर हम भी कहाँ साथ रोनेवाले का हाथ थामते हैं
    जिनके चेहरे पर खीझ होती है
    उन्हें समझाने में लगे रहते हैं ...
    असफल होकर गाते हैं -
    'कौन रोता है किसी और की खातिर ...'
    जैसे सारी दुनिया दुश्मन हो !


    बेहद सारगर्भित सन्देश है यह…………

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  22. दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
    क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
    अगले हादसे का इंतज़ार होता है

    आपकी रचना ..हमेसा कि तरह सबसे अलग है
    सत्य को उजागर करती सी ..आपके शब्दों को नमन

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  23. ये दुनिया का दस्तूर है ...यहाँ रोने वाले के आंसू नहीं पोंछे जाते

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  24. दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
    क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
    अगले हादसे का इंतज़ार होता है
    ..... हादसों को नियति बनाकर चलना
    हमें सहज लगता है
    और जब यह सहज लगता है
    तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
    ....... सिर्फ पागल !.........सभी कुछ समेटती है ये पंक्तिया.....या यु कहे निशब्द करती है कुछ कह नही सकते.... सिर्फ महसूस कर सकते है.....

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  25. और फिर ये भावनाएं पागलपन सी नज़र आती हैं

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  26. दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
    क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
    अगले हादसे का इंतज़ार होता है
    ..... हादसों को नियति बनाकर चलना
    हमें सहज लगता है

    शायद खुशियों से ज्यादा दुःख पर ध्यान केंद्रित रहता है और हादसे नियति बन जाते हैं ....जितने ज्यादा कानून बने है अदालतों में मामले बढे हैं ...
    यह सच है कि पागलपन बढ़ा है

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  27. दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
    क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
    अगले हादसे का इंतज़ार होता है
    ..... हादसों को नियति बनाकर चलना
    हमें सहज लगता है

    सुंदर रचना
    बधाई ...!!

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  28. जिसने हादसों की आवाज़ न सुनी हो
    वह किसी के हादसे को सुनेगा ही क्यूँ
    ... उसे तो महज वह शोर लगेगा
    रोना तो दूर की बात होगी
    उसके चेहरे पर एक खीझ की रेखा होगी !

    बहुत गहन और लाजबाब प्रस्तुति हमेशा की तरह !
    आभार !

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  29. क्या करें, अपनी पीड़ा सर्वाधिक सालती है।

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  30. लगता है जैसे हमारी हादसे ही हमारी नियति हैं इसलिए हम इन्हें अपनी नियति बना लेते हैं ...

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  31. हादसे अपने अपने होते हैं

    अपने नहीं होते
    तो दूसरे के दर्द में कोई रोता ही नहीं !
    ...
    हाँ दीदी हादसे अपने ही होते हैं.

    जवाब देंहटाएं

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