13 अप्रैल, 2012

खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !



ज़िन्दगी से जुड़े दर्द को
जानलेवा हम बनाते हैं
कोई मोह नहीं होता
सब दिखावा रहता है ...
खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
सहनशीलता की मूरत बने हम
आकाश से धरती
फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ...

धरती और आकाश का ज्ञान तो हमें है
पर पाताल से सिर्फ शाब्दिक नाता है
तो निःसंदेह पाताल को स्वीकारना संभव नहीं होता ...

फिर हम जो सुनते हैं
उससे अलग कुछ कहते हैं
और कह दिया तो सिद्ध करने की होड़
.....
संस्कार की दुहाई देते देते
हम हैवान बन जाते हैं !
खुद के सिवा कुछ भी
नज़र नहीं आता
बाकी सबकुछ हलक के बीचोबीच !
....
न निगलते हैं
न बाहर निकाल पाते हैं
उबजुब सी स्थिति
लाइलाज !
बीमार सी ज़िन्दगी
और आस पास कोई नहीं
.....
सब कहीं न कहीं
किसी न किसी तरह से आगे निकल गए हैं
सबको लगता है -
मंजिल मिल गई
और जश्न !
अकेले मनाने को रह गए हैं
बस .....
खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !

43 टिप्‍पणियां:

  1. खुद को दिखाने के लिए
    लोग क्या नहीं करते
    खुद के ज़मीर को
    मिट्टी में मिला देते
    चेहरे पर चेहरा चढाते
    बिना बात मुस्काराते
    मीठी बातों से लुभाते
    हर हथ कंडा अपनाते
    ना करे पसंद
    दिखा दे आइना कोई तो
    दुश्मन उसे समझते
    घमंड से भरे ऐसे लोग
    सबको बेवकूफ समझते हैं
    भूल जाते हैं
    हीरे को परखने वाले
    जोहरी भी दुनिया में होते हैं
    खुद को दिखाने के लिए
    लोग क्या नहीं करते

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  2. मंजिल मिल गई
    और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !
    बिलकुल सच ..पर यह समझता कौन है ..

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  3. बेहतर यही है कि जो हम हैं वैसे ही दिखें, वही कहें, जो कहना चाहते हैं।

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  4. सब कहीं न कहीं
    किसी न किसी तरह से आगे निकल गए हैं
    सबको लगता है -
    मंजिल मिल गई
    और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !

    सही कहा , किसी के लिए मुह में गर्म दूध हैं तो किसी के लिए खुशफहमी !

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  5. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
    सहनशीलता की मूरत बने हम
    आकाश से धरती
    फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ...
    खरा सच....

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  6. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !

    सब झमेला यही और इसी के लिए है।

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  7. इसे कहते हैं...प्रतिष्ठे प्राण गंवायो...

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  8. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
    सहनशीलता की मूरत बने हम
    आकाश से धरती
    फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ...

    बस मैं ही मैं नज़र आता है
    सोचते ही नहीं कि किसी और से भी नाता है ... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  9. सबसे बेहतर साबित होने की की महत्वाकांक्षा क्या नहीं करवाती लोगों से , मगर आखिर के अकेलपन से अनजान है ये लोंग !

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  10. और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !

    कितना सच कहा है …………मगर ये बात हर किसी को समझ नही आती।

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  11. बिलकुल सच कह रही हैं - अपने को बेहतर दिखने के लिए सच ही हम पाताल चले जाते हैं - very true :(

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  12. सब कहीं न कहीं
    किसी न किसी तरह से आगे निकल गए हैं
    सबको लगता है -
    मंजिल मिल गई
    और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !sahi bat...

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  13. और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !
    bilkul sahi kaha hai ....

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  14. शायद ये ही सच है .....???
    बड़े-बड़े नंगे हो गए ,इस हरम में
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में ....

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  15. खुद को बेहतर दिखाने के चक्कर में हम नीचे ..और नीचे गिरते ही जाते हैं .

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  16. सच कहा खुद को बेहतर दिखने ्की दौड़ में क्खुया-क्दया नहीं करते और अंत में कितने अकेले रह जाते है..ये पता नहीं...सुन्दर सटीक रचना..

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  17. गुलाब जब कमल बनने की कोशिश करने लगता है तो न तो वह कमल बन पाता है और न गुलाब रह जाता है.. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इसे स्व-धर्म कहा है..
    खुद को बेहतर दिखाने का अर्थ तो यह हुआ कि भगवान ने हमें जो बनाया हम उससे संतुष्ट नहीं हैं!! सच कहा दीदी, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा!! पतन का मार्ग!!

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  18. कटु सत्य कहती रचना .....आवरण हटाना कितना मुश्किल है ....

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  19. दिखने और दिखने के क्रम में बहुत कुछ करते हैं.
    विसंगतियाँ को अपनाने में भी चूकते नहीं

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  20. और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई

    जवाब देंहटाएं
  21. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
    सहनशीलता की मूरत बने हम
    आकाश से धरती
    फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ...

    आज के सच को दर्शाती सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  22. फोटो कहाँ से खोजी...एकदम सटीक है...कविता के साथ...

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  23. होड लगी है..............दौड रहे हैं सब स्वर्ण पदक पाने को............
    अजीब स्थिति है....
    सादर.

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  24. सबको लगता है -
    मंजिल मिल गई
    और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !

    Steek.... Bilkul Sach hai, Hote dekha hai aisa.....

    जवाब देंहटाएं
  25. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
    सहनशीलता की मूरत बने हम
    आकाश से धरती
    फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ....
    ****************************************************************************************************
    जानते हुए भी .... कभी कभी कोशिश करने पर भी दूसरा रास्ता नजर नहीं आता .... ??
    ****************************************************************************************************
    उबजुब सी स्थिति
    लाइलाज !
    बीमार सी ज़िन्दगी .....
    हकीकत है .... फिर भी .... ?

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  26. मैंने कभी osho times में पढ़ा था :
    Be yourself
    and then
    you will be accepted by Nature,
    You will be accepted by God.

    सुन्दर दिखने की कोशिश तो करनी चाहिए, पर अपनी पहचान खोनी नहीं चाहिए.

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  27. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  28. कभी कभी पूर्ण स्वार्थी हो जाने को जी करता है।

    जवाब देंहटाएं
  29. "सब कहीं न कहीं
    किसी न किसी तरह से आगे निकल गए हैं
    सबको लगता है -
    मंजिल मिल गई
    और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !
    हम आगे निकलने की जद्दोजहद में कितना कुछ (अपना और कीमती) पीछे छोड़ जाते हैं ! बहुत भावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्‍ति !

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  30. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
    सहनशीलता की मूरत बने हम
    आकाश से धरती
    फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ...

    कटु सत्य अभिव्यक्ति

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  31. आदरणीय दीदी आपका ब्लॉग खुलने में बहुत समय लगता है ...नीचे दूसरे ब्लोगर्स के डिटेल आते रहते हैं या तो टिप्पणी वाले या फिर ब्लॉग सूची वाले ..इस तरह पूरी रचना को पढ़ने में काफी वक्त लगता है

    जवाब देंहटाएं
  32. न निगलते हैं
    न बाहर निकाल पाते हैं
    उबजुब सी स्थिति
    लाइलाज !
    बीमार सी ज़िन्दगी
    और आस पास कोई नहीं
    ..sach aisi esthiti mein sab saath dekhte bue bhi saath kahan hote hain..khud bhi bhugtna hota hai apna dard...
    ..veartman parishya ka sateek chintansheel prastuti..

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  33. हम जो सुनते हैं
    उससे अलग कुछ कहते हैं
    और कह दिया तो सिद्ध करने की होड़

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति रश्मि जी... ज़िंदगी में बस अपने कहे को सिद्ध करने की होड़ में ही तो सब लगे हैं...ज़िंदगी एकसूत्री कार्यक्रम हो गयी है... ख़ुद को बेहतर सिद्ध करना, ख़ुद को साबित करना ...

    सादर
    मंजु

    जवाब देंहटाएं
  34. हम जो सुनते हैं
    उससे अलग कुछ कहते हैं
    और कह दिया तो सिद्ध करने की होड़

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति रश्मि जी... ज़िंदगी में बस अपने कहे को सिद्ध करने की होड़ में ही तो सब लगे हैं...ज़िंदगी एकसूत्री कार्यक्रम हो गयी है... ख़ुद को बेहतर सिद्ध करना, ख़ुद को साबित करना ...

    सादर
    मंजु

    जवाब देंहटाएं
  35. खुद को बेहतर दिखाने की ही तो कोशिश करते रहते हैं हम । सुंदर अलग सी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  36. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में न जाने कितने मुखौटे बना लेते हैं, किंतु सच्चाई कुछ और होती है
    न निगलते हैं
    न बाहर निकाल पाते हैं
    उबजुब सी स्थिति
    लाइलाज !
    बीमार सी ज़िन्दगी
    और आस पास कोई नहीं

    जवाब देंहटाएं
  37. खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में
    सहनशीलता की मूरत बने हम
    आकाश से धरती
    फिर धरती से पाताल में चले जाते हैं ...
    बिल्‍कुल सच कहा है आपने ...आभार

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  38. महत्वाकांक्षा जो न करवाए.. अति सुन्दर..

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  39. और जश्न !
    अकेले मनाने को रह गए हैं
    बस .....
    खुद को बेहतर दिखाने के क्रम में !
    सबको पीछे छोड़ने की होड़ में जब इंसान बेतहाशा भागता है ......तो बहुत सी तिलान्जलियाँ देता जाता है ...और आखिरकार अकेला रह जाता है ..जीत की कगार पर !!!!

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