शब्दों के अरण्य में
विचारों की गोष्ठी होती है
सुख दुःख आलोचना समालोचना
प्यार नफरत ...
भावों की अध्यक्षता में
अपना अस्तित्व ढूंढते हैं
किसी के हिस्से देवदार
किसी के हिस्से चन्दन वृक्ष भुजंग से भरा
किसी को कंटीली झाड़ियाँ ...
इस अरण्य में कुछ भी अर्थहीन नहीं
बस अर्थ अलग अलग हैं !
अर्थ अलग ना हो
तो बात नहीं बनती
ऐसे भी पक्ष विपक्ष से ही सरकार चलती है
भले ही वह भावनाओं की हो .....
एक ही गुट हो
विरोध की ज्वाला न हो
तो सबकुछ निश्चेष्ट , भोथर हो जाता है
चांदी हो या सोना
रखे रखे अपनी चमक खो देता है
चमक के लिए सान पर चढ़ाना ज़रूरी होता है !
................
बेशक शेर जंगल का राजा होता है
पर उसे शह और मात खरगोश भी देता है
कालांतर में खुद - कछुए से हार जाता है ...
शब्द अरण्य में इन्हीं भावों से
जीवन को चलाया जाता है
रामायण महाभारत वेद पुराण
इसी अरण्य की जड़ें हैं
पंचतंत्र की कहानियाँ यहीं लिखी गई हैं
...........
आग कितनी भी लगाई जाए
वजूद सृष्टि का इस अरण्य में
निर्भीक होता है
प्रभु के निर्माण को रचनाकार
अलग अलग सांचे देता है
जिसे दुनिया तडीपार करती है
उसे भी इस अरण्य में
एक पहचान देता है
वह पहचान
जिससे तड़ीपार भी अनजान होता है !
....
कहाँ जाना था किसी ने भी
कि एक दिन ऐसा आएगा
सारथी के छल की आलोचना होगी
दुर्योधन के पक्ष से सोचा जायेगा
राम को दरकिनार कर
रावण को पूजा जायेगा !!!
सार्थक रचना ....."बेशक शेर जंगल का राजा होता है
जवाब देंहटाएंपर उसे शह और मात खरगोश भी देता है
कालांतर में खुद - कछुए से हार जाता है ...
शब्द अरण्य में इन्हीं भावों से
जीवन को चलाया जाता है
रामायण महाभारत वेद पुराण
इसी अरण्य की जड़ें हैं
पंचतंत्र की कहानियाँ यहीं लिखी गई हैं"
इन्ही पेड़ों के झुरमुट में मेरे मन के भाव छिपे हैं।
जवाब देंहटाएंराम को दरकिनार कर
जवाब देंहटाएंरावण को पूजा जायेगा !!!.......
दीदी आपकी इस सोच से मैं सहमत नहीं हूँ ...सच और अच्छाई हर युग में रही हैं और रहेगी ...
समय बलवान है ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बात सहमती और असहमति की तो है ही नहीं , .... अनुभवों में भिन्नता ही तो अलग अलग मायने देते हैं
जवाब देंहटाएंशब्दों के अरण्य में
जवाब देंहटाएंविचारों की गोष्ठी होती है
सुख दुःख आलोचना समालोचना
प्यार नफरत ...
भावों की अध्यक्षता में
अपना अस्तित्व ढूंढते हैं ..
कितनी सटीक बात कही है आपने इन पंक्तियों में .. आभार ।
कहाँ जाना था किसी ने भी
जवाब देंहटाएंकि एक दिन ऐसा आएगा
सारथी के छल की आलोचना होगी
दुर्योधन के पक्ष से सोचा जायेगा
राम को दरकिनार कर
रावण को पूजा जायेगा ........kah nahi sakte ki uth kis karavat baithega...saarthak vichaar..
शब्दों के वन में विचारों की गोष्ठी.....
जवाब देंहटाएंसृष्टी का वजूद यहाँ निर्भीक है.................
वाह!!!
क्या कहूँ दी............
इस अरण्य में आपके विचारों के जो घोड़े दौड़ते हैं उनसे आगे भला कौन निकलेगा....
बहुत सुंदर.
सादर.
शब्दों का अरण्य ...जहां अलग अलग किस्म के विचार दिखते हैं .... राम को छोड़ कर तो नहीं पर रावण की पूजा आज भी होती है .. आखिर उसकी विदद्वता को तो पूजना ही चाहिए .... गहन भाव लिए सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंआपका शब्दों का यह अरण्य बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंकिसी(मेरे) के हिस्से चन्दन वृक्ष भुजंग से भरा
जवाब देंहटाएंकिसी(मेरे हिस्से) को कंटीली झाड़ियाँ ...
सारथी के छल की आलोचना होगी
दुर्योधन के पक्ष से सोचा जायेगा
राम को दरकिनार कर
रावण को पूजा जायेगा !!!
आज के समय में समाज में जो वातावरण बना हुआ है ....... सटीक = उपयुक्त = सार्थक रचना .... !!
शब्दों के अरण्य में
जवाब देंहटाएंविचारों की गोष्ठी होती है
सुख दुःख आलोचना समालोचना
प्यार नफरत ...
भावों की अध्यक्षता में
अपना अस्तित्व ढूंढते हैं
सत्य से साक्षात्कार कराती सुन्दर रचना, सरल और सुबोध शब्दों में.आरण्यकों में ही ज्ञान के भंडार मिले हैं. आरण्यक एवं उपनिषद् की महत्ता इसी कारण सर्विदित .वह एकता में अनेकता और सामूहिक विमर्श का परिणाम है. आरण्यक संस्कृति को विकसित करने हेतु बधाई
यही तो शाश्वत है
जवाब देंहटाएंसवाल उठाती, सिंहनाद करती कविता
सादर
जब हम अपने शत्रु को परास्त करने की योजना बनाते हैं तो हमारी सोंच भी हमारे शत्रु की तरह हो जाती है, क्योंकि तब हम अपने नहीं, उसके मस्तिष्क से सोचने का प्रयास करते हैं.. कालान्तर में हम अपने शत्रु की प्रतिमूर्ति बन जाते हैं. रावण का विरोध करते-करते हम स्वयं रावण बन गए! दुर्योधन का प्रतिकार करते-करते बन गए दुर्योधन... यह तो होना ही था..
जवाब देंहटाएंमगर सारथि का छल??? यह भूल धारणा है!!
आधा ज्ञान लेकर लोगों ने कृष्ण के उस रूप को इन्गित किया जब सूर्यग्रहण हुआ , शिखंडी का अवतरण हुआ , कर्ण की मृत्यु हुई ..... कारण तो सारे उपस्थित कर दिए थे प्रभु ने सत्य के लिए , फिर भी बाँए दांये से दृष्टि समेटता मूल्याँकन करता है .
जवाब देंहटाएंकाफी कुछ कह दिया आपने.
जवाब देंहटाएंकहाँ जाना था किसी ने भी
जवाब देंहटाएंकि एक दिन ऐसा आएगा
सारथी के छल की आलोचना होगी
दुर्योधन के पक्ष से सोचा जायेगा
राम को दरकिनार कर
रावण को पूजा जायेगा !!!
गहन भाव लिए हुए,सुंदर रचना लगी मुझे,...
शब्दों के अरण्य में
जवाब देंहटाएंविचारों की गोष्ठी होती है
सुख दुःख आलोचना समालोचना
प्यार नफरत ...
भावों की अध्यक्षता में
अपना अस्तित्व ढूंढते हैं
शब्दों के अरण्य का यह रूपक मन मुग्ध कर गया रश्मि जी ! उत्कृष्ट एवं गहन सोच को समेटे यह रचना बहुत पसंद आई ! बधाई स्वीकार करें !
शब्दों के अरण्य में विचारों की गोष्ठी...जैसे विधायकों के अरण्य में संसद की गोष्ठी, अब उठापटक तो स्वाभाविक है...सदा की तरह बहुत श्रेष्ठ कृति !
जवाब देंहटाएंshabdo ke iss aranya se kuchh shabdo ke fal ham bhi chun pate aur bana pate vyanjan...:)
जवाब देंहटाएंdidi jaisa:)
!!
निशब्द....
जवाब देंहटाएंराम को दरकिनार कर
जवाब देंहटाएंरावण को पूजा जायेगा !!!
आज का सत्य तो यही है
कहाँ जाना था किसी ने भी
जवाब देंहटाएंकि एक दिन ऐसा आएगा
सारथी के छल की आलोचना होगी
दुर्योधन के पक्ष से सोचा जायेगा
राम को दरकिनार कर
रावण को पूजा जायेगा !!!
....आज के समय का कटु सत्य...बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार
आग कितनी भी लगाई जाए
जवाब देंहटाएंवजूद सृष्टि का इस अरण्य में
निर्भीक होता है
शब्दों में बहुत ताकत होती है,शायद इसलिए निर्भीक होता है...
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत दिन बाद कुछ अलग व यथार्थ से मिलता जुलता पढ़ा । चंद पंक्तियाँ बतौर दाद - दुनिया मेँ झूठ का बोलबाला है लेकिन सच ऊपरवाले को सुनाया जाता है ।कहने सुनने के बगैर भी शब्दोँ के आस्तित्व के अंकुर को सहज विस्तार मिल जाता है, मौन की एक अलग भी तो परिभाषा है ।
जवाब देंहटाएंये जंगल भी तो कवियों और लेखकों का बनाया हुआ है...अब रावण-दुर्योधन कथा-व्यथा भी लिख देगा...
जवाब देंहटाएंबिलकुल अनूठी कल्पना-बूटियों से अरण्य का श्रृंगार !!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबेशक शेर जंगल का राजा होता है
जवाब देंहटाएंपर उसे शह और मात खरगोश भी देता है
कालांतर में खुद - कछुए से हार जाता है ...
शब्द अरण्य में इन्हीं भावों से
जीवन को चलाया जाता है
बेहतरीन प्रस्तुति !
रामायण महाभारत वेद पुराण
जवाब देंहटाएंइसी अरण्य की जड़ें हैं.....बेहतरीन
सच बात है ....शब्दों के अरण्य में सब कुछ है .....अपनी-अपनी सोच से इंसान देखता है ....लिखता है ....समझता है....
जवाब देंहटाएंकहाँ जाना था किसी ने भी
जवाब देंहटाएंकि एक दिन ऐसा आएगा
सारथी के छल की आलोचना होगी
दुर्योधन के पक्ष से सोचा जायेगा
राम को दरकिनार कर
रावण को पूजा जायेगा !!!
वक़्त बदल रहा है ... उसके साथ और भी बहुत कुछ ...
हर युग में हर किस्म के लोग रहे हैं ...हर किस्म की भावना .....सही कहा आपने अगर ऐसा न हो ...
जवाब देंहटाएंएक ही गुट हो
विरोध की ज्वाला न हो
तो सबकुछ निश्चेष्ट , भोथर हो जाता है....ऐसे में ही किसी ने राम को पूजा तो किसीने रावण को सही ठराया !
वाह ! सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंदैवी औ दानवी शक्तियाँ
जवाब देंहटाएंहर युग मे साथ चलीं
कभी दैवी का विस्तार हुआ
तो कभी दानवी का
राज्य प्रबल हुआ
मगर हर युग मे
अंत मे विजय का परचम
देवत्व ने ही फ़हराया
वक्त के अरण्य मे चाहे
कितने उत्पात मचें
चाहे कितने उल्का पिंड गिरें
आस और विश्वास का दीप
ना बुझता है और वो ही
अपनी रौशनी से एक दिन
जग प्रज्ज्वलित करता है
रश्मि जी शब्दों ही नही भावों का भी अरण्य है यह । सुन्दर अरण्य
जवाब देंहटाएंसब समय पर निर्भर करता है।
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