शिकायतों का काफिला यूँ निकला
कि सब अकेले हो गए
श्रेष्ठता के दावे में सब औंधे गिर पड़े ...
खुद में ही कोई पहचान शेष नहीं
तो दूसरे की आँखों में क्या देखें
सबके सब महज खड़े से हैं
पाँव किसी के भी नहीं ...
एक दूसरे की बैसाखियों पर हँसते हँसते जाना
सब घिसट रहे हैं
...
जिसे देखो वो अपने पक्ष की सुरक्षा में
दिल से परे दिमाग से चल रहा है
और दिमाग व्यवहारिकता के पहिये पे चलता है ...
व्यवहारिकता ज़रूरी है
पर मात्र व्यवहारिकता से संतुलन नहीं बनता
..... किसी भी निर्माण में समूह होता है
सृष्टि के निर्माण से चाय बनाने तक में !
अकेला चना भांड नहीं फोड़ता
ऐसे ही तो कोई नहीं कहता
किसी भी पूर्णता के लिए
एक से भले दो ही होता है
पर आह !
यहाँ सब अकेले होते जा रहे हैं
महंगाई तो भाषण है
उससे अधिक तो बुद्धिजीवी बढ़ गए हैं
सामान्य की कोई कीमत ही नहीं रही !
सामान्य असामान्य के तिरस्कृत माहौल में
' मैं ' का वर्चस्व है
' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
bahut bahut bahut sundar shandaar rachna,
जवाब देंहटाएंजिसे देखो वो अपने पक्ष की सुरक्षा में
जवाब देंहटाएंदिल से परे दिमाग से चल रहा है
और दिमाग व्यवहारिकता के पहिये पे चलता है ...
व्यवहारिकता ज़रूरी है
पर मात्र व्यवहारिकता से संतुलन नहीं बनता
..
कितना सही कहा है आपने आज समाज व्यक्तिवादी होता जा रहा है, पहले संयुक्त परिवार टूटे, फिर एकल परिवार और अब तो परिवार ही नहीं बच रहे, आज के युवाओं के पास दूसरे के लिये त्याग, समपर्ण और सहयोग जैसी भावनाओं के लिये समय ही नहीं है...
मैं ' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
हम की भावना तो न जाने कहाँ खो गयी है ... बस मैं और मैं .... अकेला तो होना ही था ... इस अकेलेपन की त्रासदी झेलते शायद हम सब ... पर फिर भी सुधरेंगे नहीं .... सार्थक रचना
शिकायतों का काफिला यूँ निकला
जवाब देंहटाएंकि सब अकेले हो गए
सच तो यही है ...
मैं का वर्चस्व होने पे सका अकेला होना तय है...
जवाब देंहटाएंसच कहा रश्मिजी ...अपनी अपनी डफली ..अपना अपना राग !!! (और सुननेवाला कोई नहीं )
जवाब देंहटाएंमैं ' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई,....रश्मी जी
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
मैं ' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई,....रश्मी जी
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
अकेला चना भांड नहीं फोड सकता...
जवाब देंहटाएंदुःख की बात ये है कि भले तकलीफ और असफलता सह लें....मगर आज रहना सबको अकेले ही है.......
प्रिवेसी चाहिए सबको.............
सादर.
सामान्य असामान्य के तिरस्कृत माहौल में
जवाब देंहटाएं' मैं ' का वर्चस्व है
' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!…………एक सटीक व सार्थक रचना सोचने को मजबूर करती "मै के अरण्य मे" सिर्फ़ "मै" ही रह जाता है
शिकायतों का काफिला यूँ निकला
जवाब देंहटाएंकि सब अकेले हो गए .......sach hai aaj sab andar se bilkul akele hai...
जैसे जैसे संचार व्यवस्था बढती जा रही है , पारस्परिक संचार ख़त्म होता जा रहा है .
जवाब देंहटाएंआधुनिक विकास की देंन !
यह नयी दुनिया का सच है
जवाब देंहटाएंआलम यह है कि हम के आवरण में भी "मैं" ही छिपा रहता है.
जवाब देंहटाएंसामान्य असामान्य के तिरस्कृत माहौल में
जवाब देंहटाएं' मैं ' का वर्चस्व है
' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
....अकेलेपन की व्यथा का बहुत सजीव चित्रण...बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...आभार
ufff..kya kahun ...just awesome :)
जवाब देंहटाएंमत भेद न बने मन भेद- A post for all bloggers
अच्छी कविता । बहुत अच्छे विषय पर लिखा है आपने । आदमी का वजूद आदमी के बाद कितना है । अपनी 'मैँ' को जितना दूसरोँ मेँ देखा उतना है ।
जवाब देंहटाएं" मैं ' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!"
गहन अभिव्यक्ति ! बहुत सुंदर !
सब घिसट रहे हैं एक दूसरे को बैसाखियों पर ... सच !!!
जवाब देंहटाएंसब घिसट रहे हैं एक दूसरे को बैसाखियों पर ... सच !!!
जवाब देंहटाएंमैं ' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!! bahut sachchi tasveer kheench di aapne.....
काश मैं की में में से जीवन बाहर आ पाये।
जवाब देंहटाएं'मैं' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं'मैं' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
'मैं' की इस 'मैं' में शायद 'मैं' हलाक हो जाए
शून्य भी पूर्णता ही है, बल्कि पूर्ण ही है।
जवाब देंहटाएंशून्य भी पूर्ण होता है, बल्कि पूर्ण ही है।
जवाब देंहटाएंये 'मैं' आदमी को एक दिन पूरी तरह खा जायेगा....
जवाब देंहटाएंमैं ' का वर्चस्व है
जवाब देंहटाएं' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
वास्तव में एक यही चरम सत्य रह गया है और शायद यही आज के हर बुद्धिजीवी का परम धर्म भी बन गया है ! गहन सोच लिये सार्थक रचना ! बधाई !
मरने के बाद मैं का क्या ....
जवाब देंहटाएंविकास का मूल चुकाता समाज .....मशीने हैं तो इंसान का महत्व कहाँ है...... जब व्यक्ती सोचे ...मैं सब कुछ कर सकता हूँ ...अकेला पन तो आएगा ही ....
जवाब देंहटाएंकटु सत्य आज का ....
bahut prabhavshali rachna
जवाब देंहटाएंशिकायतों का काफिला यूँ निकला
जवाब देंहटाएंकि सब अकेले हो गए
श्रेष्ठता के दावे में सब औंधे गिर पड़े ...
इस सत्य को पहचानने की आवश्यकता है. सुंदर प्रस्तुति.
जिसे देखो वो अपने पक्ष की सुरक्षा में
जवाब देंहटाएंदिल से परे दिमाग से चल रहा है
' मैं ' का वर्चस्व है
' मैं ' की माँग है
और खरीदार कोई नहीं
खुद की बोली खुद का क्रय
और अकेलापन !!!!!!
बिलकुल सही स्थिति बतलाई है आपने
सच है ..स्वार्थ नहीं त्यागता कोई..
जवाब देंहटाएंसच है ..स्वार्थ नहीं त्यागता कोई..
जवाब देंहटाएंबस यह (मैं) ही तो आजकल सारे फसाद कि जड़ बन गया है।
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