किसी की मौत पर
हम तुम शोक मनाते हैं - पूरे 13 दिन का
आर्यसमाजी रीति से जिसने जल्दी कर लिया
उसकी जबरदस्त आलोचना करते हैं !
किसी के चले जाने का शोक
तयशुदा दिन से पूरा हो जाता है क्या !
ग़मगीन माहौल आत्मा को संतुष्ट करता है
या समाज को
या परम्परा को ?
जो चला गया
उसकी कमी तो जीवनपर्यंत होती है
कई बार आंसुओं का सैलाब उमड़ता है
यादों के बादल छूकर बहुत कुछ कह जाते हैं
यादें किसी को दिखाने के लिए नहीं आतीं
ना ही वक़्त का मुंह देखती हैं
कभी कभी तो कई रातें
यादों में ही गुजर जाती हैं - तर्पण आंतरिक होता है .
प्यार हो
श्रद्धा हो -
तो एक बूंद आंसू से तर्पण होता है
यादों के मंत्रोच्चार ही आत्मा को राहत देते हैं ...
शरीर तो नश्वर है
आज नहीं तो कल जाना ही है
पर आत्मा तो अमर है ...
है ना ?
फिर किसी की आत्मा को मरा देखकर
किसी की आत्मा को मारते देखकर
तर्पण कैसे होता है
शोक की विधि क्या होती है
....
ओह ! यह तो अजीब प्रश्न उठ खड़ा हुआ !
पर प्रश्न वाजिब है न ?
हम क्या करते हैं -
जिसकी आत्मा को मार दिया है
उसके हर निवाले पर अपनी हिकारत देते हैं
" कैसे खाया जाता है !"
और जिसकी आत्मा मरी होती है
उसके विरुद्ध कोई समाज परिवार नहीं होता
बल्कि सभी मरी आत्मा के साथ चलने लगते हैं
चाटुकारिता का तर्पण अर्पण करते हैं
ब्राह्मण , भिक्षुक को भले न दें कुछ
पर आत्माविहीन वक्र चेहरे के आगे
कशीदे पढ़ने के साथ
मनचाहे भोज अर्पित किये जाते हैं !
....................
समाज तो वही है
फिर विरोधाभास क्यूँ ?
किसी के जाने पर दुख.दर्द तो अंदर से होता है..शोक या दुख मनाने के लिए दिन या समय तय करने का क्या औचित्य रह जाता है....रश्मि जी बिल्कुल सही कहा.. सटीक भाव....
जवाब देंहटाएंyahi to aadambar dhakoslen hain humaare samaaj ke man me kutilta aur doosron ko dikhane ke liye aadambar koi chala gaya to aatmtrapti ke liye kitne vidhividhaan jo jina hain unki koi poochh nahi.
जवाब देंहटाएंएक दम सच कहा दी............
जवाब देंहटाएंमुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि क्या मायने हैं इन अजीबो गरीब रिवाजों का.....
मगर आज भी जकड़े हुए हैं.....
सादर.
्बहुत सुन्दर व सटीक रचना है। बधाई।
जवाब देंहटाएंविरोधभास तो जागृत मस्तिष्क का प्रतीक होना चाहिए !! समाज वोही ना रहे समय के साथ तौर तरीकों तो बदलें मूल्य नहीं..और ऐसा सुनिश्चित करने मैं विरोधाभास उत्पन्न होता है !!
जवाब देंहटाएंकिसी के चले जाने का शोक
जवाब देंहटाएंतयशुदा दिन से पूरा हो जाता है क्या !
बिल्कुल सच्ची बात कही है इन पंक्तियों के माध्यम से ... सशक्त अभिव्यक्ति
प्यार हो
जवाब देंहटाएंश्रद्धा हो -
तो एक बूंद आंसू से तर्पण होता है
यादों के मंत्रोच्चार ही आत्मा को राहत देते हैं ..
कितनी गहन बात और कितनी सहजता से प्रश्न कर दिया आपने ... जो रस्मों से बंधा हो वो शोक मात्र दिखावा है ... बस समाज के बनाए नियमों को नाबाहने भर की प्रति क्रिया .... सार्थक प्रश्न करती अच्छी प्रस्तुति
रिवाजों को नयी तरह से ... नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंचाटुकारिता का तर्पण अर्पण करते हैं
जवाब देंहटाएंब्राह्मण , भिक्षुक को भले न दें कुछ
पर आत्माविहीन वक्र चेहरे के आगे
कशीदे पढ़ने के साथ
मनचाहे भोज अर्पित किये जाते हैं !
सटीक विरोधाभास !!
सब दिखावे का ज़माना है जी .
जवाब देंहटाएंमृत आत्माओं का संसार है ये .
कभी कभी एकदम झंझोड कर रख देती हो आप.
जवाब देंहटाएंसच में इन रिवाजों का औचित्य नजर नहीं आता...
जवाब देंहटाएंदुख तो दिल के अन्दर होता है...बाकी सब आडम्बर...
aankho ki kore bheegi hui hai
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही वाजिब सवाल उठाया है आपने.. मैं तो वैसे भी मृत्यु को शोक का अवसर नहीं मानता.. मेरी तो बस यही धारणा है कि जनम और मृत्यु किसी भी व्यक्ति के जीवन में दो त्यौहारों की तरह हैं.. फिर एक पर उत्सव और दूसरे पर शोक क्यूँ?? कवि होता, या कविता करनी आती तो इस विषय पर अवश्य लिखता!!
आपकी कविता लीक से हटकर होती है और हमेशा एक नए विचार को जनम देती है!!
प्यार हो
जवाब देंहटाएंश्रद्धा हो -
तो एक बूंद आंसू से तर्पण होता है
बिलकुल सही बात कही है और ये समाज के नियम ये कानून उसे चैन से एक इस बूँद भर आंसू से तर्पण का वक़्त भी नहीं देते...
फिर किसी की आत्मा को मरा देखकर
किसी की आत्मा को मारते देखकर
तर्पण कैसे होता है....?
बहुत गहन भाव हैं हमेशा उठते हैं मन में आज आपने शब्द दे दिए उन्हें... आभार आपका
क्या बात
जवाब देंहटाएंफिर किसी की आत्मा को मरा देखकर
किसी की आत्मा को मारते देखकर
तर्पण कैसे होता है
शोक की विधि क्या होती है
बिल्कुल नया दर्शन
जिसकी आत्मा को मार दिया है
जवाब देंहटाएंउसके हर निवाले पर अपनी हिकारत देते हैं
" कैसे खाया जाता है !"
और जिसकी आत्मा मरी होती है
BADE AJEEB SR RIVAJ BANA DIYE GAYE HAEN ,JINKE PEECHE KOE TARK NAHI DIKHATE DETA
nayi soch ki dhara prawahit karti sunder prastuti.
जवाब देंहटाएंumda swal jiske jabab har koi janana chahta hai
जवाब देंहटाएंरश्मी जी,..सवाल तो अच्छा है,परन्तु इस रिवाज को तोडेगा कौन,..१३ दिन के वजाय ३से५ दिन में ये कार्यक्रम में समाप्त हो जाए,..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
ye to samaj ke bnaye kuch riti rivaj hain jo ab badalne bhi lage hain....
जवाब देंहटाएंतथ्य को हृदय द्वारा स्वीकार करने में समय लगता है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
अतिसुन्दर विरोधाभास भरी रचना, बधाई..!
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर विरोधाभास भरी रचना,
जवाब देंहटाएंबधाई..!
चरों तरफ से हम ऐसे ही विरोधाभासों से घिरे हैं. लेकिन बदलना भी नहीं चाहते.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति.
ब्राह्मण , भिक्षुक को भले न दें कुछ
जवाब देंहटाएंपर आत्माविहीन वक्र चेहरे के आगे
कशीदे पढ़ने के साथ
मनचाहे भोज अर्पित किये जाते हैं !
विरोधाभास या चरित्र का दोहरापन ....
स्वयं के लिए अलग नियम कानून , दूसरों के लिए अलग !!
जीवन में
जवाब देंहटाएंकष्ट और मृत्यु के
भय से
चाटुकारिता का तर्पण
अर्पण
इश्वर को याद करना
व्यर्थ है
कथनी करनी में
विरोधाभास है
कर्म इश्वर की इच्छा
अनुरूप हों ,
इश्वर को पाना है तो
मन में बसाना होगा
सच्ची भक्ती का यही
स्वरुप है
आत्म तुष्टी का मूल
मन्त्र है
फिर किसी की आत्मा को मरा देखकर
जवाब देंहटाएंकिसी की आत्मा को मारते देखकर
तर्पण कैसे होता है .... ?
शोक की विधि क्या होती है .... ??
अभी शोक-तर्पण की विधि इज़ाद हुई होगी नहीं ....
लेकिन होनी जरुरी है .... !!
तभी शायद ....... ??
हाँ कई रीति रिवाज़ के अर्थ गहन हैं ,पर लोग उन्हें मात्र औपचारिकता समझते हैं
जवाब देंहटाएं'कलमदान '
किसी के चले जाने का शोक
जवाब देंहटाएंतयशुदा दिन से पूरा हो जाता है क्या !
...जिसकी क्षति हुई है .....उसके दर्द की न तो कोई अवधि है ..न ही उस को साझा किया जा सकता है ..लेकिन समाज अपने संवेदनशील होने की रस्म को ठोक बजाकर जताना चाहते है ...उसीकी यह प्रक्रिया है ....बहुत संवेदनशील प्रश्न ...
तयशुदा दिन से पूरा हो जाता है क्या !
जवाब देंहटाएंग़मगीन माहौल आत्मा को संतुष्ट करता है
या समाज को
या परम्परा को ?
जो चला गया
उसकी कमी तो जीवनपर्यंत होती है
कई बार आंसुओं का सैलाब उमड़ता है...सच्ची बात है
यह सब मन की भावनायें है मन से ही की जायें तभी आत्मा को शांति मिलती जाने वाले की भी और अपनी आत्मा को भी, क्यूंकि जो बंधनो में बंधा हो तो न तो तर्पण होता है और ना ही अर्पण बहुत ही गहन भाव अभिव्यक्ति को इस बार बहुत ही सहजता से कह गई आप....
जवाब देंहटाएंअपने स्वार्थ को सर्वोपरि कर दें...तो विरोधाभास कैसा...बस एक-दो बार आत्मा को सर ना उठने दीजिये...फिर आदत पड़ जाएगी...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंयादें किसी को दिखाने के लिए नहीं आतीं
जवाब देंहटाएंना ही वक़्त का मुंह देखती हैं
कभी कभी तो कई रातें
यादों में ही गुजर जाती हैं - तर्पण आंतरिक होता है .
प्यार हो
श्रद्धा हो -
तो एक बूंद आंसू से तर्पण होता है..
यादें किसी को दिखाने के लिए नहीं आतीं... एक बूँद आँसू से तर्पण होता है..... सीधे सादे शब्दों में कही गयी बात इतनी प्रभावशाली है... कि आपकी यह अद्भुत रचना पाठकों की अंतरात्मा को छूती है और उन्हें नए सिरे से सोचने को मजबूर करती है. आपकी रचनाएँ पढ़ना सदैव सुखद होता है..
सादर
मंजु