शब्दों की झोपड़ी में तुम्हें देखा था !!!...
इतनी बारीकी से तुमने उसे बनाया था
कि मुसलाधार बारिश हतप्रभ ...
- कोई सुराख नहीं थी निकलने की
कमरे में टपकने की !
दरवाज़े नहीं थे -
पर मजाल थी किसी की कि अन्दर आ जाए
एहसासों की हवाएँ भी इजाज़त लिया करती थीं !
न तुम सीता थी न उर्मिला न यशोदा
न राधा न ध्रुवस्वामिनी न यशोधरा ....
पर सबकी छाया प्रतिविम्बित थी तुम्हारे अक्स में
यह उन शब्दों का कमाल था
या फिर तुम्हारी खामोश निष्ठा का !
कमाल था तुम्हारे तेज का
तुम्हारे सत्य का
तुम मोम की तरह पिघलकर भी
कभी ख़त्म नहीं हुई
...
तुम्हारी चीखें -
तुम्हारे चेहरे की तनी नसों में संजीदगी से कैद थीं
जिन्हें शब्दों के मरहम से
तुमने वीनस बना दिया था !
अन्याय के काल्पनिक विरोध से
रक्तरंजित तुम्हारी हथेलियाँ
रामायण से कम नहीं लगती थीं
तुम्हारी प्रोज्ज्वलित आँखों के आगे
तुम्हारे दर्द का कुरुक्षेत्र नज़र आता था
लक्ष्यभेदी वाणों की गूँज सुनाई देती थी
और अविरल मुस्कान में एक अंतहीन तप !
.... झोपड़ी की दीवारों से लगे शब्द
आँगन में तुलसी की महिमा गाते थे
दीपक से निःसृत भावनाओं के पवित्र उजास
पूरे परिवेश में
अनकहे एहसासों का ग्रन्थ लिखते थे
.................................थे से है की यात्रा में
तुम्हारा हारना समय को मंजूर नहीं
तुम समय के रोम रोम से निकली
अपने स्वाभिमान के प्रति सजग तपस्विनी रही हो
समय से पूर्व
या समय के बाद
तुम्हें मरने का अधिकार नहीं
जिसकी झोपड़ी के आगे शब्दों का खुदा खड़ा हो
एहसासों की देवी हो
उसकी राहें कभी अवरुद्ध दिखें
यह किसी को स्वीकार नहीं !
रंचमात्र भी विस्मृति की शक्ल तुम्हारे लिए नहीं
मत भूलो -
तुम्हारी धड़कनों में वेद ऋचाएं धड़कती हैं
आँखों में आध्यात्मिक पांडुलिपियाँ हैं
तुम्हारे लिए हाँ तुम्हारे लिए
पूरी धरती कागज़ की शक्ल लिए खड़ी है
प्रकृति प्रदत्त हर मौसम की कलम में
भर लो नदी और सागर
लिखो वह सब , जो अब तक अनकहा है
हर अनकहे में रंग भर दो
तुम्हारे कमरे के एक एक शब्द सारथी की तलाश में हैं
उठो -
ज्ञान के सुदर्शन चक्र से
परिवर्तन का आह्वान करो .....
पता नही क्यों ऐसा लगा जैसे एक एक शब्द मुझे सम्बोधित करके लिखा गया हो या जैसे मेरे लिये ही लिखा हो …………बहुत कुछ कह गयी आपकी रचना ………
जवाब देंहटाएंशब्द हमेशा प्रतीक्षा में होते हैं।
जवाब देंहटाएंझोपड़ी की दीवारों से लगे शब्द
जवाब देंहटाएंआँगन में तुलसी की महिमा गाते थे
दीपक से निःसृत भावनाओं के पवित्र उजास
पूरे परिवेश में
अनकहे एहसासों का ग्रन्थ लिखते थे..बहुत ही गहन भावो की एक और प्रस्तुति..बहुत सुन्दर..
khoobsurat kavita
जवाब देंहटाएंतुम्हारे कमरे के एक एक शब्द सारथी की तलाश में हैं
जवाब देंहटाएंउठो -
ज्ञान के सुदर्शन चक्र से
परिवर्तन का आह्वान करो ..... gazab ki abhwyakti rashmi jee....
कमाल था तुम्हारे तेज का
जवाब देंहटाएंतुम्हारे सत्य का
तुम मोम की तरह पिघलकर भी
कभी ख़त्म नहीं हुई sundarta aiwam styata
समय से पूर्व
जवाब देंहटाएंया समय के बाद
तुम्हें मरने का अधिकार नहीं
जिसकी झोपड़ी के आगे शब्दों का खुदा खड़ा हो
एहसासों की देवी हो
उसकी राहें कभी अवरुद्ध दिखें
यह किसी को स्वीकार नहीं !
बहुत सुन्दर दी......
अद्भुत रचना.
सादर
वाह.. बेहद खूबसूरत रचना..!!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ..प्रेरित करती हुई ...रश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो आपको पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है.... :)
शब्दों की झोपड़ी में ज्ञान का दीपक हमेशा जलता रहता है।
जवाब देंहटाएंतुम्हारे लिए हाँ तुम्हारे लिए
जवाब देंहटाएंपूरी धरती कागज़ की शक्ल लिए खड़ी है
प्रकृति प्रदत्त हर मौसम की कलम में
भर लो नदी और सागर
लिखो वह सब , जो अब तक अनकहा है ...
जोश और स्फूर्ति से भर दिया इन शब्दों ने.... आभार रश्मिजी...
मन के भीतर ही भावनाओं के महाभारत सी लगी रचना...
जवाब देंहटाएंहर उस देवी के लिए है यह रचना जो त्याग की प्रतिमूर्ति है पर मौन है...एहसास और शब्दों से परिवर्तन लाने का अद्भुत आवाहन!!!
जवाब देंहटाएंजिसकी झोपड़ी के आगे शब्दों का खुदा खड़ा हो
जवाब देंहटाएंएहसासों की देवी हो
उसकी राहें कभी अवरुद्ध दिखें
यह किसी को स्वीकार नहीं !
मन भ्रमित है ... आपकी यह रचना प्रेरणा दे रही है ... शब्दों के खुदा को ढूंढ रहे हैं पर स्वयं में झाँकने का प्रयास नहीं कर रहे ...
बहुत अच्छी रचना
अब तक अनकहा है उसको शब्द देती हैं आप..अति सुन्दर , प्रवाहमयी रचना..
जवाब देंहटाएंलिखो वह सब , जो अब तक अनकहा है
जवाब देंहटाएंहर अनकहे में रंग भर दो
तुम्हारे कमरे के एक एक शब्द सारथी की तलाश में हैं
उठो -
ज्ञान के सुदर्शन चक्र से
परिवर्तन का आह्वान करो .....
....अद्भुत ! गहन प्रेरक अभिव्यक्ति...आभार
अदभुत कृति...
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन कीचाह करना उसका फिर आवाहन करना .... बदलाव आने वाला है.. देर सवेर,इसका संकेत है.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी चीखें -
जवाब देंहटाएंतुम्हारे चेहरे की तनी नसों में संजीदगी से कैद थीं
जिन्हें शब्दों के मरहम से
तुमने वीनस बना दिया था !
स्त्री के महानतम स्वरूप को श्रद्धा सुमन अर्पित करते शब्द प्रसून
प्रेरक रचना
ज्ञान के सुदर्शन चक्र से
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन का आह्वान करो .....
क्रांतिकारी रचना....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंलिखो वह सब , जो अब तक अनकहा है
जवाब देंहटाएंहर अनकहे में रंग भर दो
भर तो दिया आपने .....:))
तुम मोम की तरह पिघलकर भी
जवाब देंहटाएंकभी ख़त्म नहीं हुई
...
अद्भुत जिजीविषा ...से ओत-प्रोत ....
बहुत सकारात्मक कविता है ....
आज कि रचना अद्भुत लगी रश्मि दी ....
बहुत बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनायें ...
सर्वप्रथम आपको सादर नमस्कार .अच्छा लगता है जब आप जैसे दिग्गज मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी करते हैं ......उत्साहित होता हूँ .....
जवाब देंहटाएंआज आप तमाम ब्लॉगों को देखा ...व्यापक हैं ...बहुत बड़े दायरे में फैला हुआ है ...लगभग सभी विधाओं में ..नज़्मों की सौगात...
वटवृक्ष
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आपके इन सभी ब्लोगों को देखा ....अदभुत .....
दिल से आभार .....इसी तरह मुझ जैसे नविन लेखकों का मार्गदर्शन कराते रहिये
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...... लम्बी कविता में भावनाओं की तारतम्यता बंधना आसन नहीं होता मगर आपने इसे निभाया है.... क्या बेहतरीन कविता है.
जवाब देंहटाएंक्या कहूं, अभी इसके पहले वाली कविता का असर बरकरार है,कि फिर एक बहुत ही भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंकमाल था तुम्हारे तेज का
तुम्हारे सत्य का
तुम मोम की तरह पिघलकर भी
कभी ख़त्म नहीं हुई
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर कविता,बेहतरीन पोस्ट,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
पर सबकी छाया प्रतिविम्बित थी तुम्हारे अक्स में
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा है आपने ... शब्दश:
बहुत कुछ समझाती सी रचना.
जवाब देंहटाएंजिसकी झोपड़ी के आगे शब्दों का खुदा खड़ा हो
जवाब देंहटाएंएहसासों की देवी हो
उसकी राहें कभी अवरुद्ध दिखें
यह किसी को स्वीकार नहीं !
रंचमात्र भी विस्मृति की शक्ल तुम्हारे लिए नहीं.....
bahut sundar shabd
कितनी बार पढ़ गया दी इस अद्भुत रचना को....
जवाब देंहटाएंइतनी सघनता से गुंथे हुए हैं भाव के आवाक कर देते हैं... मोम की तरह पिघल कर भी ख़त्म नहीं होना... शब्दों के मरहम से वीनस बनाना... काल्पनिक विरोध से रक्तरंजित हाथ... दर्द का कुरुक्षेत्र... ओह! अद्भुत बिम्बों से कसी ऐसी रचना जिसके किसी अंश को पृथक उद्धृत नहीं किया जा सकता... अद्भुत....
सादर नमन.
BAHUT DINON KE BAAD EK ACHCHHEE
जवाब देंहटाएंKAVITA PADHNE KO MILEE HAI .
तुम्हारी धड़कनों में वेद ऋचाएं धड़कती हैं
जवाब देंहटाएंआँखों में आध्यात्मिक पांडुलिपियाँ हैं
तुम्हारे लिए हाँ तुम्हारे लिए
पूरी धरती कागज़ की शक्ल लिए खड़ी है
प्रकृति प्रदत्त हर मौसम की कलम में
भर लो नदी और सागर
लिखो वह सब , जो अब तक अनकहा है
हर अनकहे में रंग भर दो
बहुत सुंदर भाव लिये एक सार्थक सन्देश देती कविता.
बधाई एवं शुभकामनायें.
विचार के विस्तार की असीम श्रृंखला, बहुत अद्भुत रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंप्रेरक ....सकारात्मक , सार्थक !
जवाब देंहटाएंसम्यक ज्ञान ही हमें विवशताओं के परे निकालता है।
जवाब देंहटाएंकल 04/04/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
जवाब देंहटाएंआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं .... ...
क्या कहूँ बस एक ही शब्द गज़ब ....
जवाब देंहटाएंये शब्दों का मायाजाल हैं ........हम जैसे लिखने वाले इस में ही फसं कर रहे गए हैं ...शब्द एक जाले की भांति अपने इर्द गिर्द हैं अब ...जो अपनी सोच को मजबूती से जकडे हुए हैं
जवाब देंहटाएंकमाल था तुम्हारे तेज का
जवाब देंहटाएंतुम्हारे सत्य का
तुम मोम की तरह पिघलकर भी
कभी ख़त्म नहीं हुई .....शब्दों की अनवरत अभिवयक्ति.......
तुम्हारी चीखें -
जवाब देंहटाएंतुम्हारे चेहरे की तनी नसों में संजीदगी से कैद थीं
जिन्हें शब्दों के मरहम से
तुमने वीनस बना दिया था !
अन्याय के काल्पनिक विरोध से
रक्तरंजित तुम्हारी हथेलियाँ
रामायण से कम नहीं लगती थीं
तुम्हारी प्रोज्ज्वलित आँखों के आगे
तुम्हारे दर्द का कुरुक्षेत्र नज़र आता था
लक्ष्यभेदी वाणों की गूँज सुनाई देती थी
और अविरल मुस्कान में एक अंतहीन तप !
पूरी तरह से निशब्द निर्वाक हो गयी हूँ इस अप्रतिम रचना को पढ़ कर ! बार-बार पढती हूँ लेकिन जी नहीं भरता ! आपकी लेखनी को सौ बार नमन रश्मि जी ! बहुत ही उत्कृष्ट रचना है ! काश आपका आह्वान हर नारी तक पहुँच सके ! तथास्तु !