31 जुलाई, 2012

यातना संकल्प का शंखनाद है






सती ने खुद को कमज़ोर जाना
अतिशय जिद्द में खुद को अग्नि में डाला
पार्वती ने भी यही समझा
पर तप की अग्नि में निखरती गयीं
बस परखना है खुद को
सुनना है ईश को
फिर देखो
तुम्हारी कोमलता में
लचीलेपन में ही परिवर्तन है ...
ईश्वर ने सिर्फ तप ही किया है
तप ऋषियों के लिए है
जो तप करता है
परिवर्तन वही कर पाता है
और यह ईश्वर के तप का प्रभाव है
कि उसने नारी की कोमलता में
तप का संधान किया ...
फिर क्या प्रश्न
और किससे ?
शुम्भ, निशुम्भ , महिषासुर , रक्तबीज ना हों
तो दुर्गा की जय जयकार
निराकार में आकार
नवरात्री की पावनता
दशहरे का जयघोष सुवासित न हो !
स्त्री का समर्पण शिव है
स्त्री का मातृत्व शिव है
स्त्री का वियोग शिव है
स्त्री का त्रिनेत्र शिव है ......
परिस्थिति उसका रूप निर्धारित करती है
या शिवयुक्त प्रयोजन
यह आत्ममनन है
राग द्वेष दया क्षमा प्रेम नफरत
स्वीकार तिरस्कार .... सब है चारों तरफ
कब किसकी गिरफ्त से
कौन सा स्वरुप प्रगट होगा
यह कौन जाने ...
............
भ्रूण हत्या नहीं होगी
तो शाप फलित कैसे होगा
सरेराह चीखें नहीं सुनाई देंगी
तो कमज़ोर स्त्री दुर्गा कैसे बनेगी
नव रूप के लिए
अवस्थाएं तय हैं ...
हर यातना संकल्प का शंखनाद है
और कदम किसी और के नहीं
देवनिर्मित दुर्गा के ....

29 टिप्‍पणियां:

  1. अदभुद सोच..यातना से संकल्प... बहुत बढ़िया...प्रेरित करती कविता...

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  2. बहुत सुंदर रचना
    आम लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही है ये रचना
    मसलन मन में दम तोड़ रही भावनाओं को शब्द देकर उसे ज्वलंत बना दिया।

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  3. वीराने में आशाओं के महल निर्मित करती रचना...

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  4. अद्भुत, बेहतरीन।

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  5. सशक्‍त भाव लिए ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ...
    कल 01/08/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' तुझको चलना होगा ''

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  6. हर यातना संकल्प का शंखनाद है
    और कदम किसी और के नहीं
    देवनिर्मित दुर्गा के ....
    देवनिर्मित दुर्गा नमो नम: !

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  7. 'हर यातना संकल्प का शंखनाद है'
    सूत्र वाक्य सा ध्रुव सत्य!

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  8. sach hai yatnaaein nahi badhegi to sankalp shakti prabal nahi hogi

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  9. सरेराह चीखें नहीं सुनाई देंगी
    तो कमज़ोर स्त्री दुर्गा कैसे बनेगी
    नव रूप के लिए
    अवस्थाएं तय हैं ...
    हर यातना संकल्प का शंखनाद है
    और कदम किसी और के नहीं
    देवनिर्मित दुर्गा के ....
    बहुत ही मन को तरंगित करती ...तरंगित उन कमजोर भावनाओं से उपर उठा कर ...भीतर के सत्य को जागृत करती ....स्त्री को अबला नही सबल करने वाले उस शंखनाद से आह्वान करती ....रचना ....वास्तविक बल भीतर ही तो है ....रोने और उबरने के बीच का फासला ..इसी आभास से शुरू होता है ....बहुत उम्दा... दी..!

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  10. आपका शीर्षक ही चिन्तन प्रारम्भ कर जाता है..

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  11. भ्रूण हत्या नहीं होगी
    तो शाप फलित कैसे होगा
    सरेराह चीखें नहीं सुनाई देंगी
    तो कमज़ोर स्त्री दुर्गा कैसे बनेगी
    नव रूप के लिए
    अवस्थाएं तय हैं ...
    हर यातना संकल्प का शंखनाद है
    और कदम किसी और के नहीं
    देवनिर्मित दुर्गा के ....
    ये बाद का क्षेपक कवितांश यथार्थ है ज़मीन तैयार हो रही है नव दुर्गाओं के अवतरण की .बढिया सकारात्मक भाव की आस में जीवन ज्योत की नारी के शिवत्व की प्रस्तुति .

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  12. देवनिर्मित दुर्गा के निर्माण के लिए यातना एक संकल्प है . दर्द की इंतिहा खुद दवा हो जाने जैसा ही !
    प्रेरक आह्वान!

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  13. हर यातना संकल्प का शंखनाद है...बहुत सही कहा है, आज हर स्त्री को अपने भीतर दुर्गा को जगाना होगा..

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  14. हर यातना संकल्प का शंखनाद है
    और कदम किसी और के नहीं
    देवनिर्मित दुर्गा के ....

    बिलकुल सही कहा आपने रश्मि जी ! हर प्रतिक्रिया का निर्धारण उसकी क्रिया ही करती है ! और हर प्रतिक्रिया में ऊपर वाले का समर्थन अवश्य होता है ! साभार !

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  15. हर यातना संकल्प का शंखनाद है

    ध्रुव सत्य,हमेशा की तरह बेहतरीन और सारगर्भित

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  16. बहुत अच्छी रचना है दी..
    शीर्षक ही पूरी कविता कह डालता है...

    आभार.
    अनु

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  17. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  18. जो तप करता है
    परिवर्तन वही कर पाता है..
    यही सच है .परिवर्तन करने के लिए बहुत
    कुछ सहना पड़ता है

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  19. लेखनी में साक्षात् शक्ति-दर्शन..अहो!

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  20. प्रेरित करती प्रसंसनीय सुंदर रचना,,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  21. यातना से संकल्प .... एक शंखनाद सा करती और विचारों को झकझोरती रचना ॥

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  22. नारी शक्ति के सम्मान को रेखांकित करती अद्भुत कविता... जय हो दुर्गे

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  23. संकल्प की शुरुआत यातना से ही होती है...अद्भुत सोच...अद्भुत अभिव्यक्ति !!

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  24. शीर्षक को सार्थक करती सुंदर रचना.अति विशिष्ट..

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  25. शीर्षक बेहतरीन है.... और विषय वस्तु उतनी ही उम्दा
    आभार

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  26. हर किसी को सोचने पर मजबूर करती लेखनी ..

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  27. स्त्री का समर्पण शिव है
    स्त्री का मातृत्व शिव है
    स्त्री का वियोग शिव है
    स्त्री का त्रिनेत्र शिव है ......ji ..sty ..

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