03 अगस्त, 2012

अब पूरे रणक्षेत्र में मैं और मेरा सारथी होगा !!!





मुझे नहीं होना सत्यवादी
सत्य मेरा मन जानता है
और यही काफी है !
अब जब मैं अपने कक्ष में रहूंगी
तब सच कहूँगी
पर अपने घर की ठोस दीवारों पर
किसी गिरगिट को ठोकर नहीं लगाने दूंगी !
अच्छाई का प्रमाण पत्र मिले न मिले
क्या फर्क पड़ता है
दुनिया उसी का साथ देती है
जो झूठ बोलता है !
सच है -
मेरे घर की दीवारों ने किसी को छत दिया
पर यदि देकर वह सिकुड़ गया
तो कब तक मैं उसके रंग खुरचती रहूँ !
और वह ....
घबराकर मेरे आंचल को ना पकड़े !
ना ....
किसी को पत्थर बरसाने हैं तो बरसाओ
मैं दीवार के आगे खड़ी मिलूंगी
साम दाम दंड भेद तुमने आजमा लिए
मैंने कुछ नहीं कहा
अब देखो इस सत्य का विराट स्वरुप
छल की हर नीति से मैं अपने दीवारों की रक्षा करुँगी ...
मैंने विनम्रता से कहा
अभिमन्यु कुरुक्षेत्र में नहीं उतरेगा
तो तुमने अभिमन्यु के क्षण क्षण को
चक्रव्यूह में बाँध दिया
अब सुनो -
मेरा एक भी अभिमन्यु
चक्रव्यूह में नहीं जायेगा
क्योंकि मेरे भीतर का कृष्ण जाग गया है
और अब पूरे रणक्षेत्र में
मैं और मेरा सारथी होगा !!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. अब पूरे रणक्षेत्र में
    मैं और मेरा सारथी होगा !!!

    ... एक अदम्‍य साहस का परिचय देते हुए इन पंक्तियों के सशक्‍त भाव मन को छू गये ... आभार आपका इस उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति के लिए

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  2. अच्छी रचना
    आप अपनी सोच को किस ऊंचाई तक ले जाती है, फिर उसे शब्दों में बांध कर लोगों तक पहुंचाना, जो पढने वालों के अंतर्मन को झकझोरता है।

    किसी को पत्थर बरसाने हैं तो बरसाओ
    मैं दीवार के आगे खड़ी मिलूंगी

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  3. अब सुनो -
    मेरा एक भी अभिमन्यु
    चक्रव्यूह में नहीं जायेगा
    क्योंकि मेरे भीतर का कृष्ण जाग गया है.
    और अब पूरे रणक्षेत्र में
    मैं और मेरा सारथी होगा !!!

    अभिमन्यु को बचाने के लिए कृष्ण होना होगा , सिर्फ सत्य से काम नहीं होगा !

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  4. सिर्फ सत्य से काम नहीं होगा मेरे भीतर का कृष्ण मेरा सारथी होगा ..बहुत सुन्दर भाव .

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्‍यक्ति

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  6. सत्य ही हमें असत्य के आगे खड़े होने की असीमित शक्ति देता है...

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  7. शंख फूंकती ज्वाजल्य रचना दी...
    सादर

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  8. वक़्त के साथ अदम्य साहस को दर्शाती सुंदर रचना ।

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  9. अब सुनो -
    मेरा एक भी अभिमन्यु
    चक्रव्यूह में नहीं जायेगा
    क्योंकि मेरे भीतर का कृष्ण जाग गया है
    और अब पूरे रणक्षेत्र में
    मैं और मेरा सारथी होगा !!!

    ...एक अदम्य विश्वास और साहस से परिपूर्ण उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  10. रश्मि जी नमस्कार, बहुत खूबसूरती से आपने सत्य के साथ खडे रहने की बात की मेरे ब्लाग जनदर्पण की रचनाओं को भी अपना आशीर्वाद व कमी बताये ।

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  11. ओह !बहुत ही सुन्दर कविता --|विवेकशील ,अटल संकल्प वाली नारी का भविष्य ----ईश्वर उसकी किस्मत लिखने से पहले अवश्य पूछेगा -बता तेरी इच्छा क्या है !

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  12. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (04-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (04-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  14. मेरे घर की दीवारों ने किसी को छत दिया
    पर यदि देकर वह सिकुड़ गया
    तो कब तक मैं उसके रंग खुरचती रहूँ !

    पूरी कविता एक संकल्प है...ये पंक्तियाँ यथार्थ...एक प्रेरणा हैं|

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  15. किसी को पत्थर बरसाने हैं तो बरसाओ
    मैं दीवार के आगे खड़ी मिलूंगी.....एक अदम्य विश्वास और साहस से परिपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..

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  16. अंतर्मन को झकझोरती अदम्य और विश्वास की बेहतरीन प्रस्तुति,,,बधाई,,,,

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  17. विचारणीय भाव..... बेहतरीन बिम्ब ले रची पंक्तियाँ

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  18. मेरे घर की दीवारों ने किसी को छत दिया
    पर यदि देकर वह सिकुड़ गया
    तो कब तक मैं उसके रंग खुरचती रहूँ !

    जवाब देंहटाएं
  19. Rashmi ji...

    Sahas se kathinayi jaati..
    Kathinayi hi sahas laati..
    Jo kabhi dara, wo dara raha...
    Jo adig hua, wo paar hua...

    Sahas ke krushn saarthi ban...
    Hain kurukshetr main laate hain...
    Jeevan ke chakrvyhu ko wo..
    Ek ek kar tod girate hain...

    Jisne sahas dikhlaya hai..
    Usne hi krishn ko jaana hai...
    Jo dara raha, darta hi raha...
    Khud ko bhi na pahchana hai...

    Jeevan ki harek vishamta ko..
    Tap se sam karen nidarta se...
    Vish swatah banega amrut sa..
    Darna hai nahi vifalta se...

    Aaj kafi samay baad aapki kavita padhi hai...wohi sahas, wohi nidarta, wohi jeevan darshan jiska jaane kab se main prashank raha hu....apki es kavita main bhi parilakshit hui hai...jo aap sa adamya sahasi hoga us se to niyati bhi haar jayegi..kisi kathinayi main kahan etni takat ki aapki majboot deevaron ko gira sake...

    Shubh divas...

    Deepak Shukla...

    जवाब देंहटाएं
  20. Rashmi ji...

    Sahas se kathinayi jaati..
    Kathinayi hi sahas laati..
    Jo kabhi dara, wo dara raha...
    Jo adig hua, wo paar hua...

    Sahas ke krushn saarthi ban...
    Hain kurukshetr main laate hain...
    Jeevan ke chakrvyhu ko wo..
    Ek ek kar tod girate hain...

    Jisne sahas dikhlaya hai..
    Usne hi krishn ko jaana hai...
    Jo dara raha, darta hi raha...
    Khud ko bhi na pahchana hai...

    Jeevan ki harek vishamta ko..
    Tap se sam karen nidarta se...
    Vish swatah banega amrut sa..
    Darna hai nahi vifalta se...

    Aaj kafi samay baad aapki kavita padhi hai...wohi sahas, wohi nidarta, wohi jeevan darshan jiska jaane kab se main prashank raha hu....apki es kavita main bhi parilakshit hui hai...jo aap sa adamya sahasi hoga us se to niyati bhi haar jayegi..kisi kathinayi main kahan etni takat ki aapki majboot deevaron ko gira sake...

    Shubh divas...

    Deepak Shukla...

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  21. अब सुनो -
    मेरा एक भी अभिमन्यु
    चक्रव्यूह में नहीं जायेगा
    क्योंकि मेरे भीतर का कृष्ण जाग गया है
    और अब पूरे रणक्षेत्र में
    मैं और मेरा सारथी होगा !!!

    शंखनाद करती एक बेहतरीन प्रस्तुति।

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  22. शब्द ओए एहसास से परिपूर्ण कविता ...एक सोच ..खुद को परिभाषित करती हुई ...

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  23. रश्मि जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'मेरी भावनाएं' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 4 अगस्त को 'मैं और मेरा सारथी...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  24. अब सुनो -
    मेरा एक भी अभिमन्यु
    चक्रव्यूह में नहीं जायेगा
    क्योंकि मेरे भीतर का कृष्ण जाग गया है
    और अब पूरे रणक्षेत्र में
    मैं और मेरा सारथी होगा !!!..waah ..bahut khub ...

    जवाब देंहटाएं
  25. लाजवाब हो जाता हूँ शब्द ही नहीं मिलते कुछ कहने को.....अद्दभुत ।

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...