फ्रॉक के घेरे को गोल गोल घुमाती
खुद घेरे के संग गोल गोल घूमती
मैंने सुना था तुम्हारा नाम
और नन्हें मन ने सोचा था - कौन है ये इमरोज़ !
थोड़ी बड़ी हुई तो जाना -
अमृता का इमरोज़ !
उस उम्र ने माना - कोई किसी एक का होकर रह सकता है
वरना बकवास थी सलीम की बातें
अनारकली - बेचारी !
सोलहवें पड़ाव पर शिवानी की 'कृष्णकली' ने मन की ऊँगली थामी
यूँ ही उसका नायक प्रवीर दिखने लगा
और कली की बलखाती बातों में 'मैं' नज़र आई …
उतार-चढ़ाव-उतार के ऊँचे-नीचे रास्तों का अनुभव मिला
तो एक बार फिर इमरोज़ याद आया
……।
'कोई नम्बर देगा क्या ?
फोन करुँगी तो वे बात करेंगे भी क्या ?'
सवालों में उलझने को हुई
तो कृष्णकली की तरह सारी गिरहें काट डालीं
और लगा दिया नम्बर …
अरे बाप रे !
ये तो बज उठा है
क्या करूँ,क्या करूँ !!! … रिसीवर उठ गया
'हलो'
'इमरोज़' ?
हाँ मैं इमरोज़ बोल रहा हूँ '
कुछ देर के लिए मेरी आवाज फँस गई
फिर साहस किया -
बोली -
और फिर दिल्ली के हौज-ख़ास पहुँच गई !
बेटी को हिदायत थी - 'सहज तस्वीरें लेना'
खुली छत पर इमरोज़ का साथ
कबूतरों की बातें
वर्त्तमान में अमृता का आना-जाना
सबकुछ - अद्भुत था !
बरगद सा इमरोज़
और मैं -
पौधा कहूँ खुद को
या सूर्य किरणें !
कभी मैंने ऊँची निगाहें कीं
कभी वाष्पित किया इमरोज़ के अमृतमय ख्यालों को
…… इमरोज़ तठस्थ रहे !
कोई विशेष चाह नहीं
सिवाए अमृता के
और मैं विस्मित … यह सत्य !
समर्पण की यह परिभाषा
इतिहास के स्वर्णिम पन्ने दोहराते रहेंगे
…हर 26 जनवरी को मेरे भीतर गोल गोल घूमती अबोध लड़की यही कहेगी
"यह विशेष जन्म हर युग में हो
और यह दिन विशेष रहे"
सोचती हूँ,
जब एक बच्चे की रुदन 26 जनवरी .... को धरती पर उभरी
तो क्या उसमें 'माँ' की बजाय 'अमृता' थी !