
वो तुम्हारे अपने नहीं थे
जिन्हें साथ लेकर
तुमने सपने सजाये
सूरज मिलते
सब अपनी रौशनी के आगे
एक रेखा खींच ही देते हैं !
शिकायत का क्या मूल्य
या इन उदासियों का ?
'आह' कौन सुनता है ?
वक्त ही नहीं !
गर्व करो-
तुम आज अकेले हो !
साथ है वह सत्य
जिसे कटु मान
तुमने कभी देखा ही नहीं !
भीड़, कोलाहल
आंखों औ कानों का धोखा है
सत्य है 'कुरुक्षेत्र'
जिससे मुक्ति के लिए
मिली प्रकृति.......
धरती,आकाश,पेड़,पौधे
ऊँचे पहाड़,हवाएँ,बूंदें...
इनसे बातें करो
हर समाधान है इसमें !
मृत्यु के बाद-
धरती की बाहें
अग्नि की पवित्र लपटें
पेड़ की शाखाएं
अपने अंक में समेट लेती हैं
रिश्तों से आगे
यही विराम है !
उसके आगे दर्द का सत्य
कटु नहीं कुरूप है
तभी तो
हम उसे जानते नहीं
जानना भी नहीं चाहते.....
उस कुरूपता से
जोड़ा है प्रभु ने मोक्ष द्वार !
पाना है उसे
तो संवारो किसी को...
अपनी निश्छल भावनाएं दो
अंतर्द्वंद से बाहर निकलो
जीते जी अपने संचित पुण्यों में
किसी को शामिल करो !