30 अगस्त, 2021

मैंने देवकी और यशोदा को ही जिया है


 



कृष्ण को सोचते हुए, 
मैं कभी राधा नहीं हुई,
न सुदामा, न सूरदास,न ऊधो ...
मैंने देवकी और यशोदा को ही जिया है,
लल्ला को गले लगाकर दुलारा है
बरसों का रुदन दबाए बिलखी हूँ ।
मैं बस माँ रही ...
क्या करती अपने ही कान्हा से गीता सुनकर
उसके मुख में ब्रह्माण्ड देख
उसे याद क्या रखना था,
मुझे तो बस भोली माँ बन
उसकी बाल लीलाओं से आनन्दित होना था
अन्यथा सच तो यही है
कि मुझ देवकी के 
सांवरे सलोने लाल ने
गीता का ज्ञान
मेरे गर्भ में लिया 
मेरे आंचल की छांव तले ब्रह्माण्ड को आत्मसात किया
उसे जगत कल्याण के निमित्त
ज्ञान का आगार बनना था,
मुझे अज्ञान के हिंडोले में
पेंग मारते हुए,
उसे अपलक देखते
विदा करना था
और सूने कक्ष में बैठ
उसकी मोहिनी सूरत को
स्मरण करना था
मगर ...
उस जैसा ज्ञानेंद्र
अज्ञानी जननी की
कोख से जन्मे
क्या कभी संभव है !
सात पुत्रों की नृशंस हत्या के आगे भी
मैं आठवें के विश्वास से परे नहीं हुई
ऐसे में,
प्रकृति के सारे सामान्य नियम बदलने ही थे !
कारा की कठोर धरती
और लौह बेड़ियों ने
मुझे स्वयं से
कई गुना कठोरतर बनाया
और चौदह वर्षों के लिए
मेरी आत्मा को यशोदा की आत्मा से बदल दिया ।
यशोमति का तन
देवकी का मन 
कान्हा का भरण पोषण
मैंने अपने लाल को 
यशोदा के हाथों से
माखन सा निर्मल,कोमल,और स्वाद से भरा बनाया
माथे मोरपंख लगा 
पैरों में मोर के नृत्य की गति दी
काठ की बांसुरी देकर शिक्षा दी
कि चाह लेने भर की देर होती है
पत्थर को भी सजीव किया जा सकता है
मनोबल हो तो 
गोवर्धन को उंगली पर उठाया जा सकता है !

एक सत्य और बताऊं,
लल्ला का सुदर्शन चक्र
हमदोनों मायें थीं
हमने उसे कभी भी
कहीं भी
अकेला और निहत्था नहीं किया
अभिमन्यु और कर्ण की मृत्यु पर
जब वह बिलखा था
उसके सारे आंसू हमने आँचल में बटोर लिए थे
 
... आज कृष्णा का जन्मदिन है
मुझ देवकी को पीड़ा सहनी है
बाबा वासुदेव को यमुना पार करना है
नन्द बाबा को उनकी गोद से कान्हा को लेकर
यशोदा का लाल बनाना है
फिर से गोकुल,वृंदावन,मथुरा,द्वारका को दोहराना है
आततायियों का नाश करना है
...
उससे पहले हमारे लाल को
जरा जरा माखन खिला दो
और जमकर उसका जन्मोत्सव मनाओ ...

23 अगस्त, 2021

रिश्तों का हवाला नहीं होता




जब हर तरफ से उंगली उठती है
तो बड़ी घबराहट
अकबकाहट होती है
लेकिन उस बेचैन स्थिति में भी
सारथी बने हरि साथ होते हैं
मन के रूप में ।
मन कहता है,
लौट यहां से
अभी इसी वक्त
स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं
पता तो है तुझे
कि बात जब स्पष्टीकरण पर आ जाए
तो मानो,तुम गलत हो चुके हो
कुछ भी कहना जब समय की मांग नहीं,
तो बेहतर है एक लंबी ख़ामोशी
और ख़ामोशी की प्रतिध्वनि में
अपने 'अति' का मूल्यांकन !
. . .
मूल्यांकन करो,
तीव्रता से महसूस करो उन पलों को,
जहां से तुम्हें नियत समय पर हट जाना चाहिए था
न कि उसकी अवधि बढ़ाकर
रिश्तों का हवाला देना था ।
रिश्तों का कोई हवाला नहीं होता
गर हो तो बेहतर है 
इस हाले की घूंट से दूर
उस मधुशाला में जाओ
जहां तुम खुद को मिल सको
खुद को पा सको ।

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...