10 जुलाई, 2009

शुक्रगुजार !


दर्द ने मुझे तराशा है,
दर्द देनेवालों की
मैं शुक्रगुजार हूँ........
यदि दर्द ना मिलता
तो सुकून का अर्थ खो जाता,
खुशियों के मायने बदल जाते,
अपनों की पहचान नहीं होती,
गिरकर उठना नहीं आता,
आनेवाले क़दमों में
अनुभवों की डोर
नहीं बाँध पाती.........
मैं शुक्रगुजार हूँ,
उन क्रूर हृदयों का
जिन्होंने मुझे सहनशील होना सिखाया,
सिखाया शब्दों के अलग मायने
सिखाया अपने को पहचानना ........
तहेदिल से मैं शुक्रगुजार हूँ,
दर्द की सुनामियों की
जिसने मुझे डुबोया
और जीवन के सच्चे मोती दिए...........

हवाओं के रुख़ का सामना

  दौर का कमाल है, बड़े बुजुर्गो की कौन कहे जिनके दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं वे भी बुद्धिजीवी हैं, वे सोच समझकर भले न बोलें, आपका मान हो न ...