28 जनवरी, 2023

लोग बदल गए हैं


 

चिड़िया ने चिड़े से कहा - 

सुना है, लोग बदल गए हैं

और उनकी कोशिश रही है हमें बदल देने की !!!

पहले सबकुछ कितना प्राकृतिक, 
और स्वाभाविक था,
है न ?
हम सहज रूप से मनुष्य के आंगन में उतरते थे,
उनकी खुली खिड़कियों पर 
अपना संतुलन बनाते थे ।
खाट पर फैले अनाज से 
हमारी भूख मिट जाती थी 
चांपाकल के आसपास जमा हुए पानी से
प्यास बुझ जाती थी...

बदलाव का नशा जो चढ़ा मनुष्यों पर
आंगन गुम हो गया,
बड़े कमरे छोटे हो गए,
मुख्य दरवाज़े के आगे
 भारी भरकम ग्रिल लग गए !
मन सिमटता गया,
भय  बढ़ता गया,
अड़ोसी पड़ोसी की कौन कहे,
अपने चाचा,मामा, मौसी,बुआ की पहचान खत्म हो गई !!

बड़ी अजीब दुनिया हो गई है
मनुष्यों की भांति हमारा बच्चा भी
अपनी अलग पहचान मांग रहा है
निजी घोंसले की हठ में है ...!!!
समझाऊं तो कैसे समझाऊं
परम्परा का अर्थ कितना विस्तृत था
सही मायनों में -
वसुधैव कुटुंबकम् था !" 

रश्मि प्रभा 

07 जनवरी, 2023

जीवन है


 


यह जीवन है,
आसान लगता है,
होता नहीं ...
रोज नए सिरे से बनाना पड़ता है ।

कभी झूठ नहीं बोलोगे
तो औंधे मुंह गिरोगे
या सत्यवादी हरिश्चंद्र की तरह
बिक जाओगे
... अब चयन तुम्हारा है
सत्य के लिए बिकना चाहते हो
या सत्य के लिए युद्ध करना चाहते हो !!!

युद्ध के लिए साम,दाम,दंड अपनाना होगा
सिर्फ समर्पण भाव से
किन-किन रास्तों से गुजरना पड़ेगा
- तय नहीं हो सकता ! 
हाँ -
आलोचना दोनों हाल में होगी ।

एक बात की गांठ बांध लो,
राजा हरिश्चंद्र की राह अपनाओगे,
तो कहानी बनोगे
स्व के लिए युद्धरत रहोगे
तो कहानी से अधिक उदाहरण बनोगे ...! 

जीवन है,
सिर्फ लहरों से काम नहीं चलता
कुछ स्थाई स्थिति बनाने की खातिर
सुनामी के कहर की भी जरूरत होती है !

... जीवन है,
बिना रोए, मुरझाए
न हंस सकते हो,
न खिल सकते हो ... ।

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं

 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...