28 अप्रैल, 2021

हमारा देश जहाँ पत्थर भी पूजे गए !


 


 


 हमारा देश
जहाँ पत्थर भी पूजे गए !

 
जाने किस पत्थर में अहिल्या हो
कहीं तो जेहन में होगा
जो हमीं ने पत्थरों में प्राणप्रतिष्ठा की
फूल अच्छत चढ़ाए
और सुरक्षित हो गए ।


बड़ों के चरण हम झुककर
श्रद्धा से छूते थे
कि उनका आशीर्वचन
रोम रोम से निकले
और ऐसा हुआ भी
और हम सुरक्षित हो गए ।


स्त्री के लिए हमने एक आँगन बनाया
जहाँ वह खुलकर सांस ले सके
अपने बाल खोल
धूप में सुखाए
आकाश से अपना सरोकार रखे
चाँद को रात भर देखे
स्त्री खुश थी
संतुष्ट थी
बाधाओं में भी उसके आगे एक हल था
जिसे संजोकर
हम सुरक्षित हो गए ।


फिर एक दिन हमने अपनी आज़ादी का प्रयोग किया
बोलने की स्वतंत्रता को
स्वच्छंदता में तब्दील किया ...
हमने पत्थर को उखाड़ फेंका
अपशब्द बोले
और उदण्डता से कहा,
"अब देखें यह क्या करता है !"


बड़ों के आगे झुकने में हमारी हेठी होने लगी
चरण स्पर्श की बजाय
हम हवा में घुटने तक हाथ बढ़ाने लगे
प्रणाम करने का ढोंग करने लगे
बड़ों ने देखा,
महसूस किया
उनके आशीर्वचनों में उनकी क्षुब्धता घर कर गई
. .. सिखाने पर हमने भृकुटी चढ़ाई
उपेक्षित अंदाज में आगे बढ़ गए
घने पेड़ की तरह वे भी धराशायी हुए
हम फिर भी नहीं सचेत हुए !


आँगन को हमने लगभग जड़ से मिटा दिया
जिस जगह पुरुष द्वारपाल की तरह डटे थे
वहाँ स्त्रियाँ खड़ी हो गईं
उनकी सुरक्षा में खींची गई
हर लकीर मिटा दी गई
हम भूल गए कि कराटे सीखकर भी
एक स्त्री
वहशियों की शारीरिक संरचना से नहीं जूझ सकती !!!
दहेज हत्या,कन्या भ्रूण हत्या,...
हमने स्त्रियों का शमशान बना दिया
और असुरों की तरह अट्टहास करने लगे
माँ के नवरूप स्तब्ध हुए
जब उनके आगे कन्या पूजन के नाम पर
कन्याओं की मासूमियत दम तोड़ गई
कंदराओं में सुरक्षा कवच बनी माँ
प्रस्थान कर गईं !
गंगा,यमुना,सरस्वती ... कोई नहीं रुकी !


उसका घर मेरे घर से बड़ा क्यों?
उसकी गाड़ी मेरी गाड़ी से कीमती क्यों?
और बनने लगा करोड़ों का आशियाना
आने लगी करोड़ों की गाड़ियां
ज़रूरतों को हमने
इतना विस्तार दे दिया
जहाँ तक हमारी बांहों की
पहुँच नहीं बनी
पर हमने
उसे समेटने की कोशिश नहीं की
उस नशे ने हमें आत्मघाती बना दिया
फिर हम ताबड़तोड़
आत्महत्या करने लगे ।


अति सर्वत्र वर्जयेत"
 इसीके आगे आज हम असहाय,
निरुपाय ईश्वर को पुकार रहे ।
पुकारो,
वह आएगा
लेकिन मन के अंदर झांक के पुकारो
लालसाओं से बाहर आकर पुकारो
पुकारो,पुकारो
ईश्वर ने सज़ा दी है
कठोर नहीं हुआ है"
इस विश्वास के साथ अपने संस्कारों को जगाओ
फिर देखो - वह प्रकाश पुंज क्या करता है ।


बुनियाद

 जो रिश्ता रिश्तों के नाम पर एक धारदार चाकू रहा, उसे समाज के नाम पर रिश्तों का हवाला देकर खून बहाने का हक दिया जाए  अपशब्दों को भुलाकर क्षमा...