26 जुलाई, 2024

खुद के लिए !!!

 बौद्धिक विचारों के लिबास से लिपटे लोग 

अक्सर कहते हैं -

खुद के लिए जियो,

खुद के लिए पहले सोचो"

... खुद के लिए ही सोचना था 

तब प्यार क्यों 

रिश्ते क्यों 

मित्रता क्यों 

इन सबसे ऊपर 'मोह' क्यों !

इन सबसे ऊपर होना 

इतना ही आसान होता 

तो न महाभिनिष्क्रमण का कोई अर्थ मिलता,

न संन्यासी की रचना होती 

और ना ही आवेश में कोई कहता,

"स्वार्थी" !!!

आंतरिक बेचैनी तक नहीं पहुंच सकते 

तो मत पहुंचो,

नाहक परामर्श मत दो ।

मेरा 'खुद' 

मैं हूँ ही नहीं 

और जो हूँ,

वह तुम्हारी सोच,

तुम्हारे तर्क, कुतर्क से 

कोसों दूर है 

और दूर ही रहेगा ।


रश्मि प्रभा

20 जुलाई, 2024

कुड़माई हो गई ?

 काश! उसने मुझसे पूछा होता 

'तेरी कुड़माई हो गई है ?'

मैं कहती,

"नहीं रे बाबा,

तू करेगा क्या कुड़माई ?

तू सूबेदार बनना 

मैं तेरी सूबेदारनी 

फिर सारी उम्र तू ऐसे ही सवाल करना 

ताकि मेरी शोखी को 

धीमी धीमी आंच मिलती रहे !"


काश!

उसने यह पूछा होता,

"तू करेगी मुझसे कुड़माई ?"

और मैं धत् कहकर 

उसके गले लग जाती

उसकी लंबी आयु बन जाती ।


रश्मि प्रभा

17 जुलाई, 2024

संवेदनशील

 पास आकर कुछ बताना अपने आप में 

एक गहरी खामोशी की रुदाली होती है !

बिल्कुल असामयिक मृत्यु जैसी !!

अगर तुम्हारी संवेदना मरी ना हो

तो खामोश ही रहो न ।

जीवन क्या है !

उसे उसी वक्त 

ऐसे वैसे दिखाने की क्या जरूरत है !

जो दर्द के गहरे समंदर में होता है, 

उसके आगे तो यूं भी एक एक सच 

हाहाकार करता गुजरता है !

कुछ नहीं दे सकते 

तब कम से कम इतना विश्वास ही दे दो

कि किनारे तुम खड़े हो

अगर तुम संवेदनशील हो तो !!


रश्मि प्रभा

02 फ़रवरी, 2024

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!!

किसके साथ ?

क्यों ?

कब तक ? - पता नहीं !

पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से

बहुत घबराहट होती है !

प्रश्न डराता है,

नहीं दौड़ पाए तो,

अचानक गिर गए तो,

बहुत पीछे रह गए तो ....

तो क्या ?

सबसे आगे आना जीत है

लेकिन सब तो सबसे आगे नहीं होते

और चूक जाना

उस वक्त का परिणाम है

पूरी ज़िंदगी कोई नहीं तय करता,

हो भी नहीं सकता !

मिनट मिनट में बाज़ी पलटती है

धावक बदलते हैं

कब किसकी जुबान पर

किसके नाम का पताका फहरेगा,

कोई नहीं जानता !

सारी सीख,

सारे समझौतों के बाद भी

एक रेस जारी है ...

यकीनन कोई रुका हुआ लग रहा है

लेकिन वह रुका नहीं है !

नहीं चाहकर भी

वह दौड़ रहा है

पांव हों ना हों,

दौड़ चल रही है,

किसी भी एक की जीत

हमेशा तय नहीं

फिक्सिंग भी तो है !!!

झल्लाहट हो,

रोना पड़े,

सबकुछ रुका हुआ प्रतीत हो

... पर दौड़ना है,

दौड़ जारी है !!!


रश्मि प्रभा

तराशी हुई सुबह

साड़ी के पालने में झूलते हुए

उसने कर्कश चीखें सुनी थी 

मां की गोद में जाकर

उसकी आंखों से बहता पानी देखा था 

(तब आंसू शब्द से परिचित नहीं थी !)

अजीबोगरीब शोर के मध्य

कभी कहकर, कभी दबी हिचकियों में

मां ने बहुत कुछ बताया उसे,

साथ ही सीख की लोरियां सुनाई ...

जाने कितने ज़ख्म थे मां के चेहरे

और शरीर पर !!!

फिर भी वह बड़बड़ाती रहती थी थपकियों में,

"स्त्री को बर्दाश्त करना होता है

घर को घर बनाना पड़ता है

बाहर की दुनिया किसी जानवर से कम नहीं

तो घर से बाहर पैर निकालने जैसे आक्रामक विचारों से

खुद को अछूता रखना ही स्त्री का धर्म है !

पापा भी हाथ उठाते थे मां पर,

दादा दादी पर

इसलिए यह कोई खास बात नहीं है बेटी ..."

टुकुर-टुकुर मां को देखते सुनते,

उसके मन-मस्तिष्क में पड़े ज़ख्म उभरे

उसकी पारंपरिक सीख के आगे भी 

उसने सुना 

और सुनती गई ...

"बेटी, 

अपने अस्तित्व को 

किसी भी अस्तित्व से

कभी कम मत समझना !

इसके पहले कि किसी दिन 

कोई हाथ तुम तक बढ़े

- हाथ बढ़ाकर उसे रोकना ।

वर्षों से चली आई 

थप्पड़ खाने की सनातन प्रथा को

सिर्फ़ रोकने की ही नहीं

तोड़ने की क्षमता रखना !

... दुनिया क्या कहेगी !!!'

यह क्षण भर के लिए मत सोचना ।

दुनिया वही कहती है,

जिस मानसिकता में वह जीती है।"


अक्सर लोगों को कहते सुना है,

बच्चे वही सीखते हैं, जो देखते हैं

उसने इसे गलत साबित कर दिया  

क्योंकि उसने सिर्फ़ वही सीखा, 

जो वह देखना चाहती थी ।


रश्मि प्रभा

खुद के लिए !!!

 बौद्धिक विचारों के लिबास से लिपटे लोग  अक्सर कहते हैं - खुद के लिए जियो, खुद के लिए पहले सोचो" ... खुद के लिए ही सोचना था  तब प्यार क्...