कितनी आसानी से हम कहते हैं
कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..."
बिना बरसे ये बादल
अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर
आखिर कहां!
किस हाल में होते हैं ?
यह न हमने सोचा,
न जानने की कोशिश की,
हम तो बस इस बात से खुश रहे
कि हमने कितनी सही बात कह दी ।
उन्हीं बिन बरसे बादलों की तरह
हम किसी के दर्द,
किसी की मनःस्थिति से अलग
सिर्फ़ अपनी कही बातों की जीत पर
इतराते हैं
लोगों के बीच सीना तानकर
विजयी मुस्कान लिए कहते हैं
'हमने तो पहले ही कहा था'
मगर जो कभी
ये बिन बरसे उजबुजाए बादल
बरस गए
तो भी हमारी शान नहीं घटती,
हम मुंह बिचकाकर,
कंधों को उचकाकर कहते हैं,
"क्या फ़र्क पड़ता है,
कुछ देर बरसेंगे फिर गायब" ...
कुछ देर को ही सही
उनके बरस जाने से फैली
सौंधी गंध के लिए हम
उनके शुक्रगुज़ार नहीं होते
शुष्क चट्टान की तरह
अपने चोचलों में मग्न रहते हैं
इस बात से बेखबर,
उदासीन
कि किसी रोज़ बिना गरजे
यही छोटे छोटे बादल बरसकर
हमारे अस्तित्व को क्षीण कर
हमें हीन कर सकते हैं !
इसके लिए हमें सतर्क रहना होगा
जागते रहना होगा
समझना होगा ...
रश्मि प्रभा