04 सितंबर, 2020

#कुछचेहरे


#कुछचेहरे

कई चेहरे बहुत मुखर होते हैं, उनकी आंखें बोलती हैं, होठों पर टिकी,आंखों के कोने से टपकती मुस्कान बोलती है _ इतना कि तोहमतें दामन पकड़ लेती हैं,अफ़वाहों के बाज़ार में कुछ असली,कुछ नकली चीजें बिक जाती हैं और प्यार हो जाता है ।
उम्र की उड़ान और माशाअल्लाह सर से पांव तक नन्हीं सी चिड़िया जैसे अंदाज, आंखों से उतरती आग, बेबाक खिलखिलाहट में कालिदास की कलम का मेघदूत ... बात कितनी भी मुश्किल हो, बन ही जाती है ।











02 सितंबर, 2020

#कुछचेहरे




#कुछचेहरे



अभिनय की दुनिया हो,या लेखन की दुनिया _ कुछ चेहरे किताब के पन्ने लगे, जिनको देखते हुए उनको पढ़ने सा एहसास हुआ । गौरैया सी मासूमियत, हिरणी सी चंचलता, राहुल की माँ यशोधरा सी तटस्थता, हवाओं की तरह मंज़िल को पाने का प्रयास, घर का पूजा घर, धुला हुआ आँगन, धधकता चूल्हा, आग की तेज लपटें, चाभी का गुच्छा, दरवाज़े की सांकल, बेचैनी में भी एक सुकून भरी गुनगुनाहट ...। परिचय इनका अपनी जगह है, इनकी पहचान है - मेरी दृष्टि का एक हस्ताक्षर ये तस्वीरें, जिनको देखते, संजोते,प्रस्तुत करते हुए एक वक्त,जिसे हम गुजरा हुआ कहते हैं, मेरे साथ गोलंबर पर बैठ जाता है, या किसी अमरूद के पेड़ के नीचे या किसी मिट्टी के दालान में ...










 

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं

 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...