05 जुलाई, 2008

कहाँ आ गए?????????


अमाँ किस वतन के हो?

किस समाज का ज़िक्र करते हो?

जहाँ समानता के नाम पर,

फैशन की अंधी दौड़ में,

बेटियाँ नग्नता की सीमा पार कर गयीं...

पुरूष की बराबरी में,

औंधे मुंह गिरी पड़ी हैं!

शर्म तो बुजुर्गों को आने लगी है,

और चन्द उन युवाओं को -

जिनके पास मान्यताएं बची हैं.......

कौन बहन है,कौन पत्नी,

कौन प्रेयसी,कौन बहू !

वाकई समानता का परचम लहरा रहा है!

समानता की आड़ में

सबकुछ सरेआम हो गया है!

झुकी पलकों का कोई अर्थ नहीं रहा,

चेहरे की लालिमा बनावटी हो गई!

या खुदा!

ये कहाँ आ गए हम?!?

18 टिप्‍पणियां:

  1. ma'am

    bahut khoob

    baat sahi hai .......par ab puraniho gayi hai .......ab to bechare ladko ko ladkiyon ki barabari karni padti hai ........

    weldone
    and have all the best

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  2. Waah ! Bahut Khoob Didi ! Isse saral shabdo mein aur kya abhivyakt kiya ja sakta hai !

    Aap badhaai ki paatr hain !


    Deepak Gogia

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  3. bahut sundar likha hai aapne
    or baht aasani se bahut mahtaw puran bat kahdi

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  4. chalo kam se kam iss faishon parast duniya ne to nariyon ko barabari ka darja de diya......

    bahut khub!!

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  5. हम्म बदलते जमाने को अच्छे से लफ्जों में ढाला है आपने ..रश्मि जी

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  6. bhut sahi likha hai aapne. likhati rhe.

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  7. bahut hee sahee hai aaj kee tasweer pargti ka khokhlapan sab ujagar kiya hai

    Anik

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  8. धन्यवाद रश्मि जी । आपने तगडा प्रहार किया है सामाजिक विद्रूपता पर ।

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  9. झुकी पलकों का कोई अर्थ नहीं रहा,
    चेहरे की लालिमा बनावटी हो गई!

    शर्म तो बुजुर्गों को आने लगी है,


    बहुत खूब ! लिखा है आपने .

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  10. Sahi Kaha aapne.

    Samanta ke naam par andhi daud abhi aur rang dikhlayegi, Dekhti jayiye.

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  11. रश्मि जी
    बहुत ही सुन्दर लिखा है। बधाई

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  12. कौन बहन है,कौन पत्नी,
    कौन प्रेयसी,कौन बहू !
    वाकई समानता का परचम लहरा रहा है!
    =====
    इसे महज़ कोरा कटाक्ष कहना सही नहीं होगा...
    हर मर्द ये जानता है कि चाहे.. धैर्य की बात हो या.. कुछ और..,
    औरतें, मर्दों से बहुत आगे हैं...ऊपर हैं..!!!
    मर्द ये स्वीकारेंगे नहीं..
    और उन्हें भी शायद ये अनुभूति भी नहीं... वरना समानता के इस भेड़िया धसान में.. बराबरी के नाम पर खुद को नीचे नहीं लाती.. पीछे नहीं धकेलती.. परिणाम !!
    अट्टहास बन कर रह गयी है समानता.. .. गंवारपन बन गयी है..झूकी पलकें...!!
    चेहरे की लालिमा बंद हो गयी है MAKE-UP KIT में..!!! और फिर एक आश्चर्य का जन्म..!!! ये.. हम आ गए हैं कहाँ..!!

    अच्छी रचना है और सच्ची.. भी..और सच को शब्द देने की ताकत को नमन!!!

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  13. क्या बात है ?
    समानता में असमानता की हद है ।

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  14. brabari mehanat aur pratibha ke bal par kee jaye to aaj ki mahilayein badalte samaaj ko ek nayi oonchaiyon tak le ja sakti hai.

    aapse sahmat hoon ki sirf kapdon ka kalewar badal lene se barabari ka darza to door ki baat, atma smita bhi khatre mein pad jati hai.

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  15. haaan didi... 1000% sahi racha hai aapne.... barabari k naam per nagnata ko badaya ja raha hai.... aur sammaj ko chupchap sab bardasht karna hai... aur aaj hum iske aadi ho gaye hain......

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  16. सबकुछ सरेआम हो गया है!


    झुकी पलकों का कोई अर्थ नहीं रहा,


    चेहरे की लालिमा बनावटी हो गई!


    या खुदा!


    ये कहाँ आ गए हम?!?
    iske jimmedaar kahin a kahin humhi hain bahut se aise phelu hain jinko ab sudharna na mumkin sa ban gaya hai aage pata na kya ho kuch kaha nahi ja sakta........

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...