05 अक्तूबर, 2011

तो 'कुमाता' ही कही जाऊँगी



आज भी -
मैं घूम रही हूँ अनवरत ...
रक्तदंतिका को साथ लिए
रक्तबीज के रक्त का प्रभाव निरंतर है
आज भी शुम्भ निशुम्भ की महिमा गाते हुए
उसका दूत
मुझसे ध्रिष्ट्ता करता है
साधारण वेशभूषा में जब दूत मुझे नहीं पहचानता
तो तुम मुझे क्या पहचानोगे !
तुम मुझपर राह चलते फिकरे कसते हो
गर्भ में मेरा हिसाब किताब करते हो
अग्नि के हवाले करते हो
और फिर मुझे मिट्टी पत्थर .... से एक आकृति दे
मेरी वंदना करते हो ....
आँखें खोलो ,
गौर से देखो और पहचानो
सर मत झुकाओ ....
जिस ध्रिष्ट्ता से तुम मेरा अस्तित्व कलंकित करते हो
मेरे कोमल अनदेखे रूप का संहार करते हो
उसी ध्रिष्ट्ता से कहो
किस कृत्य के बदले तुम अखंड दीप जलाते हो
अपने सीने पर कलश स्थापित कर
गुमराह भक्तों की भीड़ इकठ्ठी करते हो
और खुद को पवित्र समझते हो ???
.......
चंड मुण्ड , शुम्भ निशुम्भ , रक्तबीज , महिषासुर ...
मैं उनका संहार करने आती हूँ
करती हूँ
करती रहूंगी ...
माना मैं ' माँ ' हूँ
'माता कुमाता न भवति '
पर यदि मैंने असुर पुत्रों को छोड़ दिया
तो मैं 'कुमाता' ही कही जाऊँगी

39 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब.. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. सत्य वचन ...सार्थक अभिव्यक्ति...

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  3. कुमाता होना मानवता को बचाने के लिए जरुरी हो जाता है. शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

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  4. जिस ध्रिष्ट्ता से तुम मेरा अस्तित्व कलंकित करते हो
    मेरे कोमल अनदेखे रूप का संहार करते हो
    उसी ध्रिष्ट्ता से कहो
    किस कृत्य के बदले तुम अखंड दीप जलाते हो

    BEHATAREEN... AABHAR..

    HAPPY DURGA PUJA...

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  5. और फिर मुझे मिट्टी पत्थर .... से एक आकृति दे
    मेरी वंदना करते हो ....
    आँखें खोलो ,
    गौर से देखो और पहचानो
    सर मत झुकाओ ....
    सशक्त अभिव्यक्ति... नमन आपकी कलम को...

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  6. क्या बात है !!!
    सच्चाई का बेहतरीन और सजीव चित्रण!!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या बात है !!!
    सच्चाई का बेहतरीन और सजीव चित्रण !!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. जिस ध्रिष्ट्ता से तुम मेरा अस्तित्व कलंकित करते हो
    मेरे कोमल अनदेखे रूप का संहार करते हो
    उसी ध्रिष्ट्ता से कहो
    किस कृत्य के बदले तुम अखंड दीप जलाते हो
    अपने सीने पर कलश स्थापित कर
    गुमराह भक्तों की भीड़ इकठ्ठी करते हो
    और खुद को पवित्र समझते हो ???
    .......


    झकझोर कर जगा देने वाली कविता..!!

    सादर प्रणाम स्वीकार करें|

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  9. और यदि मैंने असुर पुत्रों को छोड़ दिया
    तो मैं 'कुमाता' ही कही जाऊँगी

    .
    .
    .

    संघार में ही असुर पुत्रों का कल्याण है ऐसा जान कर माँ इनको स्वयं अपने में समेत लेती है और इसलिए ही माँ कहलाती है|

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  10. माता अपने बच्चों की रक्षा के लिए क्या नहीं करती !
    ओजस्वी रचना!

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  11. दुर्गा देवी सदा और सभी पर सहाय हों . .ह्रदय सी ऐसी ही कामना उठ रही है.

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  12. गज़ब की ललकार... असुरों के लिए

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  13. और यदि मैंने असुर पुत्रों को छोड़ दिया
    तो मैं 'कुमाता' ही कही जाऊँगी
    बेहतरीन अभिव्यक्ति .... और फिर माता कुमाता तो होती ही नहीं है.

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  14. सार्थक अभिव्यक्ति| अद्भुत दर्शन|

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  15. तुम मुझपर राह चलते फिकरे कसते हो
    गर्भ में मेरा हिसाब किताब करते हो
    अग्नि के हवाले करते हो
    और फिर मुझे मिट्टी पत्थर .... से एक आकृति दे
    मेरी वंदना करते हो ....

    इसी निष्ठुरता की आवश्यता है आज...
    उत्तम रचना दी...

    विजयादशमी की सादर बधाईयाँ...

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  16. आभार........
    .तुम मुझपर राह चलते फिकरे कसते हो
    गर्भ में मेरा हिसाब किताब करते हो
    अग्नि के हवाले करते हो
    और फिर मुझे मिट्टी पत्थर .... से एक आकृति दे
    मेरी वंदना करते हो ....
    आँखें खोलो
    बहुत सही !! आज के दो मुहे समाज को आइना दिखाया है आपने ......
    कथनी करनी तो एक करो मेरे भाई !!!!

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  17. माता यदि विनाश करती भी है तो निर्माण के लिये, लेकिन उसके भक्त अज्ञान के कारण उसका ही विनाश करते हैं... कैसी विडम्बनापूर्ण स्थिति है कि पूजा के नाम पर ही निरीह प्राणियों की बलि आज भी दि जाती है...

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  18. बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन

    विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

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  19. सच्चाई से भरे भावो का लेखन .....
    बधाई !
    दशहरे की शुभकामनाएँ!

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  20. रश्मि जी, आपकी रचना के लिए टिप्पणी देने में हमेशा खुद को असहाय महसूस करता हूं...
    आप सच्चे अर्थों में साहित्य की बहुत बड़ी सेवा कर रही हैं...बधाई
    संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...विवरण जज़्बात पर मौजूद है.
    http://shahidmirza.blogspot.com/

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  21. माता कुमाता हो ही नहीं सकती...अपने असुर पुत्रों के लाभ के लिए ही उन्हें मार कर मोक्ष देती है...

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  22. खुबसूरत भाव भरी कविता
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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  23. माना मैं ' माँ ' हूँ
    'माता कुमाता न भवति '
    पर यदि मैंने असुर पुत्रों को छोड़ दिया
    तो मैं 'कुमाता' ही कही जाऊँगी
    इन पंक्तियों में ऐसा सत्‍य है जिसे कोई नकार नहीं सकता ...इस उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आपकी लेखनी को नमन ...।

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  24. aatm avlokan ke liye bibash karti rachna..ye mahshoos karne ki baat hai is per comment karne ki sthiti me nahi hoon..aapki lekhni ko naman aaur aapko sadar pranam ke sath

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  25. kyaa kah gai aap ...poori kavitaa ek naye nazariye se dekhaa great

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  26. जिस ध्रिष्ट्ता से तुम मेरा अस्तित्व कलंकित करते हो
    मेरे कोमल अनदेखे रूप का संहार करते हो
    उसी ध्रिष्ट्ता से कहो
    किस कृत्य के बदले तुम अखंड दीप जलाते हो..

    बच्चों को सुधरने के लिए माँ को कठोर होना ही होता है ...सुन्दर प्रस्तुति

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  27. माना मैं ' माँ ' हूँ
    'माता कुमाता न भवति '
    पर यदि मैंने असुर पुत्रों को छोड़ दिया
    तो मैं 'कुमाता' ही कही जाऊँगी
    .....sach kaha aapne....burayee se muhn mod lena ek maata ka dharma nahi ho sakta..

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  28. bahut dino baad maukaa mila aur aapke blog par aanaa hua... sochaa pahle saari rachnayein padh loo, is kavita ne hi rok liyaa.. sundar rachanaa :-)
    Hamaare smaaj me naari durga, lakshmi aur saraswati ke roop me pooji to jaati hai parantu jahaaan aadar denaa hotaa hai wahaan kitanaa aadar samman diyaa jaataa hai

    Regards
    Fani Raj

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