13 अक्तूबर, 2011

हाड़ा रानी




- हो न हो राजा के पास नागमणि है
....
नागमणि जिसके पास हो
उसकी शक्ति अपरम्पार होती है
...तभी तो ,
एक एक हँसी छिनकर
हर हथकंडे अपनाकर
वह स्त्री हाड़ा रानी बन जाती है ...
(हाड़ा रानी के प्रेम में पागल था राजा
तो रानी ने अपना सर काटकर भेज दिया
यहाँ राजा के मणि से प्रेम है
तो राजा का सर कलम करना ही होगा )...
.........!
आपस में एक दूसरे से विमुख सेना
रंगमंच पर साथ हो लेती है -
राजा के सेनापति को अपनी ओर मिलाने की नीति चलती है
पर चलो- कोई तो हितैषी है !
और सबसे बड़ी बात कि नाग स्वयं रक्षा में
राजा के शरीर को विष के लेप से सुरक्षित करता है
..... बीण बजा नाग को भी वश में करने की कोशीशें
... मात्र मणि के लिए -
कोई स्वार्थ को प्रेम
और प्रेम को स्वार्थ कैसे कह सकता है !
ज्ञान तो है-
पर कुत्सित सोच से अभिशप्त !
और अभिशप्तता कभी भी फलदायी नहीं होती
जिह्वा पर शहद लगाने से
बोली मीठी नहीं होती
सच की आग को
कोई भी बारिश ---
ठंडी नहीं कर सकती !!!!

33 टिप्‍पणियां:

  1. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    कड़वा सच तो यही है ..

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  2. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    एकदम सच्ची बात कही आपने।

    सादर

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  3. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!...बहुत गहन बात कह दी.रश्मि जी! सच का आईना दिखाती सार्थक अभिव्यक्ति.....धन्यवाद.....

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  4. कोई स्वार्थ को प्रेम
    और प्रेम को स्वार्थ कैसे कह सकता है !
    ज्ञान तो है-
    पर कुत्सित सोच से अभिशप्त !
    और अभिशप्तता कभी भी फलदायी नहीं होती...
    ...sach kaha aapne soch yadi kutsit ho to wah faldayee kabhi nahi ho sakti..
    pauranik prashtbhumi lekar gahan arthbodhbhari prastuti ke liye aabhar!!

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  5. आजकल अलग ही अंदाज में हैं आप.तीखा प्रहार.बढ़िया रचना.

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  6. हाडा रानी की कथा बचपन में पढी थी पर ये मणि का किस्सा पता नही था । कविता बता रही है कि दोनो सेनाएं एक होकर राजा के मणि को छीनने के लिये कटिबध्द हैं । कभी विस्तार से कहानी पढना चाहूँगी ।

    सच की आग को कोई बारिश बुझा नही सकती ।

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  7. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    Bahut sahi likha Masi ji, Sundar rachna.

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  8. आप भी बस अँधेरे में एक ना एक शम्मा पकड़ा जातीं हैं...सच को दफ़न होते देखने के बाद भी...

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  9. wakai sach to sach hi rahta hai aur hamesha hi rahega... chilla chilla kar jhooth bolne se wo sach nahi ho jata... kadak hai... badhiya hai...

    parantu ek baat... na jane kyon, par mujhe prem hamesha swarthi hi laga... is par kuch likh abhi tha... kabhi padhaungi aapko...

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  10. सच की आग किसी भी बारिश से नहीं बुझ सकती ... हाड़ा रानी से उपमा बिल्कुल अद्भुत है ..

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  11. आदरणीया रश्मि दीदी
    सादर प्रणाम !

    सर्वप्रथम आपके यहां रही लंबी अनुपस्थिति के लिए क्षमायाचना …
    हालांकि अभी पिछली कई न पढ़ी हुई आपकी पोस्ट्स पढ़ी है…

    प्रस्तुत रचना में कई रहस्य साथ साथ चलते हैं
    नागमणि बिंब यदि सत्ता के लिए प्रयुक्त हुआ है तो रचना सामयिक राजनीति की ओर इशारे करती प्रतीत होती है …

    प्रहेलिका का अपना आनन्द भी होता है …
    अभी तो वही साथ लिए जा रहा हूं :)

    आपको सपरिवार त्यौंहारों के इस सीजन सहित दीपावली की अग्रिम बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. ज्ञान तो है-
    पर कुत्सित सोच से अभिशप्त !

    वाह दी! सार्थक पंक्ति ... अभिशप्त विचारधारा से मुक्त ज्ञान ही लोकसंग्रह के काम आ सकता है... अन्यथा ज्ञान और अहंकार में क्या अंतर...!!

    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    संकेतों/बिम्बों से युक्त शाश्वत सत्य की अनुपम अभिव्यक्ति...
    सादर बधाई..

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  13. बहुत सुन्दर और लाजवाब पंक्तियाँ! हमेशा की तरह ज़बरदस्त प्रस्तुती!

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  14. rashmi ji kaisi hain aap/ apani bimaaree me likhanaa padhana hi bhool gayee hoon.sundar satya me shabdon kaa chayan aapaki lekhni ki visheshta hai.badhaai

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  15. सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    वाह ... एक साथ इतनी ज्ञानवर्धक बातें ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  16. कल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  17. कोई स्वार्थ को प्रेम
    और प्रेम को स्वार्थ कैसे कह सकता है !
    ज्ञान तो है-
    पर कुत्सित सोच से अभिशप्त !
    और अभिशप्तता कभी भी फलदायी नहीं होती
    जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    राजा की मणि के लिए प्रेम किया जाना ...ओह , क्या यह प्रेम है !!!

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  18. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!
    kitna pardarshi sach likh din wah.....

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  19. सही कहा जिह्वा पर शहद लगाने से बोली मीठी नहीं हो जाती . बहुत अच्छी रचना.

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  20. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    sahi kaha mausi ji....ek ayitihasik kahani ko nayi soch ke sath vyakt kar dena....sirf aapke bas ki hi baat hai....aabhar

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  21. सत्य सशक्तता से अभिव्यक्त हुआ है!

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  22. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    bahut sahee.....

    saarthak rachna....

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  23. बहुत हि सही, प्रेम और स्वार्थ के बीच के अंतर को रेखांकित करती रचना

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  24. जिह्वा पर शहद लगाने से
    बोली मीठी नहीं होती
    सच की आग को
    कोई भी बारिश ---
    ठंडी नहीं कर सकती !!!!

    jivan ka sach...

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