22 अक्तूबर, 2011

मैं कुछ कुछ रह गया था यहीं कहीं !

यह तस्वीर मेरे भईया की है और यह घर , जो अब खंडहर प्रतीत हो रहा है , यहाँ हम १९८० तक रहे , तब पापा वहाँ के स्कूल के प्राचार्य थे , उनके नहीं रहने के बाद हम रांची शिफ्ट कर गए .......- यह तस्वीर तेनुघाट की है, जहाँ भईया अभी कुछ दिनों पहले गए अपने बेटे के साथ , उनकी तस्वीर को देख और उसी दिन उनसे बातचीत करके मेरे भीतर उमड़े भावों ने भईया के मन को शब्द दिए ........








कुछ हँसी कुछ झगड़े
यहीं तो थे कहीं
कुछ रूठना कुछ मनाना
यहीं तो थे कहीं
किसी ने न जाना
मैंने खुद भी नहीं जाना
मैं कुछ कुछ रह गया था यहीं कहीं !
आँखों में घूम गए वो पल छुट्टियों के
जहाँ सभी खड़े होते थे मेरे इंतज़ार में
एक साथ छू लेने को तत्पर
सब अपनी अपनी कहना चाहते थे
बासंती रिश्तों की खुशबू
हमारे हर कमरे , आँगन में फैली होती थी
बेमानी ठहाके लगाते थे हम
हवाएँ भी रुक कर दांतों तले ऊँगली दबाती थीं !
..........
क्या यूँ उजड़ जाते हैं बीते पल
दरक जाती हैं दीवारें
फूलों की जगह उग आती हैं झाड़ियाँ .... !!
कुछ भी हो -
इस पल कोई पुकार मुझे सुनाई दे रही है
.....किसकी पुकार कहूँ इसे
सब तो एक साथ पुकार रहे हैं ...
....
कितनी अजीब बात है -
मैं आया हूँ अपने बेटे के साथ
पर कई अपने साथ हैं -
पापा, अम्मा , बहनें , पत्नी
और यह बेटा गोद में है ....
....
यह क्या अफरातफरी है
अचानक क्यूँ समय समाप्त की घोषणा है
मुझे बड़ी बेचैनी सी हो रही है ...
क्या आज यहाँ से चलने के पहले मुझे हिदायत नहीं मिलेगी
'ठीक से जाना '
!!!
जिसे सुनते 'ओह' ज़रूर कहता था
पर बड़ा सुकून था इस बात का
रोष होता था छुट्टियों के ख़त्म हो जाने का
तो ओह ' कहने का यही बहाना होता था !
..............
चलने से पहले कहता जाऊँ
घर वो घर भले न रहा हो
पर यादों की ईमारत इतनी बुलंद है
कि मैं फिर आना चाहूँगा
क्योंकि यहाँ की दीवारों में जज़्ब वो कहकहे
आज भी सुनाई देते हैं
और यकीनन जब जब हम आयेंगे - सुनाई देते रहेंगे

43 टिप्‍पणियां:

  1. जहां गुजरा होता है
    बचपन
    या अल्हड़पन,
    जर्रा जर्रा याद आता है।
    वहां एकबार जाने को,
    दिल जरूर ललचाता है।

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  2. क्योंयूँ उजड़ जाते हैं बीते पल

    दरक जाती हैं दीवारें
    फूलों की जगह उग आती हैं झाड़ियाँ
    यह क्या अफरातफरी है
    अचानक क्यूँ समय समाप्त की घोषणा है
    काश हम कभी बड़े नहीं होते ! बचप्पन के दिन कितने खुशियों + मोज-मस्ती के होते है... :) सारे इर्ष्या द्वेष से परे

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  3. क्योंयूँ उजड़ जाते हैं बीते पल

    दरक जाती हैं दीवारें
    फूलों की जगह उग आती हैं झाड़ियाँ
    यह क्या अफरातफरी है
    अचानक क्यूँ समय समाप्त की घोषणा है
    काश हम कभी बड़े नहीं होते ! बचप्पन के दिन कितने खुशियों + मोज-मस्ती के होते है... :) सारे इर्ष्या द्वेष से परे

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  4. bachpan ki yaaden to sapno me bhi tadpaati rahti hain kahan bhool sakte hain vo pyara aangan janha chalna,daudna,ladna,roothna,seekha tha.bahut pyaari post.aabhar.

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  5. स्मृतियों की मधुर नदी में बहना अच्छा लगता है।

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  6. बीती यादें ...झझकोरती है,कचोटती है पर फिर भी दिल के किसी कोने में बड़ा सुकून देती हैं ...
    शुभकामनाएँ भाई जी को .....

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  7. स्मृतियों से दूर हो पाना असंभव है...बचपन तो यूँ भी ...दिल के बहुत करीब होता है...बहुत खास होता है

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  8. Aisi rachnayein mujhe barbas hi bhavuk kar jati hain..

    Haanlaki meri aisi koi yaad nahin..

    Pata nahin kyun kabhi-dusron ke bhav na hokar bhi apne lagne lagte hain..

    Mujhe rulane ke liye dhanyawaad..

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  9. चलने से पहले कहता जाऊँ
    घर वो घर भले न रहा हो
    पर यादों की ईमारत इतनी बुलंद है
    कि मैं फिर आना चाहूँगा
    क्योंकि यहाँ की दीवारों में जज़्ब वो कहकहे
    आज भी सुनाई देते हैं
    और यकीनन जब जब हम आयेंगे - सुनाई देते रहेंगे
    .....................

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  10. mai in baaton ko bahut acchhe se samajh sakti hu shayad... har baar transfer aur har baar naya ghar... har ghar ke saath judi yaadein, jude kuch khas pal... :)

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  11. यादों से उमड़े शब्द और भाव ...बहुत कुछ याद दिला गए ... अच्छी प्रस्तुति

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  12. यादें बसी होती हैं दिलोदिमाग में .. अच्‍छी अभिव्‍यक्ति दी है आपने .. टेनुघाट हमारे यहां से अधिक दूर नहीं .. कभी आइए !!

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  13. यादे तो हमेशा कैद रहती हैं फिर कोई कैसे दूर जा सकता है।

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  14. यादों की ईमारत हमेशा बुलंद रहती है...!

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  15. ये स्मृतियाँ ही हमारे जीवन की कुल जमा पूंजी होते हैं , उम्र बढ़ने के साथ जिन्हें हम खोल कर पन्ने पलटते रहते हैं , वरना तो बस दुनियादारी !

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  16. “आज फजां में गूंजते, लम्हे बन के गीत
    खण्डहर वह यादों का, टूटी - फूटी भीत”

    सादर....

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  17. ये यादें ऐसी हैं रश्मि जी की हर कोई इन यादों में खो जाये ...
    आपके भईया ने मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी ....
    अपने भईया के साथ पेड़ों पर चढना, केले के पेड़ों को काट नाव तैयार कर पोखर की सैर ,
    लुका छुपी ......
    सच्च कितने सुहाने थे वे दिन .....

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  18. Bachapan ki madhur yaade, us mitti ka sparsh, un diwaro ke bich bal manas ki salamati ka ahsas, un khidkiyo ki awaz....... kya kuchh nahi is ghar me...?

    shayad bahut kuchh chhutkar bhi sabakuchh hai is DIL me... ab bhi...

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  19. स्मर्तियो का खुबसूरत सफ़र..... जो हमेसा साथ चलता है.......

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  20. सुन्दर प्रस्तुति
    परिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं

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  21. आपकी यह सुन्दर प्रस्तुति कल सोमवार दिनांक 24-10-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ की भी शोभा बनी है। सूचनार्थ

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  22. मैं तो अक्सर बचपन की गलियों में जाता हूँ ... पत्नी बच्चों के साथ ... लौटने का मन करता है अक्सर उन सभी गलियों में ...

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  23. ghar ki diware wakt ke sath chahe kitni bhi darak jaye lekin man ke bheeter yado ki diware utni hi majboot rahti hain.

    bahut sukomal prastuti.

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  24. स्मर्तियो का खुबसूरत सफ़र हमेशा चलता रहे... दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये

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  25. आज का दिन नौसटालल्जिक होने का ही है शायद.बहुत प्यारी सी पोस्ट.

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  26. आज 14 महीनों बाद मैने वापस ब्लाग की दुनिया में कदम रखा है...होम पेज पर ही आपकी ये पोस्ट दिखी...निश्चित तौर पर प्रशंसनीय...ये सच है कि हम कितना भी आगे क्यों न निकल जायें लेकिन हमारा बचपन हमे अक्सर बुलाया करता है ये अलग बात है कि हम उसकी आवाज सुनते हैं या नहीं...

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  27. यादों की उड़ान बचपन की..बहुत अच्छा लगा.
    ..आभार

    वक्त के जंजीरों से आजादी पाकर, आप मेरे ब्लाग पे
    आयेंगे तो हमें एक नया जोश मिलेगा...

    दीपावली की शुभकामनायें...!

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  28. बुला रहा है कौन मुझको चिलमनों के उस तरफ
    मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेकरार है ?????
    ये क्या जगह है दोस्तों

    कसक भरी रचना.यह कसक हर भावुक दिल में मौजूद है.कहीं पीड़ाओं को शब्द मिले तो कहीं नि:शब्द है.

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  29. दीये की लौ की भाँति
    करें हर मुसीबत का सामना
    खुश रहकर खुशी बिखेरें
    यही है मेरी शुभकामना।

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  30. aah behad sundar bhav hai, sach mei beete lamhe yaad karne mei aisi hi feelings aati hai

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  31. पर यादों की ईमारत इतनी बुलंद है
    कि मैं फिर आना चाहूँगा
    जहां बचपन बीता हो वो जगह तो वैसे भी
    मन के अंतस में ताउम्र बसी रहती है...

    बातों को यूं शब्‍द देना आपकी कलम ही कर सकती है ..आभार ।

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  32. चलने से पहले कहता जाऊँ
    घर वो घर भले न रहा हो
    पर यादों की ईमारत इतनी बुलंद है
    कि मैं फिर आना चाहूँगा
    क्योंकि यहाँ की दीवारों में जज़्ब वो कहकहे
    .....बेहद मनमोहक .... सच में दी ,इन यादों के साथ ज़िन्दगी बहुत सहज लगती है .... सादर !

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  33. यादों की इमारत बहुत ही बुलंद होती है|
    पर हमें इन्हें छोड़ कर आगे चलना होता है...

    दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
    जहां जहां भी अन्धेरा है, वहाँ प्रकाश फैले इसी आशा के साथ!
    chandankrpgcil.blogspot.com
    dilkejajbat.blogspot.com
    पर कभी आइयेगा| मार्गदर्शन की अपेक्षा है|

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  34. वो कागज़ की किस्ती वो बारिश का पानी ... हमेशा जेहन में गड़े रहते है . एक बेहतरीन अनुभूतियों भरा काव्य बधाई . राशनी के पर्व पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाये -कुश्वंश

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  35. घर वो घर भले न रहा हो
    पर यादों की ईमारत इतनी बुलंद है
    कि मैं फिर आना चाहूँगा
    क्योंकि यहाँ की दीवारों में जज़्ब वो कहकहे
    आज भी सुनाई देते हैं
    और यकीनन जब जब हम आयेंगे - सुनाई देते रहेंगे

    itne achchhe se bhawaaon ko piroya hai ki meri aankhe nam ho gayee gaon ke chhote se ghar ko aur wahaan beete palon ko yaad karke.

    Behad sundar kriti.

    aabhar
    Fani Raj

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  36. पुरानी यादें धरोहर होती हैं, और अकेली ज़िन्दगी की हमसफ़र. सुन्दर शब्द दिए हैं आपने भैया के भाव को. शुभकामनाएं.

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...